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2015 में पाकिस्तान में मारी गई सबीन महमूद के ये आखिरी 2 ट्वीट थे

सबीन महमूद कराची में T2F कैफे चलाती थीं. लोग जुटते. आजादी, आर्ट और कल्चर की बात करते. लेकिन फिर..

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18 फ़रवरी 2019 (Updated: 18 फ़रवरी 2019, 10:01 IST)
Updated: 18 फ़रवरी 2019 10:01 IST
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T2F- द सेकेंड फ्लोर
पाकिस्तान में समंदर किनारे बसा शहर कराची. वहीं कहीं बना कैफे 'द सेकेंड फ्लोर'. जहां कॉफी हाउस की तर्ज पर लोग बैठते. बात करते. किताब पढ़ते. गाने सुनते, कॉफी पीते. आर्ट एग्जीबीशन लगती. म्यूजिक कॉन्सर्ट होता. सब जुटते. यूथ भी. बूढ़े बुजर्ग भी. बुद्धिजीवी कैफे पसंद करने लगे. कैफे में मिलते. शांति, इंसाफ, पर्यावरण, गरीबी और समाजिक बदलाव की बात करते. फिर एक रोज आजाद ख्यालों की बात करने वाले इस कैफे की दीवारें उदास हो जाती हैं. सब उदास हो जाते हैं. पाकिस्तान में भी. और बाहर भी. कैफे शुरू करने वाली सबीन महमूद का इसी कैफे से 500 मीटर की दूरी पर कत्ल कर दिया जाता है.
किसने शुरू किया था T2F? सबीन महमूद. सबीन यानी ठंडी सुबह की हवा का झोंका, जो चेहरे को छू ले जो सब ताजा-ताजा लगने लगे. पाकिस्तानी ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट. एनजीओ के लिए काम करती थीं. ख्वाब था इंटरनेट की मदद से दुनिया को बेहतर बनाना. लोगों को सोशल प्लेटफॉर्म मुहैया कराने के लिए PeaceNiche ऑर्गेनाइजेशन बनाई. 2006-2007 में 'द सेकेंड फ्लोर' कैफे शुरू किया. ताकि लोग आएं. बहस करें. कलाकार अपनी फिल्म स्क्रीनिंग करवाएं. कवि, लेखक, नाटक करें. अपनी रचनाओं की बात करें. एक शेर भी तो है ऐसा ही..
मुख्तसर बातें करो बेजा वजाहत मत करो- बशीर बद्र
इस कैफे में पाकिस्तान के बड़े-बड़े लोग आने लगे. ISI पर जाबड़ किताब लिखने वाली आयशा सिद्दीका जैसी खुले ख्यालों वाली हस्तियां कैफे में आईं. खुलकर अपनी फ्रीडम ऑफ स्पीच का इस्तेमाल किया. कुछ को मिर्च लगीं. पर इसकी फिक्र कोई क्यों करे.
सबीन महमूद से क्यों चिढ़े? सबीन महमूद प्यारी सी मुस्कान लिए कैफे में लोगों को बुलाती. बात करती. कट्टरपंथियों की सुलगने लगी. ढकोसलेबाजी की दुकानें हिलने लगी. पाकिस्तान में बवाल की एक जड़ है न, बलूचिस्तान. वहां के लोग आजादी की मांग करते हैं. पाकिस्तानी सेना और सरकार आजादी वालों को दबाती रहती है. आरोप हैं कि आजादी मांगने वालों को दिनदहाड़ मार देती है वहां की आर्मी.
बलूचिस्तान से लापता हुए लोगों की तादाद भी बीते सालों में बढ़ी थी. 2005 से 2015 के बीच करीब 3 हजार लोग लापता हुए.
sabeen mahmud

