कभी कृषि कानूनों की पक्षधर रहीं पार्टियों ने अब यूटर्न क्यों ले लिया है?
जानिए पहले क्या था इन राजनीतिक दलों का स्टैंड
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किसानों की सरकार से 7 दौर की बातचीत बेनतीजा रही है, फिर भी किसानों को निराश होने के बजाय हल निकालने के अलावा जीवन बचाने का काम भी करना होगा (फाइल फोटो- PTI)

पीएम मोदी ने अपने हालिया गुजरात दौरे में सिख किसानों से उनके मसलों पर बातचीत की थी. (तस्वीर: आजतक)
कांग्रेस का पहले क्या स्टैंड था?
कांग्रेस काफी दिनों से सरकार को नए कृषि कानूनों को लेकर घेर रही है. अक्टूबर में पंजाब के नूरपुर में 'खेती बचाओ यात्रा' के दौरान राहुल गांधी एक लाल ट्रैक्टर पर नजर आए थे. कुछ दिनों के बाद उन्होंने ट्वीट किया था, 'अडानी अंबानी कृषि कानून रद्द होंगे, और कुछ भी मंजूर नहीं.' राहुल गांधी ने सरकार पर APMC यानी कृषि उपज मंडी समिति को लेकर निशाना भी साधा था.
लेकिन कांग्रेस का 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए जारी घोषणापत्र देखें तो उसमें APMC को लेकर अलग ही घोषणा की गई थी. इसमें लिखा था कि अगर पार्टी की सरकार बनती है तो किसानों के लिए सरकारी मंडियों में फसल बेचने की अनिवार्यता खत्म की जाएगी. यानी किसान मंडी के बाहर भी अपनी फसल बेच पाएंगे.
2 अप्रैल 2019 को कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा था कि पार्टी APMC एक्ट को निरस्त करेगी. इससे किसान अपनी उपज को एक्सपोर्ट कर पाएंगे, राज्य से बाहर बेच पाएंगे. वो जहां चाहें, जिसे चाहें अपनी फसल बेच सकेंगे.

राहुल गांधी अक्सर अंबानी अडानी का नाम लेकर पीएम को घेरते नजर आते हैं.
आम आदमी पार्टी ने पहले क्या वादा किया था?
आम आदमी पार्टी भी उन दलों में शामिल है, जो मोदी सरकार को नए कृषि कानूनों को घेर रही है. जैसे ही किसान आंदोलन शुरू हुआ, आम आदमी पार्टी ने तुरंत ही किसानों के लिए बुराड़ी मैदान की व्यवस्था कराई. पार्टी के नेता किसानों से मिलने पहुंचे. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भारत बंद को समर्थन की घोषणा कर दी. यही नहीं, उन्होंने किसानों के समर्थन में उपवास भी रखा. लेकिन क्या हमेशा से किसान कानूनों को लेकर पार्टी का यही स्टैंड था?
2016 में 24 अक्टूबर को आम आदमी पार्टी ने पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए अपना घोषणापत्र जारी किया था तो उसमें जो वायदे किए गए थे, वो अलग ही थे. इसमें कहा गया था कि किसान को सही दाम मिल सके, इसके लिए APMC एक्ट मे संशोधन किया जाएगा. किसान अपनी फसल को राज्य के बाहर बेच सकेगा. किसान अपनी पसंद की जगह, मार्केट में अपनी फसल को बेच सकेगा.
ये घोषणापत्र बताता है कि प्राइवेट कंपनियों की आमद से आप को कोई खास आपत्ति नहीं थी. पार्टी ने घोषणापत्र में कहा था कि बाजारों को निजी कंपनियों की मदद मिलेगी. प्रत्येक जिले में बाजार और प्रसंस्करण केंद्रों में बड़े पैमाने पर निजी निवेश होगा. ग्रामीण उद्यमियों को औद्योगिक और आईटी स्टार्ट-अप के समान लाभ मिलेंगे.

