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कहानी अतीक अहमद की, जिसपर उमेश पाल पर बम चलवाने का आरोप लगा

अतीक फिलहाल की गुजरात जेल में बंद है.

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बाहुबली अतीक अहमद के खिलाफ सीबीआई ने किडनैपिंग और जेल में पिटाई के मामले में केस दर्ज किया है.
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गौरव
26 फ़रवरी 2023 (Updated: 26 फ़रवरी 2023, 05:57 PM IST) कॉमेंट्स
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ. कुछ गुंडे यहां से एक बिजनेसमैन को किडनैप करते हैं. 300 किलोमीटर दूर देवरिया ले जाते हैं. वो भी ऐसी-वैसी जगह नहीं, सीधे जेल में. देवरिया जेल में बिजनेसमैन की पिटाई की जाती है. प्रॉपर्टी के लिए सादे कागज पर साइन करवाए जाते हैं. पूरी घटना का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल किया जाता है. ऐसा इसलिए ताकि लोगों में दहशत बनी रहे. ये घटना है 26 दिसंबर 2018 की. बिजनेसमैन जिन्हें पीटा गया, वो थे मोहित जायसवाल. मोहित ने आरोप लगाया था कि उनका अपहरण अतीक अहमद ने करवाया था. वारदात के बाद मोहित ने एक टीवी चैनल से कहा था,

जेल के अंदर ले जाकर मुझे डंडों से मारा गया. 15-20 आदमियों ने पकड़कर मुझे बहुत मारा. खाली पेपर पर साइन करवाए. मुझसे मेरी एसयूवी छीन ली गई. कहा गया कि तुम जेल के अंदर हो इसलिए तुम्हारी हत्या नहीं हो सकती. नहीं तो मार देते.

इस घटना के बाद अतीक अहमद को देवरिया से बरेली जेल भेजा गया. वहां के जेल प्रशासन ने अतीक को रखने से हाथ खड़े कर दिए. लोकसभा चुनाव सामने थे. अतीक को कड़ी सुरक्षा में रखना ज़रूरी था. सो इलाहाबाद के नैनी जेल में शिफ्ट कर दिया गया. उधर देवरिया जेल कांड का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. कोर्ट ने सीबीआई को मुकदमा दर्ज कर जांच का आदेश दिया. अतीक अहमद और बेटे के अलावा 4 सहयोगियों और 10-12 अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज हुआ.  23 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को आदेश दिया कि अतीक अहमद को यूपी के बाहर शिफ्ट किया जाए. उसके बाद यूपी सरकार ने 3 जून 2019 को उसे अहमदाबाद की साबरमती जेल में शिफ्ट कराया.

आज हम इस घटना की याद आपको इसलिए दिला रहे हैं क्योंकि 24 फरवरी को बहुचर्चित राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल और उसके सुरक्षाकर्मी संदीप निषाद की शुक्रवार शाम गोली मारकर हत्या कर दी गई. ये हमला तब हुआ जब उमेश कोर्ट से वापस लौट रहे थे. बताते हैं कि उमेश पाल जैसे ही अपने घर के पास पहुंचे, वैसे ही बदमाशों ने पहले तो उनकी कार पर गोलियों से हमला कर दिया. इस हमले में एक सुरक्षाकर्मी घायल भी हुआ है, जिसका इलाज जारी है. उमेश के परिवार वालों का आरोप है कि गैंगस्टर अतीक अहमद के इशारे पर ये हमला हुआ है. उमेश पाल की पत्नी ने अतीक अहमद, उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन, भाई अशरफ, और उसके दो बेटों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया है.

इस बाहुबली नेता के दर्जनों किस्से हैं. अतीक अहमद से मुलाकात कर चुके लोग बताते हैं कि एक समय था कि उसकी आंखों में आंखे डालकर देखना संभव नहीं था. लोगों को अपनी ऩजरें नीचे करने पर मजबूर होना पड़ता था. 5 फीट 6 इंच का यह बाहुबली नेता समय के साथ डॉन के रूप में खूब फेमस हुआ. और इसकी शुरुआत होती है 70 के दशक से.

