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मार्च में ही 'भेजा फ्राई' गर्मी पड़ने की वजहें क्या हैं?

एंटी साइक्लॉन, वेस्टर्न डिस्टर्बेंस, एमजेओ के बारे में अच्छे से जान लें.

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बेहिसाब गर्मी से बहाल जनता (फोटो: इंडिया टुडे)
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आयूष कुमार
31 मार्च 2022 (Updated: 3 जून 2022, 11:28 AM IST) कॉमेंट्स
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पिछले कई दिनों की गर्मी (Summer) को देखकर ऐसा लग रहा है कि ये मार्च 2022 नहीं मई 2022 है. अभी मार्च का महीना पूरी तरह खत्म भी नहीं हुआ है, और देश के कई राज्यों में तापमान 40 डिग्री (High Temperature) के पार पहुंच गया है. लोग कह रहे हैं कि अगर अभी ये हाल है तो मई-जून में क्या होगा. पहले एसी-कूलर की सर्विस अप्रैल में करवाई जाती थी, इस बार मार्च में ही करवा रहे हैं. मौसम विभाग भी चेतावनी जारी कर गर्मी के और बढ़ने की बात कह रहा है. असर सोशल मीडिया पर भी दिख रहा है. एक से एक मीम्स शेयर किए जा रहे हैं.
सोर्स गूगल
सोर्स: गूगल

क्यों बढ़ रही गर्मी? विश्व मौसम संगठन कह चुका है कि साल 2021 की तरह इस साल भी गर्मी से निजात नहीं मिलेगी, बल्कि इसमें इजाफा ही होगा. मार्च की गर्मी देखकर ऐसा लग भी रहा है. भारत के अलग-अलग हिस्सों में गर्मी एक समान नहीं पड़ती. दक्षिण में तापमान बढ़ा है लेकिन उत्तर, मध्य और पश्चिमी भारत में हालत ज्यादा खराब है. राजस्थान और गुजरात के कई शहरों में 10 मार्च के बाद से ही तापमान 40 डिग्री को छूने लगा था. मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो अचानक से बढ़ी इस गर्मी के कई कारण हैं.
भारत में अक्सर सर्दियों में बारिश होती है, कहीं कम तो कहीं ज्यादा. इस बारिश का कारण होता है पश्चिमी विक्षोभ, जिसे अंग्रेजी में वेस्टर्न डिस्टर्बेंस (Western Disturbance) नाम से जाना जाता है. भूमध्यसागरीय क्षेत्र में बनने वाला ये तूफान भारत के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में सर्दी के मौसम में बारिश का कारण बनता है. कहा जा रहा है कि इस बार वेस्टर्न डिस्टर्बेंस कमजोर था जिस वजह से सर्दियों में बारिश कम हुई है. मार्च में जो प्री-मानसून बारिश होती थी, वो भी नहीं हुई. पहाड़ों पर बर्फबारी भी होती थी, जो इस बार नहीं हो रही है. इसलिए तापमान जल्दी बढ़ गया है.
एक और वजह है. आमतौर पर मार्च के अंत या अप्रैल के शुरू में पश्चिमी राजस्थान में एंटी साइक्लॉन (विपरीत चक्रवाती हवाओं) का माहौल बनता है. लेकिन इस बार मार्च की शुरुआत में ही इसका बनना शुरू हो गया. एंटी साइक्लॉन बनने से हवाएं क्लॉकवाइज (जैसे घड़ी की सुईयां चलती हैं) घूमती हैं. बलूचिस्तान और थार रेगिस्तान से गर्म और नम हवाएं दिल्ली-हरियाणा की ओर आती हैं जिससे गर्मी बढ़ती है. इस बार तटीय इलाकों में भी ऐसा हो रहा है जो सामान्य नहीं है. इसके चलते भी घातक गर्मी का असर समय से पहले ही देखने को मिल रहा है.
Anti Cyclone
फोटो: विकिपिडिया

तटीय इलाकों में गर्मी क्यों बढ़ रही? वैज्ञानिकों की मानें तो इस खास स्थिति को मेडन जूलियन ऑसिलेशन (Madden–Julian Oscillation) या एमजेओ कहते हैं. ये खासकर समुद्र से धरती की ओर बहने वाली मंद बयार पर असर डालता है और उसे रोक देता है. समुद्री तटों से बहने वाली मंद हवाएं रुकने लगती हैं और सूरज की किरणें समुद्र के पानी से रिफ्लेक्ट होकर आसपास की जमीन को गर्म करने लगती हैं. ऐसा तब होता है जब ये स्थिति देर तक बनी रहती है.
आमतौर पर एमजेओ की स्थिति दोपहर में 12 बजे शुरू होकर एक-दो घंटे के लिए रहती है. लेकिन कभी- कभी ये लंबी चलती है. कभी ऐसा भी होता है जब पूरे दिन तक हवा एकदम रुक जाती है. इससे तापमान और भी तेजी से बढ़ता है. इस बार पश्चिमी भारत के तटीय इलाकों में यही हो रहा है. हालांकि इन इलाकों में चलने वाली लू में मैदानी इलाकों के मुकाबले ज्यादा नमी होती है. इस वजह से ये उतनी खतरनाक नहीं है जितनी उत्तर भारत की लू होती है.
A Field Of Wheat
फसलों पर भी पड़ेगा असर तेजी से चढ़ रहे पारे का असर आम लोगों पर तो पड़ ही रहा है, किसानों को भी आशंका है कि इस बार गेहूं की फसल प्रभावित हो सकती है. दरअसल ज्यादा गर्मी में गेहूं समय से पहले पक जाता है. कृषि जानकारों का कहना है कि गेहूं का दाना सामान्य तापमान में पकता है, लेकिन गर्मी ज्यादा होने पर दाना न तो अच्छी तरह फूलता है और न ही सही ढंग से पकता है. अधपका और सख्त दाना होने की वजह से गेहूं के स्वाद और पौष्टिकता में भी कमी आती है. इस वजह से किसानों को पैदावार घटने का डर सता रहा है.

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