T2F कैफे आजादी की ही तो बात करता था. सबीन महमूद इस आजादी की सिपहसलार. सही को सही, गलत को गलत कहने से पीछे नहीं हटती. बलूचिस्तान से लापता हुए लोगों पर T2F ने एक सेमिनार 'Unsilencing Balochistan-Take 2'
ऑर्गेनाइज किया. तारीख तय हुई 21 अप्रैल 2015. लेकिन ऑर्गेनाइजर्स को जान से मारने की धमकी मिली. जिस बंदे को डिस्कसन मॉर्डरेट करना था. वो पलट गया. फिर तय हुआ कि T2F ही सेमिनार ऑर्गेनाइज करेगा. सेमिनार की तारीख 21 से 24 अप्रैल कर दी गई. सबीन ने ट्वीट कर प्रोग्राम की जानकारी दी. ये दो ट्वीट सबीन के आखिरी ट्वीट थे.

https://twitter.com/sabeen/status/590447705245134848
https://twitter.com/sabeen/status/591633462236426240
सेमिनार फाइनली T2F में हुआ. उस रोज सबीन के साथ उनकी अम्मी भी थीं. सेमिनार खत्म हुआ. दोनों कार में बैठ घर की तरफ लौट ही रही थीं. तभी साद अजीज नाम का बंदा रहमान नाम के बंदे के साथ बाइक पर सवार होकर आया. और ड्राइविंग सीट पर बैठी सबीन को चार गोली मार दी. सबीन के साथ उनकी अम्मी भी थीं. पर वो बच गईं. अस्पताल ले जाते वक्त सबीन ने जिंदगी का साथ छोड़ दिया. पाकिस्तान में खुलकर बोलने वाली एक आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई.
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फोटो क्रेडिट: Reuters

पाकिस्तान की सियासत और आवाम की आंखों में उदासी छा गई. नवाज शरीफ समेत कई बड़ी हस्तियों ने दुख जताया. 20 मई को सबीन की हत्या का मास्टरमाइंड साद अजीज को बताया. पुलिस ने साद अजीज को अरेस्ट किया. ये वही बंदा था, जो सफूरा में बस पर हुए आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार था.
saad aziz
कराची से BBA की पढ़ाई कर चुका था साद नाज

'लूट-मार' में हुई लूटमार साल था 2011. 'द सेकेंड फ्लोर' कैफे में चल रही थी आर्ट एग्जीबीशन, लूटमार. 40 से ज्यादा लोग एग्जीबीशन में शिरकत करने पहुंचे थे. तभी वहां आए चार हथियारबंद बंदे. कैफे वालों को लगा कि एग्जीबीशन वाले हैं, इसलिए घुसने दिया. लेकिन वो सब निकले लुटेरे. रिवॉल्वर दिखाकर लूटपाट कर ली. लैपटॉप, फोन, कैश, कैमरा सब लूट लिया. करीब 70 हजार रुपये लोगों की जेब से निकलवा लिया. क्योंकि बाकी कैफे की तरह इसका हिसाब भी खुला दरबार वाला था. इसलिए सिक्योरिटी का इंतजाम भी नहीं किया गया था. 40 लोगों के साथ लूटपाट में लूटपाट हुई थी.
T2F का अब क्या हुआ... T2F अब भी चल रहा है. अब भी दिल फेंक ख्यालों के आजाद लोग जुटते हैं. गाते बजाते बतियाते हैं. वो सब करते हैं जो खुद में ये तसल्ली भर देता है कि हम आजाद हैं. T2F की वेबसाइट पर अप्रैल 2015 के आर्काइव में जाते हैं. तो उस प्रोग्राम की डिटेल नहीं मिलती. बस मिलती है तो एक कसक, कि उस कैफे को शुरू करने वाली अब नहीं है. 24 अप्रैल 2015 उसकी और T2F में उसकी जिंदगी का आखिरी प्रोग्राम था.
t2f

सबीन का ट्विटर अकाउंट
सबीन का ट्विटर अकाउंट

पढ़िए: 'सारे मुसलमान सबीन के साथ क्यों नहीं मर गए'



आजादी की बात करते हैं, तो याद आता है सोना महापात्रा का गाना- बेखौफ आजाद  है जीना मुझे

लीजिए सुनिए. और अपनी महसूस कीजिए. कि कितना जरूरी है हमारा और हमारे ख्यालों का आजाद रहना.
https://www.youtube.com/watch?v=SA4m_rcSwqs

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