तांगेवाले का लड़का

प्रयागराज तब इलाहाबाद हुआ करता था. इलाहाबाद में उन दिनों नए कॉलेज बन रहे थे. उद्योग लग रहे थे. खूब ठेके बंट रहे थे. नए लड़कों में अमीर बनने का चस्का लगना शुरू हो गया था. वो अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को उतारू थे. कुछ भी मतलब, कुछ भी. हत्या और अपहरण भी. इलाहाबाद में एक मोहल्ला है चकिया. साल था 1979. इस मोहल्ले का एक लड़का हाई स्कूल में फेल हो गया. उसके पिता इलाहाबाद स्टेशन पर तांगा चलाते थे, लेकिन अमीर बनने का चस्का तो उसे भी था. 17 साल की उम्र में हत्या का आरोप लगा और इसके बाद उसका धंधा चल निकला. खूब रंगदारी वसूली जाने लगी. नाम था अतीक अहमद. फिरोज तांगेवाले का लड़का.

चांद बाबा का समय

पुराने शहर में उन दिनों चांद बाबा का खौफ हुआ करता था. पुराने जानकार बताते हैं कि पुलिस भी चौक और रानीमंडी की तरफ जाने से डरती थी. अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला गया तो पिटकर ही वापस आता. लोग कहते हैं कि उस समय तक चकिया के इस 20-22 साल के लड़के अतीक को ठीक-ठाक गुंडा माना जाने लगा था. पुलिस और नेता दोनों उसे शह दे रहे थे. वे चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाह रहे थे. इसके लिए खौफ के बरक्स खौफ को खड़ा करने की कवायद की गई. और इसी कवायद का नतीजा था अतीक का उभार, जो आगे चलकर चांद बाबा से ज्यादा पुलिस के लिए खतरनाक होने वाला था.

दिल्ली से फोन आया और अतीक छूट गया 

साल था 1986. प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी. केंद्र में थे राजीव गांधी. अब तक चकिया के लड़कों का गैंग चांद बाबा से ज्यादा उस पुलिस के लिए ही खतरनाक हो चुका था, जिसे पुलिस ने शह दी थी. अब पुलिस अतीक और उसके लड़कों को गली-गली खोज रही थी. एक दिन पुलिस अतीक को उठा ले गई. बिना किसी लिखा-पढ़ी के. थाने नहीं ले गई. किसी को कोई सूचना नहीं. लोगों को लगा कि अब काम खत्म है. परिचितों ने खोजबीन शुरू की. इलाहाबाद के ही रहने वाले एक कांग्रेस के सांसद को सूचना दी गई. बताया जाता है कि वह सांसद प्रधानमंत्री राजीव गांधी का करीबी था. दिल्ली से फोन आया लखनऊ. लखनऊ से फोन गया इलाहाबाद और फिर पुलिस ने अतीक को छोड़ दिया.

2017 में अखिलेश यादव को चुनाैती देते हुए अतीक ने कहा था, ''कई बार निर्दलीय जीता हूं. टिकट कटता है तो कट जाए. अपना टिकट खुद बना लूंगा''
 
निर्दलीय विधायकी का चुनाव लड़ा

लेकिन अब अतीक पुलिस के लिए नासूर बन चुका था. वो उसे ऐसे ही नहीं छोड़ना चाहती थी. अतीक को भी भनक लग गई थी. एक दिन भेष बदलकर अपने एक साथी के साथ कचहरी पहुंचा. बुलेट से. और एक पुराने मामले में जमानत तुड़वाकर सरेंडर कर दिया. जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी. उसके खिलाफ एनएसए लगा दिया. बाहर लोगों में मैसेज गया कि अतीक बर्बाद हो गया. लोगों में सहानुभूति पैदा हो गई. एक साल बाद अतीक जेल से बाहर आ गया. जेल से आते ही उसने इस सहानुभूति का फायदा उठाया. साथ मिला उसी कांग्रेसी सांसद का, जिसकी वजह से वो ज़िंदा बच पाया था. लेकिन अब बचने के लिए सियासत ही काम आ सकती थी. और ऐसा ही हुआ. 1989 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए. इलाहाबाद पश्चिमी से अतीक ने निर्दलीय पर्चा भरा.

