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यूक्रेन संकट के बीच केमिकल हथियारों की चर्चा से डरना क्यों चाहिए?

रूस ने US पर यूक्रेन में जैविक हथियार बनाने का आरोप लगाया है, नाटो का कुछ और कहना है.

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(फाइल फोटो: एपी)
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धीरज मिश्रा
14 मार्च 2022 (Updated: 14 मार्च 2022, 01:45 PM IST) कॉमेंट्स
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यूक्रेन संकट के बीच नाटो (NATO) महासचिव जेंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा है कि रूस रासायनिक हमले की तैयारी कर रहा है. उन्होंने ये दावा उन आरोपों पर जवाब देते हुए किया, जिनमें कहा जा रहा है कि अमेरिका ने यूक्रेन में बायोलॉजिकल लैबोरेटरीज बनाई हैं. जर्मन अखबार WeLT को दिए एक इंटरव्यू में जेंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि अमेरिका पर लगे ये आरोप निराधार हैं. NATO महासचिव ने आशंका जताते हुए ये भी कहा कि दुनिया को रूस को लेकर ज्यादा सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि वो यूक्रेन पर रासायनिक हमले कर सकता है जो कि एक युद्ध अपराध है. इसी महीने की शुरुआत में रूस के रक्षा मंत्रालय ने यूक्रेन के बायो-लैबोरेटोरीज विशेषज्ञों से मिले दस्तावेजों के हवाले से बड़ा दावा किया था. इसमें उसने कहा था कि अमेरिका ने यूक्रेन में रासायनिक प्रयोगशालाएं बनाई हैं. डॉक्यूमेंट्स से मिली जानकारी के अनुसार, अमेरिका ने यूक्रेन में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू और एंथ्रैक्स फैलने की संभावना पर अध्ययन किया है. इस काम में 1531 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. स्टडी के तहत पक्षी, चमगादड़ और सरीसृप प्रजातियों का इस्तेमाल किया गया है. रूस का दावा ये है कि अमेरिका ने इस काम के नाम पर यूक्रेन में कई जैविक प्रयोगशालाएं बनाई हैं. रूसी आर्म्ड फोर्स रेडिएशन, केमिकल एंड बायोलॉजिक डिफेंस के प्रमुख इगोर किरिलोव ने कहा है कि पेंटागन ने यूक्रेनी क्षेत्र में ऐसी 30 से अधिक जैविक प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क बनाया है. रूस का आरोप है कि अमेरिका इस तरह से बायोलॉजिकल यानी जैविक हथियार बनाने में यूक्रेन की मदद कर रहा है. हालांकि अमेरिका ने इन तमाम दावों को खारिज किया है. रासायनिक और जैविक हथियार आम तौर पर रासायनिक हथियारों की चर्चा में जैविक हथियारों का जिक्र होता रहा है. हालांकि इनमें आपसी अंतर है. रासायनिक हथियार उन्हें कहते हैं जो विषैले पदार्थों के माध्यम से शरीर के सिस्टम पर हमला कर उसे खत्म कर देते हैं. ये कई प्रकार के होते हैं. जैसे सांस को बंद कर देने वाले रसायन, जो व्यक्ति के फेफड़ों और श्वसन अंगों पर हमला करते हैं. इस कारण व्यक्ति की दम घुटने से मौत हो जाती है. ऐसे हथियारों का एक अन्य प्रकार है मस्टर्ड गैस, जो त्वचा को जला देती है और अंधा कर देती है. ऐसे केमिकल हथियारों में सबसे खतरनाक वो होता है जो सीधे नर्वस सिस्टम पर हमला करता है. ये वेपन ब्रेन डैमेज कर देता है. उदाहरण के तौर पर 0.5 मिलिग्राम से भी कम वीएक्स नर्व एजेंट (VX NERVE AGENT) किसी व्यक्ति को मारने के लिए पर्याप्त है. केमिकल हथियार कम मात्रा में ज्यादा बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं. इनके प्रभाव में आने वाले सैनिकों या आम लोगों की तड़प-तड़प कर मौत होती है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक प्रथम विश्व युद्ध में ही इन हथियारों ने करीब एक लाख लोगों की जान ले ली थी. तब से लेकर अब तक ये वेपन्स दस लाख से ज्यादा लोगों की दर्दनाक मौत का कारण बन चुके हैं. ये सब बातें ऐसे समय में हो रही हैं जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में सबसे बड़ी सैन्य कार्रवाई देखने को मिल रही है और रूस का केमिकल हथियार बनाने का इतिहास भी रहा है. जाहिर है यूक्रेन संकट के बीच केमिकल हथियारों को लेकर रूस और अमेरिका की जुबानी जंग डराने वाली है. वैसे इन सभी रसायनों का इस्तेमाल बॉम्ब और मिसाइल्स के जरिये किया जा सकता है. लेकिन हथियार नियंत्रण से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौते 'केमिकल वेपन्स कन्वेन्शन्स, 1997' के तहत इन केमिकल्स पर पूरी तरह प्रतिबंध है. इसके प्रावधानों को लागू करने की जिम्मेदारी OPCW को मिली हुई है. इस कानून पर रूस समेत कई देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और रासायनिक हथियार इस्तेमाल न करने की प्रतिबद्धता जताई है. जैविक हथियार वहीं बायोलॉजिकल वेपन्स वे होते हैं जिनमें खतरनाक पैथोजंस का इस्तेमाल हथियार के रूप में किया जाता है. पैथोजंस (वायरस, बैक्टीरिया या इन जैसे माइक्रोऑर्गेनिज्म) के कारण कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं, जैसे कि इबोला. शीत युद्ध की समाप्ति के बाद जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिकों ने इन्हें खत्म करना शुरू किया तो पता चला कि सोवियत संघ ने ढेर सारे जैविक हथियार तैयार किए थे. इन्हें जंग के दौरान एंथ्रैक्स, स्मॉल पॉक्स और अन्य बीमारियों को फैलाने के लिए बनाया गया था. दक्षिणी रूस के एक द्वीप पर इन बीमारियों का परीक्षण जीवित बंदरों पर किया गया था. साल 1991 के विघटन से पहले सोवियत संघ के समय रूस व्यापक स्तर पर जैविक हथियार प्रोग्राम चलाता था. Biopreparat नाम की एक एजेंसी ये प्रोग्राम ऑपरेट करती थी. रिपोर्टों के मुताबिक इस काम में करीब 70 हजार लोग लगे हुए थे.

