बजरंग दल की यूपी में बंदूकों वाली रैली की असली कहानी ये है
फिरोज़ाबाद रैली पर उन्होंने जो कहा है वो क्यों झूठ है?
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बजरंग दल का पथ संचलन
उत्तर प्रदेश के फिरोज़ाबाद में 31 मई को बजरंग दल का एक पथ संचलन निकाला गया. मौका था उनके एक सप्ताह के शौर्य प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन का. बजरंग दल देश भर में इस किस्म के ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाता है. संगठन के मुताबिक इसके जरिए राष्ट्रवादी विचारधारा वाले युवकों को "आत्मरक्षा" का प्रशिक्षण दिया जाता है. कोटला चुंगी से शुरू होकर इस मार्च को सुभाष तिराहे तक पहुंचना था. लेकिन यह मार्च बीच रास्ते विवाद का शिकार हो गया.
बजरंग दल का पथ संचलन
इससे एक दिन पहले, जिले के ही जलोपुरा के रहने वाले बीएसएफ के एएसआई विजेंद्र यादव का पार्थिव शरीर अपने गांव लौटा था. वो गुवाहाटी में शहीद हुए थे और शहर में ग़म का माहौल था. इस बीच बजरंग दल का यह पथ संचलन था. संगठन के कार्यकर्ता भगवा कपड़े पहनकर हाथ में लाठी लिए हुए कदमताल करते हुए शहर के बीच से निकल रहे थे. आगे-आगे आठ-दस लोग भी चल रहे थे जिनके हाथ में रायफल थी. इस मार्च के किनारे चल रहे थे पुलिस के जवान. पीछे गाने बज रहे थे. "राम जी की सेना चली, श्री राम जी की सेना चली."
बजरंग दल के जिला संयोजक संतोष कुमार वशिष्ठ इस मामले में सफाई देते हुए कहते हैंः
"यह किसी किस्म का शक्ति प्रदर्शन नहीं था. यह एक साधारण पथ संचलन था. हमारे पास कोई रायफल नहीं थी. एयर गन थीं. एयर गन में तो कोई मसला नहीं होता है. इसको रखने के लिए आपके पास लाइसेंस की दरकार भी नहीं है. यह एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन था."इस मामले में जब दी लल्लनटॉप
ने एसएसपी अजय कुमार पांडेय से पुलिस का पक्ष जानने की कोशिश कि तो उनके तरफ से कुल जमा 9 शब्दों की सफाई दी गई.
"हमारे पास अब तक कोई शिकायत नहीं आई है."एक तथ्य यह भी है कि पूरे पथ संचलन में एक बार भी फायर नहीं किया गया.
लेकिन वीडियो में दिखाई पड़ रही कम से कम एक राइफल असली है.
देखें वीडियोः
पुलिस की सरपरस्ती में इस किस्म का प्रदर्शन हो रहा था. हथियारों से लैस जत्थे, अगर इस तरह से सड़कों पर उतर आएं तो यह किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्मिंदगी की बात ही होगी. आप चाहे जितने भी दावे करें कि हथियार नकली थे, लेकिन उसने जो दहशत पैदा है वो बिल्कुल असली है. यहां तो असली हथियार भी मौजूद थे. अब कायदे-कानून, संविधान और शांति के रास्ते चलने वाले समाज में इस किस्म के प्रदर्शनों को कितना बर्दाश्त किया जाए, यह पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं.
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