चांद बाबा के बाद भाई का दौर शुरू हुआ

सामने था चांद बाबा. चांद बाबा और अतीक में कई बार गैंगवार हो चुकी थी. अपराध जगत में अतीक की तरक्की चांद बाबा को अखर रही था. यही कारण था कि चांद बाबा ने सीधी चुनौती दी. हार गए. अतीक अहमद विधायक बन चुका था. कुछ ही महीनों बाद चांद बाबा की हत्या हो गई. बीच चौराहे, भरे बाजार. धीरे-धीरे, एक-एक करके चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया. कुछ मार दिए गए. बाकी भाग गए. बाबा का दौर खत्म हो चुका था. अब भाई का दौर आ गया था. चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक का खौफ इस कदर फैला कि लोग इलाहाबाद पश्चिमी सीट से टिकट लेने से खुद ही मना कर देते. यही कारण था कि अतीक ने निर्दलीय रहकर 1991 और 1993 में भी लगातार चुनाव जीते. इसी बीच सपा से नजदीकी बढ़ी. 1996 में सपा के टिकट से चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बना. 1999 में अपना दल का हाथ थामा. प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा. लेकिन जीत नहीं पाया. 2002 में अपना दल से ही चुनाव लड़ा पुरानी सीट से और 5वीं बार शहर पश्चिमी से विधानसभा में पहुंच गया.

फिर शुरू हुआ विदेशी गाड़ियों और हथियारों का शौक

इलाहाबाद के ही रहने वाले जिस सांसद ने अतीक पर हाथ रखा था, वो बड़े कारोबारी भी थे. इलाहाबाद के पुराने लोग बताते हैं कि उस वक्त शहर में सिर्फ उसी सांसद के पास निसान और मर्सिडीज जैसी विदेशी गाड़ियां होती थीं. लेकिन अतीक को भी इसका चस्का लग गया था. कुछ ही दिन में उसने भी विदेशी गाड़ी खरीद ली. अब उसका नाम, सांसद के नाम से बड़ा होने लगा था. सांसद जी को बात नागवार गुजरी. और ऐसी गुजरी कि विदेशी गाड़ियां ही रखनी छोड़ दीं. गाड़ियों के बाद नंबर था हथियारों का. चकिया के रहने वाले लोग बताते हैं कि अतीक को दो ही चीजों का शौक रहा. हथियार और विदेशी गाड़ी. दर्जनों विदेशी लग्जरी गाड़ियां अब तक उसके काफिले में रहीं.

राजू पाल की हत्या के बाद उपचुनाव भले अशरफ ने जीत लिया हो. लेकिन इस हत्याकांड ने अतीक के राजनीतिक करियर को लगभग खत्म ही कर दिया.
जो सामने खड़ा हुआ, मारा गया

चांद बाबा लोकल गुंडा था. अतीक चकिया या इलाहाबाद तक ही सीमित नहीं रहना चाहता था. यही कारण था कि वो विरोधियों को खत्म कर देता था. चाहे वो चांद बाबा हो या फिर राजू पाल. 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी. अतीक की सपा में वापसी हुई. 2004 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर से चुनाव लड़ा. और संसद पहुंच गया. इलाहाबाद पश्चिमी की सीट खाली हुई. अतीक ने अपने भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को वहां से मैदान में उतारा. लेकिन जिता नहीं पाया. 4 हजार वोटों से जीतकर विधायक बने बसपा के राजू पाल. वही राजू पाल, जिसे कभी अतीक का दाहिना हाथ कहा जाता था. राजू पर भी उस समय 25 मुकदमे दर्ज थे. अतीक के पतन की शुरुआत हो चुकी थी. ये हार अतीक को बर्दाश्त नहीं हुई. अक्टूबर 2004 में राजू विधायक बने. अगले महीने नवंबर में ही राजू के ऑफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई. लेकिन राजू पाल बच गए. दिसंबर में भी उनकी गाड़ी पर फायरिंग की गई. राजू ने सांसद अतीक से जान का खतरा बताया.

