The Lallantop
Advertisement

कौन थे महाराज रामानुज प्रताप सिंह, जिन्होंने आखिरी भारतीय चीता को गोली मारी थी?

17 सितंबर को 8 चीते नामीबिया से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए हैं.

Advertisement
Cheetah
सांकेतिक तस्वीर. (फोटो क्रेडिट- पिक्सेल)
font-size
Small
Medium
Large
17 सितंबर 2022 (Updated: 17 सितंबर 2022, 14:06 IST)
Updated: 17 सितंबर 2022 14:06 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

पीएम नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने नामीबिया से आए 8 चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ दिया है. कहा जा रहा है कि देश में 74 साल बाद चीतों की आवाज सुनाई देगी. क्योंकि इतने ही साल पहले देश में आखिरी चीते का शिकार किया गया था. और दावा किया जाता है कि आखिरी चीते का शिकार किया था महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने.

देश के आखिरी चीते का शिकार!

ये कहानी देश की आज़ादी के दौरान की है. सन 1947 की. जिसे अब छत्तीसगढ़ कहा जाता है वो तब मध्य प्रदेश में ही आता था. तब रियासतों का दौर था. कोरिया रियासत के राजा थे महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव. कुछ ग्रामीण राजा साहब के पास गए, एक अरदास लेकर. उन्होंने कहा कि कोई जंगली जानवर है जो लोगों को मार रहा है, उनके मवेशियों को मार रहा है. अपने लोगों को बचाने के लिए राजा साहब बंदूक लेकर निकल पड़े. जंगल में उन्होंने तीन चीते मारे. कहा जाता है कि उनके शिकार की आखिरी तस्वीर और उससे जुड़े दस्तावेज महाराजा के निजी सचिव ने 'जर्नल ऑफ द बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी' को सौंपे थे. ये दस्तावेज अब भी उपलब्ध हैं.

महाराजा रामानुज ने तीन चीतों को मार तो दिया, लेकिन उन्हें शायद ये नहीं पता था कि वो भारत के इतिहास में आखिरी चीतों का शिकार कर रहे थे. दावा किया जाता है कि इसके बाद देश में चीता कभी नहीं देखा गया. 1952 में भारत सरकार ने चीते को विलुप्त प्रजाति घोषित कर दिया.

महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव की मारे गए चीतों के साथ. यह फोटो बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के पास जमा है. (फोटोः ट्विटर/प्रवीण कासवान)

 

कौन थे रामानुज प्रताप सिंह?

मध्यप्रदेश की कोरिया (अब छत्तीसगढ़ में है) रियासत के राजा शिवमंगल सिंह देव के घर रामानुज का जन्म 1901 में हुआ. शुरुआती पढ़ाई के बाद ग्रैजुएशन के लिए वो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी चले गए. यही रामानुज मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू के संपर्क में आए. दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक रामानुज प्रताप सिंह लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गांधी के साथ शामिल हुए थे.

शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

अलग-अलग दावों में रामानुज प्रताप सिंह का शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान बताया जाता है. कहा जाता है कि उन्होंने 1946 में अपनी रियासत के 64 स्कूलों में अडल्ट एजुकेशन यानी प्रौढ़ शिक्षा शुरू कराई. इसके अलावा ये भी दावा किया जाता है आज के समय में जिस मिड-डे मील योजना को आज सरकारी प्राइमरी स्कूलों में जोर-शोर से लागू किया जाता है उसके जनक रामानुज ही थे. उन्होंने 1941 में अपनी रियासत के स्कूलों में आठवीं तक के बच्चों को दोपहर में गुड़ और चना देने की शुरुआत की थी.

एक दावा और है

दरअसल कोरिया रियासत के पास एक रियासत थी जिसका नाम था अंबिकापुर. इसके राजा थे रामानुज शरण सिंह देव. दावा किया जाता है कि इन्होंने करीब 1100 शेर मारे थे. और इसीलिए कुछ लोग ये दावा भी करते हैं कि रामानुज प्रताप सिंह देव ने नहीं देश में आखिरी तीन चीतों को रामानुज शरण सिंह देव ने मारे थे. 

वीडियो: चीतों से शिकार करवाया और चीते ही खत्म हो गए, अब अफ्रीकी चीतों से क्या करने जा रहे?

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

पॉलिटिकल मास्टरक्लास में बात झारखंड की राजनीति पर, पत्रकारों ने क्या-क्या बताया?

लल्लनटॉप चुनाव यात्रा : बेगुसराय में कन्हैया की जगह चुनाव लड़ने वाले नेता ने गिरिराज सिंह के बारे में क्या बता दिया?
राष्ट्रकवि दिनकर के गांव पहुंची लल्लनटॉप टीम, गिरिराज सिंह, PM मोदी पर क्या बोली जनता?
लल्लनटॉप चुनाव यात्रा: एक फैसले के बाद से मुंबई के मूलनिवासी, जो कभी नावों के मालिक थे, अब ऑटो चलाते हैं
मुंबई के मूल निवासी 'आगरी' और 'कोली' समुदाय के लोग अब किस हाल में हैं?
लल्लनटॉप चुनाव यात्रा : बिहार की महादलित महिलाओं ने जातिगत भेदभाव पर जो कहा, सबको सुनना चाहिए

Advertisement

Advertisement

Advertisement