13 जून 2016 (Updated: 13 जून 2016, 03:21 PM IST) कॉमेंट्स
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राजस्थान का एक गाँव. नितिन अपने पिता बनवारी लाल जाटव के साथ मिटटी ढो रहा है. मनरेगा में मजदूरी कर रहे हैं बाप-बेटा. तभी गाँव के प्रधान आ के बताते हैं: "भाई बनवारी, जोधपुर से फोन आया है. नितिन आईआईटी में सेलेक्ट हो गया."
क्या? भरोसा नहीं हो रहा किसी को.
खुशी तो पूरे गांव में छा गई. पिपेहरा गांव का लड़का आईआईटी में 499 रैंक लाया है. मजाक नहीं है.
पर दिक्कत अब शुरू हुई है. दलित वर्ग से आने के कारण फीस तो कम देनी पड़ेगी. पर बनवारी लाल के पास उतने पैसे भी नहीं है.
नितिन के दो भाई और एक बहन हैं. किसी तरह से घर का काम चलता है. बाप-बेटे ने मनरेगा में रजिस्टर करा रखा है. जब भी काम मिलता है, बारी-बारी करते हैं.
बनवारी लाल कहते हैं कि नितिन बचपन से ही पढ़ाकू था. किसी तरह 'नवोदय विद्यालय' में एडमिशन हो गया. दसवीं में 85% और बारहवीं में 84% नंबर लाया नितिन. आईआईटी की कोचिंग तो सपने में भी नहीं सोच सकता था. पर जोधपुर में गरीब बच्चों के लिए एक कोचिंग है: 'सुपर थर्टी'. नितिन ने टेस्ट दिया और पास हो गया.
नितिन उम्मीद कर रहा है कि कोई ना कोई तो मदद कर ही देगा. 'सुपर थर्टी' के टीचर दिनेश कहते हैं कि कहीं न कहीं से पैसे का जुगाड़ किया जायेगा.
ये तो सही बात है कि मेरिट जाति, धर्म से परे होता है. असल बात मौका मिलने की होती है. कोई भी मन लगाए तो सफल हो जायेगा. नितिन बहुत से पढ़नेवाले नौजवानों के लिए आदर्श बन जाएगा. लेकिन अभी उसे ये पता भी नहीं होगा. अभी तो वो अपनी फीस के बारे में सोच रहा है.
ये स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के साथ जुड़े ऋषभ श्रीवास्तव ने की है.