राजू पाल की हत्या और शुरू हो गया बुरा दौर

25 जनवरी, 2005. राजू पाल के काफिले पर एक बार फिर हमला किया गया. राजू पाल को कई गोलियां लगीं. फायरिंग करने वाले फरार हो गए. पीछे की गाड़ी में बैठे समर्थकों ने राजू पाल को एक टेंपो में लादा और अस्पताल की ओर लेकर भागे. फायरिंग करने वालों को लगा कि राजू पाल अब भी जिंदा है. एक बार फिर से टेंपो को घेरकर फायरिंग शुरू कर दी गई. करीब पांच किलोमीटर तक टेंपो का पीछा किया गया और गोलियां मारी गईं. अंत में जब राजू पाल जीवन ज्योति अस्पताल पहुंचे, उन्हें 19 गोलियां लग चुकी थीं. डॉक्टरों ने उनको मरा हुआ घोषित कर दिया. आरोप लगा अतीक पर. राजू की पत्नी पूजा पाल ने अतीक, भाई अशरफ, फरहान और आबिद समेत कई लोगों पर नामजद मुकदमा दर्ज करवाया. फरहान के पिता अनीस पहलवान की हत्या का आरोप राजू पाल पर था. 9 दिन पहले ही राजू की शादी हुई थी. बसपा समर्थकों ने पूरे शहर में तोड़फोड़ शुरू कर दी. बहुत बवाल हुआ. राजू पाल की हत्या में नामजद होने के बावजूद अतीक सत्ताधारी सपा में बने रहे. 2005 में उपचुनाव हुआ. बसपा ने पूजा पाल को उतारा. सपा ने दोबारा अशरफ को टिकट दिया. पूजा पाल के हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी थी, और वो विधवा हो गई थीं. लोग बताते हैं, पूजा मंच से अपने हाथ दिखाकर रोने लगती थीं. लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला. लोग कहते हैं कि ये अतीक का खौफ था. अशरफ चुनाव जीत गया था.

अतीक के भाई अशरफ के घर की 5 बार कुर्की हो चुकी है. पुलिस अशरफ पर इनाम बढ़ाने की तैयारी में है.
नेता बना, पर माफिया वाली छवि बनी रही

अतीक भले ही नेता बन गया था लेकिन वो माफिया वाली अपनी छवि से कभी बाहर नहीं आ पाया. बल्कि ये कहा जा सकता है कि सफेदपोश होने के बाद उसके अपराधों की संख्या में और तेजी आ गई. सियासत की आड़ में अतीक अपना अपराधिक साम्राज्य मजबूत करता रहा. यही वजह है कि उसके ऊपर दर्ज अधिकतर मुकदमे विधायक-सांसद रहते हुए दर्ज हुए. लोग कहते हैं कि वो अपने विरोधियों को छोड़ता नहीं है. 1989 में चांद बाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या. बताते हैं कि जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाने की कोशिश करता, मारा जाता. अतीक के खिलाफ 83 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं. अशरफ और अतीक दोनों को मिला दें तो दोनों पर 150 से अधिक मुकदमे हैं. उसके गैंग में 120 से अधिक शूटर रहे. इलाहाबाद के कसारी-मसारी, बेली गांव, चकिया, मारियाडीह और धूमनगंज इलाके इनके आपसी गैंगवार में अक्सर दहलते रहे.

मायावती का ‘ऑपरेशन अतीक’

