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जज ने ऐसा क्या कर दिया कि हाई कोर्ट को कहना पड़ा, निबंध लिखकर दिखाओ

मामला तीन पुलिसकर्मियों की जमानत याचिका से जुड़ा है

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पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शादी शुदा महिला और उसके प्रेमी के रिश्ते को अनैतिक करार देते हुए दोनों पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया.
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शादी शुदा महिला और उसके प्रेमी के रिश्ते को अनैतिक करार देते हुए दोनों पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया.
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डेविड
21 जनवरी 2021 (Updated: 21 जनवरी 2021, 02:42 PM IST)
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पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने लुधियाना के एडिशनल सेशन जज (एएसजे) को निबंध लिखने का निर्देश दिया है. उन्हें अग्रिम जमानत से जुड़े एक मामले में 'गैरकानूनी आदेश' देने के लिए निबंध लिखने को कहा गया है. निर्देश में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा है कि एएसजे को अग्रिम जमानत के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के 10 आदेश पढ़ने होंगे और 30 दिन में निबंध तैयार करना होगा. इसके बाद उसे चंडीगढ़ न्यायिक अकादमी के निदेशक को सौंपना होगा. खबर के मुताबिक, हाई कोर्ट के जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान ने अपने फैसले में कहा कि एडिशनल सेशन जज अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने में विफल रहे. इस आधार पर कोर्ट ने जज को निर्देश दिया कि वह सुप्रीम कोर्ट के कम से कम 10 फैसलों को पढ़ें. इनमें दो फैसले ऐसे हों, जिनमें शीर्ष न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के सेक्शन 438 की व्याख्या की हो. कोर्ट ने कहा कि अध्ययन के बाद लिखे निबंध में एडिशनल सेशन जज को पढ़े गए केसों की जानकारी सारांश में देनी होगी. निबंध तैयार करने के बाद उसे 30 दिन के अंदर चंडीगढ़ न्यायिक अकादमी के निदेशक को सौंपना होगा. क्या है मामला? पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान पंजाब पुलिस के तीन रिटायर्ड अधिकारियों अमरजीत सिंह, जसवंत सिंह और कबल सिंह की अग्रिम जमानत से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहे थे. इन तीनों अधिकारियों पर एक युवक की हत्या का आरोप लगाया गया था. हाई कोर्ट की सुनवाई से पहले एएसजे ने उनकी अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी थी. हालांकि दावा किया गया है कि मृतक अभी जिंदा है और यह जानकारी एएसजे के नोटिस में भी आई थी. जब हाई कोर्ट को बताया गया कि मृतक के जीवित होने की जानकारी होने के बाद भी एएसजे ने आरोपितों को जमानत नहीं दी तो उसने न्याय अधिकारी को कानून का अध्ययन करने का निर्देश दे दिया. युवक की कथित हत्या का मामला 2005 में सामने आया था. याचिकाकर्ता पुलिसकर्मी उस समय लुधियाना के देहलोन पुलिस स्टेशन में नियुक्त थे. 25 अगस्त, 2005 को उन्होंने हरदीप सिंह नाम के एक युवक को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट की धारा 15 और 25 के तहत गिरफ्तार किया था. मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए जाने से पहले ही हरदीप सिंह पुलिस हिरासत से भाग गया था. इसके बाद आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 224 के तहत एक और मामला दर्ज किया गया. उधर, हरदीप सिंह के पिता नागेंदर सिंह ने 2005 में ही हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की. इसमें उन्होंने अपने बेटे को कोर्ट में पेश करने की मांग की थी. नागेंदर ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके बेटे को अवैध रूप से हिरासत में रखा था. सुनवाई के बाद एक वारंट अधिकारी नियुक्त किया गया. लेकिन हरदीप सिंह का पता नहीं चला. कुछ दिनों बाद 17 सितंबर, 2005 को एक अज्ञात व्यक्ति का शव मिलता है. उसका पोस्टमॉर्टम किया गया. नागेंदर ने कहा कि शव उनके बेटे हरदीप का था और याचिकाकर्ताओं (पुलिसवालों) ने उसकी हत्या कर दी थी. हाई कोर्ट ने तब अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी- अपराध) को निर्देश दिया था कि वह मामले की जांच कर रिपोर्ट सौंपें. एडीजीपी ने रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि शव नागेंदर के बेटे का नहीं था. उन्होंने बताया कि हरदीप जीवित था और अपने पिता के साथ संपर्क में था. इस पर हाई कोर्ट ने सत्र न्यायाधीश लुधियाना को निर्देश दिया कि वे जांच कर शिकायतकर्ता के बेटे के ठिकाने के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करें. एएसजे 31 अगस्त, 2008 को एक जांच रिपोर्ट पेश की. इसमें कहा गया कि शिकायतकर्ता के बेटे को पुलिस ने हिरासत में खत्म कर दिया था. जानकारी के बावजूद जमानत याचिका खारिज की एएसजे की जांच रिपोर्ट के आधार पर 21 मई, 2010 को तीनों पुलिसवालों के खिलाफ हत्या और अन्य आरोपों के तहत केस दर्ज हुआ. हालांकि एसआईटी ने मजिस्ट्रेट के समक्ष यह दावा किया कि शिकायतकर्ता का बेटा जीवित था और उसे आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला. लेकिन नागेंदर ने इस जांच रिपोर्ट को चुनौती दी. वहीं, मजिस्ट्रेट ने इस याचिका को एक आपराधिक शिकायत माना और याचिकाकर्ताओं (पुलिसकर्मियों) को मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया. बाद में उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किए गए. मामला कोर्ट में लंबित रहने के दौरान अगस्त 2019 के अंत में पुलिस ने हरदीप को ढूंढ निकाला। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने 2 सितंबर, 2019 को ट्रायल कोर्ट में एक आवेदन प्रस्तुत किया. उन्होंने कोर्ट को बताया कि हरदीप सिंह जीवित है और उसे अगस्त 2005 में अपराधी घोषित किया गया था. लेकिन बीते दिसंबर महीने में मजिस्ट्रेट ने आवेदन को खारिज करते हुए फिर से याचिकाकर्ताओं के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया. पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस सांगवान ने एएसजे के आदेश के इस हिस्से को 'अवैध' बताया है. उन्होंने यह भी कहा कि न्यायिक अकादमियों में लगातार सत्र आयोजित करने के बाद भी न्याय अधिकारियों की यह हालत है. हाई कोर्ट ने कहा कि हरदीप के पिता नागेंदर व अन्य ने झूठे बयानों और फर्जी तरीके से पुलिसकर्मियों को अभियुक्त बनाने की साजिश रची. कोर्ट ने नागेंदर पर दो लाख रुपये और अन्य फर्जी गवाहों पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाने का भी आदेश दिया है.

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