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"राम विलास पासवान का उत्तराधिकारी चिराग नहीं मैं हूं", पशुपति ने 1977 का किस्सा सुना ठोका दावा

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कुछ महीनों पहले तक लोकसभा में जिस कुर्सी पर राम विलास पासवान बैठते थे, उसी कुर्सी पर अब वो बैठते हैं.

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chirag paswan and pashupati kumar paras
(बाएं) छोटे भाई पशुपति पारस को ताज पहनाते दिवंगत राम विलास पासवान. (दाएं) चिराग पासवान. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)
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13 फ़रवरी 2023 (Updated: 13 फ़रवरी 2023, 10:24 IST)
Updated: 13 फ़रवरी 2023 10:24 IST
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केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने कहा है कि वो ही अपने बड़े भाई राम विलास पासवान के राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं. पशुपति का कहना है कि राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान केवल अपने पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी बनने का दावा कर सकते हैं, राजनीतिक उत्तराधिकारी तो वही हैं. रामविलास पासवान के निधन के बाद से ही उनका भतीजे चिराग पासवान से LJP के नेतृत्व को लेकर विवाद चल रहा है. इसके चलते पशुपति ने 2021 में LJP से अलग होकर राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) बना ली थी.

क्या-क्या बोले पशुपति पारस?

रविवार, 12 फरवरी को पटना में दलित सेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी. इस दौरान पत्रकारों से बात करते हुए पशुपति कुमार पारस ने ये बात कही. बोले,

"ये पूरे बिहार के लोग जानते हैं कि मैंने राम विलास पासवान की जितनी सेवा की है, उतनी उनके बेटे या परिवार में किसी ने नहीं की होगी." 

पशुपति ने खुद को अपने बड़े भाई का उत्तराधिकारी घोषित करने के पीछे की वजह बताते हुए कहा, 

"मैं बताता हूं कि खुद को 'बड़े साहब' का राजनीतिक उत्तराधिकारी क्यों कहता हूं? उन्होंने 1969 में बिहार के अलौली से विधायक के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. 1977 में हाजीपुर से सांसद बनने के बाद उन्होंने अपने परिवार में से सभी को छोड़कर मुझे अलौली से चुनाव लड़ने के लिए कहा. मैं सरकारी नौकरी कर रहा था, टीचर था, लेकिन फिर भी मैंने उनकी बात मानी और चुनाव लड़ा."

2019 में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के लोकसभा सांसद बनने के बाद राज्यसभा की सीट खाली हुई थी. तब बीजेपी ने सीट बंटवारे के समझौते के तहत अपने कोटे से राम विलास पासवान को राज्यसभा भेजा था. इसके बाद उनकी पारंपरिक सीट हाजीपुर से पशुपति कुमार पारस ने सांसदी का चुनाव लड़ा और जीते. इस बारे में उन्होंने कहा,

"1977 से 2019 तक 'बड़े साहब' हाजीपुर से सांसद रहे. जब वे राज्यसभा गए, तो उन्होंने फिर मुझे बुलाकर कहा कि पारस तुम हाजीपुर से चुनाव लड़ो. मैंने उनको कहा था कि आप मेरी जगह चिराग या भाभी जी को चुनाव में खड़ा कीजिए. उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर साफ इनकार कर दिया."

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कुछ महीनों पहले तक लोकसभा में जिस कुर्सी पर ‘बड़े साहब’ बैठते थे, उसी कुर्सी पर अब वो बैठते हैं.

पार्टी को लेकर चाचा-भतीजे में विवाद

पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के निधन के बाद LJP दो धड़ों में बिखर गई थी. विवाद की शुरुआत 2020 में हुई, जब बिहार विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान की अध्यक्षता में LJP ने NDA गठबंधन का साथ छोड़ सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने की घोषणा की. 2021 में चिराग पासवान ने पशुपति पारस समेत 5 सांसदों को पार्टी से निकाल दिया. बदले में पांचों सांसदों ने चिराग की जगह पशुपति कुमार पारस को पार्टी का नेता घोषित कर दिया. इस सबके चलते बाद में पार्टी दो गुटों में बंट गई. पशुपति कुमार पारस वाले गुट ने अलग पार्टी बनाकर राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी नाम रख लिया, जो अभी NDA गठबंधन का हिस्सा है.

वीडियो: चिराग की तेजस्वी से दोस्ती, चाचा की बगावत के साथ राजनीतिक बवंडर समझाने वाला इंटरव्यू

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