साल 2007. इलाहाबाद पश्चिमी से एक बार फिर पूजा पाल और अशरफ आमने-सामने थे. इस बार पूजा ने अशरफ को पछाड़ दिया. अतीक का किला ध्वस्त हो चुका था. मायावती की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी. सपा ने अतीक को पार्टी से बाहर कर दिया. मायावती सरकार ने ऑपरेशन अतीक शुरू किया. अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित करते हुए गैंग का चार्टर तैयार हुआ. पुलिस रिकॉर्ड में गैंग का नाम दर्ज हुआ आईएस ( इंटर स्टेट) 227. उस वक्त गैंग में 120 से ज्यादा मेंबर थे. 1986 से 2007 तक अतीक पर एक दर्जन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किए गए. अतीक पर 20 हजार का इनाम घोषित किया गया. उसकी करोड़ों की संपत्ति सीज कर दी गई. बिल्डिंगें गिरा दी गईं. खास प्रोजेक्ट अलीना सिटी को अवैध घोषित करते हुए ध्वस्त कर दिया गया. इस दौरान अतीक फरार रहा. एक सांसद, जो इनामी अपराधी था, उसे फरार घोषित कर पूरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया. एक दिन दिल्ली पुलिस ने कहा, हमने अतीक को गिरफ्तार कर लिया है. दिल्ली के पीतमपुरा के एक अपार्टमेंट से. यूपी पुलिस आई और अतीक को ले गई. जेल में डाल दिया.

गढ़ बचाने का अंतिम मौका

साल 2012. अतीक अहमद जेल में था. विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपना दल से पर्चा भरा. इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल के लिए अप्लाई किया. लेकिन हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया. 11वें जज सुनवाई के लिए राजी हुए. और अतीक को बेल दे दी. अतीक के पास गढ़ बचाने का अंतिम मौका था. अतीक खुद पूजा पाल के सामने उतरे. लेकिन जीत नहीं पाए. राज्य में सपा की सरकार बनी और अतीक ने फिर से अपनी हनक बनाने की कोशिश की. इलाहाबाद के कसारी-मसारी इलाके में कब्रिस्तान की जमीन कब्जाने का आरोप लगा. आरोप हैं कि खुद खड़े होकर कई घर बुलडोजर से गिरवा दिए. जमीनों पर कब्जे के ऐसे खूब आरोप लगे. लेकिन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एक बार फिर से अतीक पर मुलायम हो गए. सुलतानपुर से टिकट दे दिया. विरोध हो गया पार्टी में. टिकट बरकरार रहा, हालांकि सीट बदल गई. चले गए श्रावस्ती. चुनाव प्रचार किया. एक दिन सपा कार्यकर्ताओं को संबोधित भी किया. कहा-

''मेरे खिलाफ 188 मामले दर्ज हैं. मैंने अपना आधा जीवन जेल में बिताया है, लेकिन मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है. मैं अपने कार्यकर्ताओं के लिए किसी भी हद तक जा सकता हूं.''

लेकिन अतीक का संबोधन चुनाव में काम नहीं आया. चुनाव लड़े और हार गए. फिर अखिलेश यादव से रिश्ते भी खराब हो गए. उसके बाद सपा में अंदर-बाहर आने-जाने का सिलसिला शुरू हो गया.

एक रैली के दौरान अतीक अहमद, जिसमें मुलायम-अखिलेश भी मौजूद थे.

25 सितंबर 2015. बकरीद का अगला दिन. मारियाडीह में एक डबल मर्डर हुआ. मारियाडीह के प्रधान आबिद की चचेरी बहन अल्कमा और ड्राइवर सुरजीत का. गाड़ी रोककर ताबड़तोड़ गोली बरसाई गई थीं. आरोप लगा कम्मू और जाबिर नाम के दो भाईयों पर. कम्मू-जाबिर और आबिद प्रधान में पुरानी रंजिश थी. ये दोनों भी पहले अतीक के ही साथ थे. लेकिन बाद में अलग हो गए. जाबिर बसपा से चुनाव लड़ने की तैयारी में था. आबिद प्रधान और उसका भाई फरहान राजू पाल हत्याकांड में आरोपी हैं. कम्मू और जाबिर ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया.
जब 500 गाड़ियों का काफिला लेकर कानपुर पहुंचा.

