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जिस बात के लिए पीएम मोदी ट्रोल हुए थे, IIT के वैज्ञानिकों ने सचमुच उसे कर दिखाया है

हवा से पानी बनाने की तकनीक तैयार कर ली है

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IIT गुवाहाटी के रिसर्चर्स ने पिचर प्लांट की तकनीक से प्रेरणा लेते हुए हवा से पानी बनाने की टेक्नीक डिवेलप की है. (फोटो - IIT गुवाहाटी ट्विटर)
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मयंक
8 दिसंबर 2020 (Updated: 8 दिसंबर 2020, 03:27 PM IST) कॉमेंट्स
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डेनमार्क के एक विंड टरबाइन टेक्नोलॉजी कंपनी के सीईओ से बात करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने हवा से पानी निकालने की बात की थी. इसके बाद तुरंत ट्विटर दो फाड़ हो गया था. लोग समझाने बतियाने लगे कि इस पर साइंस क्या कहता है. उस बात को वक़्त बीत चुका है, लेकिन अब खबर आई है कि IIT गुवाहाटी के रिसर्चर्स ने ऐसी ही तकनीक विकसित कर ली है. इसके जरिए नमी वाली हवा से पानी बनाना संभव है.

क्या है ये तकनीक?

IIT गुवाहाटी के सेंटर ऑफ़ नैनोटेक्नोलॉजी के जिन वैज्ञानिकों ने इस तकनीक पर काम किया, जिनमें एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. उत्तम मन्ना, रिसर्च स्कॉलर कौसिक माजी, अविजित दास और मणिदीपा धर शामिल हैं. इस रिसर्च को प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी ऑफ़ केमिस्ट्री में प्रकाशित भी किया गया है. पीने के पानी की कमी के कारण इसे जमा करने और बचाने की क़वायद पूरी दुनिया में हो रही है. अब वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक तरीके से वॉटर हार्वेस्टिंग की ओर ध्यान दिया है. उदाहरण के लिए, ऐसे क्षेत्रों में जहां पानी की कमी है, वहां के पौधे और छोटे जीव जैसे कि कीड़े खुद ही नमी वाली हवा से पानी निकालने और अपनी ज़रूरतें पूरी करने में सक्षम होते हैं. इसी पर आगे बढ़ते हुए वैज्ञानिक नमी वाली हवा से पानी निकालने की टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं. डॉ. मन्ना ने बताया कि इस तरह की वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक को कंसेप्ट ऑफ़ हाइड्रोफोबिसिटी कहते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि हाइड्रोफोबिसिटी क्या होती है. इसे तोड़कर समझते हैं. हाइड्रो मतलब पानी और फोबी वर्ड आया फोबिया से, जिसका मतलब होता है किसी भी चीज़ से डर. अब जो पानी से डरेगा, वो तो इससे दूर भागेगा. इस तकनीक को इस्तेमाल करने से ठीक यही होता है. पानी नमी वाली हवा से जैसे ही भागता है, ये तकनीक उसे पकड़कर अपने काम में ले आती है. डॉ मन्ना ने इसका उदाहरण एक कमल की पत्ती से दिया. कहा,
कमल की पत्ती वॉटर रेपेलेंट होती है. जैसे ही आप इस पर पानी की बूंद डालते हैं, तो वो इसे सोखने के बजाय फ़िसलाकर नीचे गिरा देती है.
ऐसा क्यों होता है, ये आप सोशल मीडिया पर चलने वाली एक वायरल मीम टेम्पलेट से समझ सकते हैं, जिसमें एक पांडा पेड़ के ऊपर चढ़ा होता है. जैसे ही दूसरा पांडा उस पर चढ़ने लगता है, ऊपर वाला पांडा उसे लात मारकर नीचे गिरा देता है. ठीक ऐसे ही कमल की पत्ती की सतह और पानी की बूंद के बीच हवा की एक लेयर होती है, जो इसके पत्ती की सतह तक पहुंचने से पहले ही धकेलकर नीचे गिरा देती है. हालांकि, इस तरह की साधारण हाइड्रोफोबिसिटी वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए ज़्यादा सूटेबल नहीं होती, क्योंकि ज्यादा नमी होने की स्थिति में हवा का लेयर डिस्प्लेस हो सकता है, और सारा मामला ख़राब हो सकता है. इसीलिए वैज्ञानिकों ने पिचर प्लांट की नकल करने की सोची. पिचर प्लांट या घटपर्णी माँसाहारी पौधे होते हैं, जिनकी सतह स्लिपरी या फिसलन भरी होती है. इस पर कीड़े-मकोड़े फिसलते हैं और सीधा गिरते हैं उनके पेट में. धान के पत्ते और कैक्टस जैसे पौधे भी पानी इकठ्ठा करने के लिए यही तकनीक इस्तेमाल करते हैं. इस तकनीक को SLIPS यानी कि स्लिपरी लिक्विड पोरस सरफेस कहा जाता है.

IIT वालों ने क्या किया?

IIT गुवाहाटी की रिसर्च टीम ने नमी वाली हवा से पानी निकालने के लिए इसी SLIPS टेक्नोलॉजी का पहली बार इस्तेमाल किया है. वैज्ञानिकों ने एक हाइड्रोफिलिक सरफेस तैयार किया. ध्यान रहे, अबकी हाइड्रोफिलिक कहा है हाइड्रोफोबिक नहीं. ये हाइड्रोफोबिक से ठीक उल्टा होता है, और पानी से इतना प्रेम करता है कि उसकी आंखों में आंखें डालकर पूछ सके कि तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है? इस हाइड्रोफिलिक सरफेस को IIT गुवाहाटी की टीम ने एक साधारण A4 शीट पर बनाया. इस पर दो तरह के तेलों- प्राकृतिक ओलिव ऑइल और सिंथेटिक क्रिटोक्स लगाया. रिसर्चर्स ने देखा कि ये सरफेस बिना किसी कूलिंग अरेंजमेंट के धूमिल हवा मतलब फॉगी हवा या पानी की भाप से भी वॉटर हार्वेस्टिंग कर सकता है. इसकी तुलना पिचर प्लांट से करने पर भी रिसर्चर्स ने देखा कि ये वॉटर हार्वेस्टिंग में उससे भी ज़्यादा कारगर सिद्ध हुआ. IIT गुवाहाटी द्वारा जारी किये गए लेटर में लिखा था कि भारत की 50 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी के पास पीने के पानी का एक्सेस नहीं है, करीब 2 लाख लोगों की हर साल साफ़ पानी की कमी से मौत हो जाती है. उम्मीद है कि ये तकनीक, जिसे वैज्ञानिक ज्यादा महंगा भी नहीं बता रहे हैं, पानी की समस्या से लड़ने में उपयोगी साबित होगी.

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