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल. फोटो- PTI
APMC खत्म करने के मुद्दे पर अमरिंदर सिंह भी साथ थे
2017 में पंजाब चुनाव के वक्त कांग्रेस ने जो मेनीफेस्टो जारी किया था, उसमें APMC के स्ट्रक्चर को बदलने की बात कही गई थी. इसमें कहा गया था कि मौजूदा MSP सिस्टम को बदले बिना एक ऐसा सिस्टम बनाया जाएगा, जिसमें किसान अपनी फसल राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल तकनीक की मदद से बेच पाएगा.
शरद पवार भी यही चाहते थे!
महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथी एनसीपी नेता शरद पवार भी इन दिनों कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, लेकिन यूपीए सरकार के दौरान जब वह कृषि मंत्री थे, तब उन्होंने कई मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर कृषि सुधारों की बातें कही थीं. इन सुधारों में APMC एक्ट में बदलाव भी शामिल थे. उन्होंने कहा था कि ऐसा करने से किसानों को बेहतर दाम मिल सकेंगे.

शरद पवार, कद्दावर नेता जिनका एक लंबा राजनीतिक इतिहास है. (फाइल फोटो)
पुरानी व्यवस्था को बदलने के लिए बरसों की कवायद
2011 में महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी. मुख्यमंत्री थे पृथ्वीराज चव्हाण. उस वक्त गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मुख्यमंत्रियों के एक समूह ने एक रिपोर्ट तैयार की थी. इस रिपोर्ट को तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को सौंपा गया था. इस रिपोर्ट में किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए नए प्रयासों की बातें कही गई थीं. उदारीकरण की बातें कही गई थीं. यानी काफी बोल्ड कदम उठाने की बातें.
उस वक्त आंध्र प्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था. तत्कालीन मुख्यमंत्री किरण रेड्डी भी इस समूह का हिस्सा थे. ये समूह जो APMC सिस्टम में सुधारों की वकालत कर रहा था. जब यूपीए सत्ता में आई थी यानी 2004 में तब उसने 'कृषि विपणन के लिए मॉडल कानून' पर काम करना शुरू किया था. इसका ड्राफ्ट पूर्ववर्ती अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने तैयार किया था. 2019 तक यूपीए अपने इसी स्टैंड पर कायम रहा कि पुरानी कृषि व्यवस्था को बदलना चाहिए.

पीएम नरेंद्र मोदी और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह. फाइल फोटो.
क्या बिना चर्चा के अचानक लाए गए कानून?
विपक्षी पार्टियों लगातार ये आरोप लगा रही हैं कि नए कृषि कानूनों को अचानक और बिना किसी चर्चा के लाया गया. लेकिन तथ्य कुछ और ही कहते हैं. दिसंबर 2019 में APMC एक्ट और निजी क्षेत्र की भागीदारी को लेकर वर्चुअली एक ऑल पार्टी मीटिंग हुई. 9 दिसंबर 2019 को संसदीय स्थायी समिति ने भी संसद भवन एनेक्सी में खेती को लेकर एक बैठक की. इसके बाद 12 दिसंबर 2019 को संसद में रिपोर्ट पेश की गई. इस रिपोर्ट में कहा गया कि बिचौलिए हावी हैं, APMC मार्केट किसानों के हित में काम नहीं कर रही हैं.
जिस कमेटी ने इस रिपोर्ट को तैयार किया उसमें 31 सदस्य थे. 21 लोकसभा के सदस्य और 10 राज्यसभा के सदस्य. इन 31 में से 13 बीजेपी के थे और बाकी 18 सदस्य कांग्रेस, बीएसपी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, टीआरएस, शिवसेना, जेडीयू, समाजवादी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के थे.
कमेटी के मुताबिक APMC में सुधारों के लिए राज्य सरकारों की ओर से भी अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली थीं. साल 2011 में नरेंद्र मोदी उपभोक्ता मामलों पर कार्य समूह के चेयरमैन थे. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में MSP की एडवांस घोषणा की वकालत की थी. तब मनमोहन सिंह ने इस रिपोर्ट पर कहा था कि जब तक बाजार पर्याप्त रूप से प्रतिस्पर्धी नहीं बन जाते, तब तक सरकार इसमें हस्तक्षेप कर रही है. खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए, भारत सरकार न्यूनतम घोषित करने की नीति जारी रख सकती है.
यानी इस बात को साफ देखा जा सकता है कि विपक्षी पार्टियों ने कृषि कानूनों को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई थी, और अपने-अपने वक्त में कृषि की स्थिति को सुधारने के लिए बदलावों की वकालत भी की थी, लेकिन अब जब किसान सड़कों पर हैं, गुस्से में हैं तब इन पार्टियों ने भी यूटर्न ले लिया है.