मुलायम सिंह यादव परिवार की आपसी खींचतान के बीच दिसंबर 2016 में उम्मीदवारों की एक लिस्ट जारी हुई. इसमें अतीक को कानपुर कैंट से उम्मीदवार बनाया गया था. 14 दिसंबर को अतीक और उसके 60 समर्थकों पर इलाहाबाद के शियाट्स कॉलेज में तोड़फोड़ और मारपीट का आरोप लगा. अतीक एक निलंबित छात्र की पैरवी करने कॉलेज गए थे. उन्होंने कॉलेज के अधिकारियों को भी धमकाया. इसका वीडियो वायरल हो गया. अभी मामला चल ही रहा था कि 22 दिसंबर को अतीक 500 गाड़ियों के काफिले के साथ कानपुर पहुंचा. खुद 'हमर' पर सवार था. हमर, जिसकी कीमत उस समय 8 करोड़ बताई गई थी. जिधर से काफिला गुजरता, जाम लग जाता. मीडिया में खूब हल्ला मचा. अखिलेश यादव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे. उन्होंने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी में अतीक के लिए कोई जगह नहीं. बाहर कर दिए गए, वहीं शियाट्स मामले में हाई कोर्ट ने सख्ती कर दी. पुलिस को फटकार लगाई और अतीक को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. फरवरी 2017 में अतीक को गिरफ्तार कर लिया गया. हाईकोर्ट ने सारे मामलों में उसकी जमानत रद कर दी. इसके बाद से अब तक अतीक जेल में ही है.

22 दिसंबर को अतीक 500 गाड़ियों के काफिले के साथ कानपुर पहुंचा. खुद 'हमर' पर सवार था. हमर, जिसकी कीमत उस समय 8 करोड़ बताई गई थी. 

फूलपुर उपचुनाव हारा 

2017 में जब योगी सरकार आई तो मारियाडीह डबल मर्डर की फिर से जांच शुरू हुई. पुलिस ने खुलासा किया तो सब चौंक गए. पुलिस ने आरोप लगाया कि अल्कमा की हत्या अतीक, अशरफ और आबिद प्रधान ने कराई है. दरअसल अतीक को लग रहा था कि अगर जाबिर चुनाव जीत गया तो उसका वर्चस्व खत्म हो जाएगा. इसलिए अल्कमा को मारने की साजिश रची गई. अल्कमा ने गैर बिरादरी में शादी कर ली थी. इस कारण से आबिद प्रधान और उसका परिवार भी खफा था. अतीक, अशरफ और आबिद ने एक तीर से दो निशाना लगाने की साजिश रची. बकरीद के अगले दिन मारियाडीह में अल्कमा की गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग की गई. अल्कमा और ड्राइवर सुरजीत की मौत हो गई. केस चलता रहा. इस बीच फूलपुर लोकसभा के लिए उपचुनाव घोषित हो गए. इस सीट से बीजेपी सांसद केशव प्रसाद मौर्य यूपी के डिप्टी सीएम बन गए थे. सांसदी से इस्तीफा दे दिया था. जेल में बैठा अतीक भी वहां से चुनाव लड़ गया. निर्दलीय. और चुनाव हार गया.

इस बार अतीक अहमद निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में था.

अब आगे क्या?

अतीक पर अब तक लगभग 250 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. मायावती के शासनकाल में एक ही दिन में अतीक पर 100 मुकदमे दर्ज हुए थे. बाद में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. अधिकतर मामलों में सबूत के अभाव और गवाहों के मुकरने की वजह से अतीक बरी भी हो चुका है. फिलहाल अतीक के खिलाफ 35 मुकदमे एक्टिव हैं. इनमें से कई मुकदमे कोर्ट में पेंडिंग हैं, जबकि ग्यारह मामलों में अभी जांच पूरी नहीं हो सकी है. अब तक उसे किसी भी मामले में सजा नहीं मिली है. अतीक अहमद के खिलाफ जितने केस दर्ज हैं, उनकी सुनवाई में लंबा वक्त लग सकता है. अतीक की जिंदगी भी कभी इस जेल तो कभी उस जेल में कटते रहने की संभावना है. कभी मेहरबानी हुई तो बाहर भी आ सकता है. लेकिन फिलहाल विकास दुबे कांड के बाद योगी सरकार अतीक के आर्थिक साम्राज्य को पूरी तरह से ध्वस्त करने का मन बना चुकी है और लगातार कार्रवाई भी कर रही है.

वीडियो: मायावती ने 2024 का प्लान बताया,अतीक अहमद पर क्या बोल गईं?

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