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ऑल इंडिया का सबसे बड़ा 'बकचोद'

तन्मय भट्ट. ऑल इंडिया बकचोद की शुरुआत करने वाला लड़का. वो जिसने बकचोद शब्द को लड़कों के झुण्ड से निकाल के डाइनिंग टेबल तक पहुंचा दिया.

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फोटो - thelallantop
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केतन बुकरैत
23 मई 2016 (Updated: 23 मई 2016, 01:36 PM IST) कॉमेंट्स
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घर पे पूछा जाता है - "ये एआईबी क्या है?" मैं जवाब दे देता हूं - "तीन लड़कों का ग्रुप है. कॉमेडी करते हैं. एक का नाम ए से शुरू होता है, एक का आई से और तीसरे का बी से. तो एआईबी हो गया." टीवी पर इस ग्रुप के बारे में प्रोग्राम आता है तो उन्हें एआईबी ही कहा जाता है. ऐंकर ये भी कह देता है कि इनका पूरा नाम बता पाना ज़रा मुश्किल होगा.
एआईबी यानी ऑल इंडिया बकचोद. चार लफंगों का एक ग्रुप जो मसखरी करता है. मसखरी ऐसी कि जैसे आईना दिखा रहे हों. बस आईना थोड़ा साफ़ ज़्यादा रहता है. लिहाज़ा आंखों में चुभता बहुत है. जिस वजह से अक्सर लानतें मलानतें झेलनी पड़ती हैं. खैर, ऑल इंडिया बकचोद के पीछे जिन दो शातिरों का दिमाग है उनमें से एक का नाम है तन्मय भट्ट. आज तन्मय भट्ट का जन्मदिन है.
Image: Tanmay Bhat Facebook Page
Image: Tanmay Bhat Facebook Page

सेठ चुन्नीलाल दामोदरदास बर्फीवाला हाई स्कूल में पढ़ने वाला लड़का मुंबई के 'लोकल हीरोज़' में फ़ीचर होता है. लोकल हीरोज़ मुंबई में कॉमेडी स्टोर का ऐसा स्टैंडअप शो था जिसमें सभी स्टैंडअप आर्टिस्ट हिन्दुस्तानी थे. ऐसा मुंबई में पहली बार हो रहा था. अब तक वहां ज़्यादातर कॉमेडियन अंग्रेज हुआ करते थे और पूरा शो अंग्रेजी में ही होता था. मुंबई में पहली बार स्टैंड-अप कॉमेडी में अंग्रेजी के साथ हिंदी की भी मिलावट होने लगी थी. तन्मय का अगला पड़ाव था Best In Stand Up
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इसमें वो यूनाइटेड किंगडम से आये हुए टॉप कॉमेडियन्स के साथ शो कर रहा था. आगे चलकर तन्मय दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़कर आये एक और फ़ितूरी लड़के गुरसिमरनजीत खंबा के साथ मिलकर ऑल इंडिया बकचोद की शुरुआत करता है. इसमें दो लड़के और शामिल होते हैं - आशीष शाक्य और रोहन जोशी.
तन्मय भट्ट इंडिया के सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले, सबसे ज़्यादा शेयर किये जाने वाले वीडियो में नज़र आता है. उन्हें लिखता है. कभी कभी उन्हें डायरेक्ट भी करता है. इंजीनियर और डॉक्टर के मारे इंडियन पैरेंटहुड से तन्मय ने भी दो-दो हाथ किये हैं. तन्मय के पापा उन्हें पायलट बताते हैं और उसकी मां तो आज तक ये समझ ही नहीं पाई हैं कि वो करता क्या है. बकौल तन्मय, उसने जब अपने पैसों से सबसे पहली कार खरीदी थी तो उसे सबसे ज़्यादा खुशी हुई थी. वो कहता है कि उसे इस बात से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा था कि वो कार सेकण्ड हैण्ड है.
तन्मय भट्ट मसखरों की उस जमात से आता है जो बातों को मॉरालिटी से दूर रखते हैं. ऐसे में इसकी बातों में ऐसी बातों की भरमार होती है जो आपको सड़क पर सुनाई देती हैं. मसलन गालियों को बहुत ही निर्ममता से उसी निर्लज्जता के साथ बोल देता है. फिर वो चाहे यश राज को ये कहां हो कि "Where the hell's your sense of humor?"
या मुंबई में फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े नामों को बुलाकर 'रोस्ट कॉमेडी' की शुरुआत करने की 'गलती' करनी हो. तन्मय भट्ट और उसका उजड्ड ग्रुप पीछे नहीं रहता.
तन्मय भट्ट दुनिया भर का मज़ाक उड़ाता है. किसी को नहीं छोड़ता. अपने घरवालों को भी नहीं. और फिर एक दिन वो एक फ़िल्म में काम करता है. मिस्टर एक्स. इमरान हाशमी वाली. लोग उसका मज़ाक उड़ाते हैं. शिकारी खुद शिकार बन गया. कोरा पर किसी ने सवाल पूछा कि तन्मय भट्ट ने आखिर मिस्टर एक्स में काम किया क्यूं? तन्मय ने वहां आकर जवाब दिया कि वो हमेशा मूवी सेट्स पर आकर काम करना चाहता था. बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर. लेकिन कभी कर नहीं पाया इसलिए ये एक अच्छा अवसर लग रहा था. साथ ही चूंकि तन्मय खुद कई स्केच खुद डायरेक्ट करता है इसलिए उसे देखना था कि उसके स्केच के सेट्स और फिल्म सेट्स में अंतर क्या होता है.
Tanmay Bhat in Mr. X

