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32 साल पहले तमिलनाडु के CM के साथ वही हुआ था जो अभी जयललिता के साथ हो रहा है

क्या तमिलनाडु में इतिहास खुद को दोहरा रहा है?

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MGR को श्रद्धांजलि देतीं जयललिता
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लल्लनटॉप
16 अक्तूबर 2016 (Updated: 16 अक्तूबर 2016, 02:08 PM IST)
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5 अक्टूबर 1984 की रात. तमिलनाडु के उस समय के मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) को अपोलो अस्पताल ले जाया गया था. लोगों को बताया गया कि उन्हें डीहाइड्रेशन, बुखार और सांस लेने में तकलीफ है. लेकिन, ये सब बातें थीं. असल बात कोई नहीं बता रहा था. 32 साल बाद, ठीक उसी रहस्यमय तरीके से अभी की मुख्यमंत्री जयललिता हॉस्पिटल में हैं और उनकी असल हालत कैसी है, ये कोई नहीं बता रहा. दोनों नेता एक ही पार्टी एआईएडीएमके से हैं और दोनों ही नेताओं का राजनीति में आने से पहले फिल्मों में 'शानदार जबरदस्त जिंदाबाद' कैरियर रहा.

1984 के दिनों को याद करते हुए बड़के पत्रकार कल्याण अरुण कहते हैं, 'दोनों को डीहाइड्रेशन और बुखार के कारण हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया और कहा गया कि मामूली बीमारी है. एमजीआर के केस में शुरुआती दिनों में हमें ज्यादा कुछ पता भी नहीं चला. फिर इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उनका गुर्दा खराब हो चुका है और हिंदू में खबर आई कि उन्हें स्ट्रोक आया है.'

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एक और बड़े पत्रकार शशि कुमार ने बताते हैं, 'ये स्वाभाविक है कि एमजीआर के साथ जो हुआ और जयललिता के साथ जो भी हो रहा है, उसे हम एक ही रूप में देख रहे हैं. दोनों फिल्म इंडस्ट्री से आते हैं. सिनेमाई स्टारडम को राजनीतिक स्टारडम में लाने की परंपरा दोनों लोगों में रही. मैं इससे अलग हटकर इस मसले को नहीं देखता.'

एमजीआर और जया के बीच एक और मिलती-जुलती बात ये है कि दोनों के ही पास एक खासम-खास तरह का नेता रहा, जो उनके गाढ़े वक्त में सब कुछ संभाले रहा. ये दोनों स्पेशल नेता अपने आका के समय में फाइनेंस मिनिस्टर ही रहे और समय की पहलवानी हुई तो मुख्यमंत्री भी बन गए. एमजीआर के पास वीआर नेदूंचेजियां थे और जयललिता के पास पनीरसेल्वम हैं. हालांकि, राजनीतिक पंडितों को शक है कि पनीरसेल्वम जयललिता की विरासत को संभाल पाएंगे.

पनीरसेल्वम के फेवर में एआईएडीएमके के प्रवक्ता सीआर सरस्वती कहते हैं, 'हमारी पार्टी में सब कुछ सीएम ही डिसाइड करता है और उन्होंने ये काम पनीरसेल्वम को थमाया है. हम लोग इसका स्वागत करते हैं. वो इससे पहले भी दो बार सीएम बनाए जा चुके हैं. वो बहुत ही ईमानदार और मेहनती किस्म के आदमी हैं.'

राजनीतिक पंडित आर मणि की राय इससे उलट है. वो कहते हैं, 'हम पनीरसेल्वम की तुलना नेदूंचेजियां से नहीं कर सकते. नेदूंचेजियां एक मजबूत नेता थे और उस समय पार्टी में मल्टिपल सेंटर्स नहीं थे. आज पनीरसेल्वम की सबसे बड़ी चुनौती पार्टी में मल्टिपल सेंटर्स का होना है.'

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इधर जया के मुश्किल समय में अपने लिए मौका तलाश रहे डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि जया के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. वो कह रहे हैं कि पिछले दो हफ़्तों से जयललिता अस्पताल में भर्ती हैं और सत्ता की बागडोर उन्होंने अपने पिछलग्गुओं को सौंप दी है. वैसे लोगों में ये कानाफूसी हो रही है कि पनीरसेल्वम जयललिता की करीबी दोस्त शशिकला को पद देने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन पार्टी के लोगों का कहना है कि पनीरसेल्वम को जो रोल पार्टी से मिला है, वो उसे अच्छी तरह निभाएंगे.

जया की पार्टी में डर है कि उनके लंबे समय तक हॉस्पिटल में रहने पर तमिलनाडु में राजनीतिक संकट आ सकता है पर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अभी किसी कन्क्लूजन पर पहुंचना जल्दबाजी होगी. सबसे अलबेली बात ये है कि ये वही राज्य है, जहां की जनता अपने नेता और फिल्मी सितारों को भगवान से भी ज्यादा पूजती है और इसी राज्य में देश के सबसे ज्यादा नास्तिक रहते हैं.

तमिलनाडु में इस समय होने वाली सभी घटनाएं उसी सिलसिलेवार तरीके से हो रही है जो आज से 32 साल पहले हुई थीं. पिछले 32 सालों में जनता ने जबरदस्त राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे हैं. उस समय तो राज्य की कमान नेदूंचेजियां मिल गई थी, लेकिन इस बार पनीरसेल्वम की किस्मत का फैसला अभी तक नहीं हुआ है.


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दी लल्लनटॉप के लिए ये स्टोरी आदित्य प्रकाश ने लिखी है.

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