6 जून 2016 (Updated: 6 जून 2016, 01:32 PM IST) कॉमेंट्स
Small
Medium
Large
Small
Medium
Large
''रामवृक्ष यादव के जरिए मुलायम सिंह यादव का परिवार दिवंगत बाबा जय गुरुदेव की संपत्ति पर कब्जा करना चाहता था. मगर एक वक्त बाद परिवार में ही इस बंटरबांट पर कब्जे के लिए फूट पड़ गई. इसीलिए रामवृक्ष यादव को प्लैंड ढंग से निपटा दिया गया. वो जिंदा होता तो कई बातों का खुलासा करता. इससे यूपी के सीएम साहब अखिलेश यादव और उनका परिवार नप जाता.और अभी तो ये भी नहीं पता कि जवाहर बाग में कुल कितने मरे. यूपी सरकार का दावा दुरुस्त नहीं लगता. इसलिए मैं सरकार से सीबीआई जांच की मांग करती हूं.''
आखिरी वाक्य से आप समझ ही गए होंगे कि ये सब बातें किसी विरोधी पक्ष के नेता ने कहीं. नेता नहीं अबकी मोर्चा नेत्री ने खोला है. नाम है उमा भारती. मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री. और यूपी के झांसी क्षेत्र से सांसद.
गौरतलब है कि अब तक बीजेपी और बसपा के कई नेता मामले में मुलायम सिंह यादव के भाई और यूपी के कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव का नाम ले चुके हैं. मगर उमा भारती के ताजे डाल के टूटे आरोपों के बाद रामगोपाल यादव पर भी सुगबुगाहट शुरू हो गई है. नाम तो उनके सपूत और फिरोजाबाद से सांसद अक्षय यादव का भी लिया जा रहा है.
इलाके में कयास, जिंदा पकड़ लिया था पुलिस ने यादव को
हर बड़े कांड की तरह इस बार भी कई कयासबाजियां लग रही हैं. एक थ्योरी जो आम पब्लिक के बीच सबसे पॉपुलर है, उसके मुताबिक यादव को वाकई पुलिस ने पकड़ लिया था. पुलिस वाले उसे पीटते हुए बाग में बने उद्यान विभाग के उसी कमरे में ले गए, जहां वो अपना दरबार सजाया करता था. यहां उसने सत्तारूढ़ परिवार के कई सदस्यों के साथ अपने संबंधों का हवाला दिया.
इस थ्योरी के मुताबिक रामवृक्ष यादव को लखनऊ वाली सरकार का फुल फुल सपोर्ट था. जय गुरूदेव की मौत के बाद उत्तराधिकारी बनने का रामवृक्ष का सपना मरा नहीं था. जो मालपुआ पंकज यादव गपोस गया उसे छीने बिना उसकी भूख नहीं मरती. रामवृक्ष अपने आप को मजबूत कर रहा था. पइसा और असलहा से. इरादा ये था कि दम भर जाए तो पंकज यादव को किनारे कर जय गुरुदेव के आश्रम और संपत्ति पर कब्जा कर लिया जाए. मगर कब्जे के बाद रामवृक्ष की डोर कौन सी उंगली हिलाएगी, इसे लेकर भसड़ मच गई.
और नतीजा सामने है. एक थ्योरी ये भी चल रही है कि रामवृक्ष यादव को सरकार जवाहर बाग इलाका 99 साल के पट्टे पर देने वाली थी. मगर कोर्ट के ऑर्डर ने चुंगी लगा दी. और फिर ऊपर से आदेश आ गया कि इसका मुंह लपलपा रहा है. चांप दो.
तो उस दिन बगीचे में हुआ क्या
राजनीतिक वरदहस्त था तो अभी तक उसने पुलिस का दुलार देखा था. मार नहीं. पर गुरूवार शाम मामला उलट गया. कयासबाजों की मानें तो शाम सात बजे यादव अपने गनर के साथ अंदर की तरफ भागा. पुलिस पार्टी गुस्साई हुई थी. उसके एक एसपी और एक दरोगा मारे जा चुके थे. इस बार यादव या उसके गनर ने फायरिंग नहीं की. पुलिस ने उसे किनारे दबोच लिया. फौरी खुराक के बाद भीतर कमरे में ले गए. जारी हुई तफ्तीश. बताओ कौन हैं तुम्हारे पापा, जिनके नाम पर इतना फायर हुए.
उसने बकना शुरू कर दिए. सब बड़े नाम. और अपना काम. कि लखनऊ वालों के आदेश से उसे दो साल पहले मथुरा में जमने की परमिशन मिली. और अब पट्टा देने की तैयारी थी. मगर उसके पहले ही पांसा पलट गया.
अब एंट्री होती है तीसरी थ्योरी की. कि पूछताछ के बाद रामवृक्ष मरा कैसे. तो कहानी यूं बताई जा रही है कि रामवृक्ष यादव खूब गिड़गिड़ाया. एक फोन कर लेने दो. मगर वर्दी वाले खूंखार मोड में थे. साथी मरा था साहब. ड्यूटी करते हुए. तो हर इसरार पर खुराक दी जा रही थी. आगे की कहानी अपनी समझ के संशय के साथ समझें.
चौथी थ्योरी. रामवृक्ष अंधेरे का फायदा उठाकर भागा. पुलिस ने पीछे से फायर झोंक दिया. ठौर पर ही चित्त हो गया भगोड़ा. पुलिस वालों का गुस्सा अभी ठंडा नहीं हुआ था. उन्होंने कहा कि इसे यहीं जलते कमरे में झोंक दिया जाए. मगर मौके पर कुछ सीनियर पुलिस अफसर भी मौजूद थे. उनमें से एक थे एसपी रूरल. उन्होंने समझाया कि लाश मिलना जरूरी है. बिना सबूत के अफवाहें और फैलेंगी. कि पुलिस ने किसी को मार गिराया और किसी के नाम का तमगा पाया. और फिर ये भी हो सकता था कि जैसे गुरुदेव अपने को जिंदा सुभाष बता भीड़ बटोरते थे, रामवृक्ष का भी कोई कथित अवतार सामने आ जाता.
लिहाजा तय पाया गया कि लाश को जलाया न जाए. एक दिन की मीडिया की सुरपुरी के बीच रिश्तेदार और जान पहचान वाले बुलाए गए. डबल चेक हुआ कि डेड बॉडी उसी की है. लखनऊ खबर की गई. हरी झंडी दिखी तो मौत की खबर को मीडिया में रवाना कर दिया गया.