कब हुआ इस्तेमाल?

इस तरह के रासायनिक या जैविक हथियारों का इस्तेमाल प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुआ था. बाद में 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के समय इन हथियारों का उपयोग किया गया था. हाल फिलहाल की बात करें तो सीरिया सरकार ने विद्रोहियों का दमन करने के लिए रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था. रूस का दावा है कि उसने साल 2017 तक अपने सभी रासायनिक हथियारों को खत्म कर दिया था. लेकिन बीबीसी के मुताबिक तब से लेकर अब तक मॉस्को पर दो बार रासायनिक हमले करने के आरोप लग चुके हैं. इनमें से एक 2018 के सैलिसबरी हमले से जुड़ा है. तब केजीबी (रूस की खुफिया एजेंसी का पुराना नाम) के एक पूर्व अधिकारी सर्गेई स्क्रिपल को उनकी बेटी के साथ नर्व गैस नोविचोक (Novichok) देकर मार दिया गया था. रूस ने इसमें अपनी भूमिका से इनकार किया था और कई सारे स्पष्टीकरण दिए थे. लेकिन इस मामले को लेकर हुई एक जांच में पता चला था कि रूस की सैन्य खुफिया एजेंसी जीआरयू ने ही ये हमला करवाया था. इस कारण 128 रूसी जासूसों और राजनयिकों को कई देशों से निष्कासित कर दिया गया था. इसके बाद अगस्त 2020 में रूस के बड़े विपक्षी कार्यकर्ता एलेक्सी नैवेल्नी को भी नोविचोक जहर दिया गया था, लेकिन वे बाल-बाल बच गए थे. इसके अलावा रूस पर ये भी आरोप लगते रहे हैं कि उसने सीरिया की बशर-अल-असद सरकार को भारी सैन्य सामान मुहैया कराया था जिसमें केमिकल वेपन्स भी शामिल थे. इसका फायदा उठाकर सरकार ने उसका विरोध करने वाले लोगों पर कथित रूप से रासायनिक हमले किए थे.

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