साथ ही आदतन एक बात और बताई जो उसे अजीब लगी. कहता है कि फिल्म सेट्स पर ऐक्टर्स को भगवान की तरह ट्रीट किया जाता है. एक दिन तन्मय भट्ट ने खुद ही जाकर अपना खाना सर्व कर लिया था जिसपर प्रोडक्शन टीम के किसी मेंबर ने खाने के लिए ज़िम्मेदार लोगों को डांटना शुरू कर दिया. उसके हिसाब से ऐक्टर्स को खाना हाथ में मिल जाना चाहिए. तन्मय कहता है कि ऐसा स्पेशल ट्रीटमेंट ऐक्टर्स को क्यूं मिलता है. जब हर कोई अपने ही हाथ से खाना उठा कर खा सकता है तो ऐक्टर्स क्यूं नहीं?
तन्मय भट्ट में आज के यूथ को एक नया आइडल मिला है. एक ऐसा आइडल को इंजीनियरों के माहौल से आता है और माइक पर खड़े होकर लोगों को चुटकुले सुनाता है. मसखरी करता है. लोगों को ज़लील करता है. ऐसे लोगों को जो अपनी-अपनी फ़ील्ड में सबसे ज़्यादा ताकतवर माने जाते हैं. जब डांट पड़ती है तो घबराता नहीं है. और भी ज़्यादा बदतमीज़ी से जवाब देता है. दरअसल इसके मुंहफट होने की प्रॉपर्टी को इसकी बदतमीज़ी के साथ कन्फ्यूज़ कर लिया गया है. वैसे आज हम जैस माहौल में जी रहे हैं, जिस बदतमीजों के इर्द गिर्द घूम रहे हैं, ऐसे में अगर कोई एक शख्स खुद भी उसी भाषा में उन्हें जवाब देते हुए वहां चोट करे जहां सबसे ज़्यादा दर्द होता है तो उसमें हर्ज़ ही क्या है? दरअसल कई साल पहले भगत सिंह भी कह गए थे "बहरों को सुनाने के लिए धमाके की ज़रुरत होती है." तन्मय भट्ट आज के टाइम में शायद वही धमाका है.
(तन्मय भट्ट अगर ये खुद पढ़ ले तो भगत सिंह वाले रिफरेन्स पर चार गालियां तो मुझे ही देगा.)

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