उमा भारती : एमपी की वो मुख्यमंत्री, जो पार्टी से निकाली गईं और फिर संघ ने वापसी करवा दी
जबकि सुषमा, अरुण जेटली और वेंकैया उमा की वापसी का विरोध कर रहे थे.

दी लल्लनटॉप आपके लिए लेकर आया है पॉलिटिकल किस्सों की ख़ास सीरीज़- मुख्यमंत्री. इस कड़ी में बात टीकमगढ़ की उस लड़की की, जो मधुर आवाज में कृष्ण भजन गाती और भागवत कथा सुनाती थी. फिर एक रोज उस इलाके की महारानी की उस पर नजर पड़ी और फिर सब कुछ बदल गया. एक साध्वी, जिसने सूबे में बीजेपी को सबसे बड़ी जीत दिलाई. एक नेता जिसने दर्जनों कैमरों के सामने बीजेपी हाईकमान को चुनौती दी. नाम है उमा भारती.
मुख्यमंत्री: उमा भारती की कुर्सी क्यों गई और कैसे मोहन भागवत ने उनकी वापसी करवाई?
अंक 1: भागवत को गुस्सा क्यों आता है?

2009 में मोहन भागवत ने बीजपी की कमान नितिन गडकरी के हाथ में दे दी थी.
लगातार दूसरी बार बीजेपी सत्ता में आने से चूक गई. साल था 2009. संघ ने बीजेपी पर शिकंजा कसा. राजनाथ और आडवाणी की विदाई तय हो चुकी थी. और नया मुखिया दिल्ली कोटरी से नहीं हुआ. नागपुर से भेजा गया. नितिन गडकरी. गडकरी का पहला बड़ा पलिटिकल असाइनमेंट. यूपी चुनाव. 2012. उसके पहले 2011 में एक बड़ी राजनीतिक मुसीबत आ गई. इसे गडकरी अपने दम नहीं सुलझा पा रहे थे.
वह भागे भागे पहुंचे, नागपुर. केशव भवन. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के पास. गडकरी बोले, 6 जून को लखनऊ में कार्यकारिणी बैठक है. मैं उन्हें वापस लेना चाहता हूं. मगर दिल्ली में बैठे नेता विरोध कर रहे हैं. सुषमा स्वराज और वैंकेया नायडू विरोध में इस्तीफे की धमकी दे रहे हैं. भागवत ने कहा.
'उसे मैं बीजेपी में भेज रहा हूं. अगर किसी को आपत्ति है तो इस्तीफा दे. फैसला नहीं बदलेगा.'

उमा भारती की बीजेपी में वापसी के मुद्दे पर सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू ने पार्टी से इस्तीफे की धमकी दी थी.
कौन था ये जिसकी बीजेपी में एंट्री के लिए संघ प्रमुख को वीटो लगाना पड़ा. जिसकी एंट्री के विरोध में सुषमा, वैंकेया थे. जवाब है उमा भारती. 7 जून 2011 को उमा ने अशोक रोड, दिल्ली स्थित केंद्रीय कार्यालय में बीजेपी ज्वाइन की. राजनीतिक प्रेक्षकों ने इसे उमा का दूसरा राजनीतिक जन्म कहा. दूसरा, मगर पहले बात करते हैं पहले जन्म की.
अंक 2: आपके अधिकारी गोवा में आराम कर रहे हैं
पीछे चलते हैं. थोड़ा बहुत नहीं. पूरे 6 साल पहले. 21 अगस्त 2004 को उमा भारती को इस्तीफा देना पड़ा. पार्टी से नहीं. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद से. वजह था एक गैर जमानती वॉरंट. यह वॉरंट 1995 के एक मामले का था, जिसमें उमा भारती ने एक आंदोलन के दौरान हजारों लोगों के साथ कर्नाटक के हुबली के विवादित ईदगाह में जाकर जबरदस्ती तिरंगा झंडा फहराया था.

उमा भारती ने हुबली के ईदगाह में जबरदस्ती जाकर तिरंगा फहराया था.
पर जेल जाने की नौबत आई अधिकारियों की लापरवाही के कारण. पहली लापरवाही ये कि कई बार ये वॉरंट एमपी आए, मगर अधिकारियों ने उमा भारती को बिना बताए उन्हें लौटा दिया. फिर इस गैर जमानती वॉरंट के सार्वजनिक होने के पहले उमा ने सीआईडी के डीआईजी एमपी द्विवेदी और महाधिवक्ता आरएन सिंह को कर्नाटक भेजा. इस उम्मीद से कि दोनों वहां कुछ जुगाड़ भिड़ाके वॉरंट निरस्त करवाएंगे. दीपक तिवारी ने अपनी किताब राजनीतिनामा में लिखा है कि ये वॉरंट तो नहीं टला. ये जरूर पता चला कि दोनों अधिकारी हुबली से 3 घंटे दूर पड़ने वाले गोवा में रुके हुए हैं.
रही सही कसर खुद बीजेपी ने संसद में पूरी कर दी. आंदोलन छेड़ रखा था कि लालू यादव, तस्लीमुद्दीन, जयप्रकाश यादव, एमए फातमी जैसे दागी मंत्रियों को जब तक केंद्रीय मंत्रिमंडल से नहीं हटाया जाएगा, वो चैन से नहीं बैठेंगे. ये दबाव उमा भारती पर बैक फायर कर गया. इस तरह मुख्यमंत्री बनने के 258 दिन बाद उमा भारती को इस्तीफा देना पड़ा. उमा के साथ में 24 मंत्रियों ने इस्तीफा दिया.

उमा भारती ने जब इस्तीफा दिया तो बाबू लाल गौर सीएम बने. उस वक्त तय ये हुआ था कि जब भी उमा भारती कहेंगी, बाबू लाल गौर इस्तीफा दे देंगे.
जानकार कहते हैं कि उमा भारती ने ये फैसला इसलिए भी लिया कि उन्हें लगता था कि तिरंगे के नाम पर ये कुर्बानी उन्हें और बड़ा नेता बना देगी. पर ये उमा भारती के जीवन की सबसे बड़ी गलती साबित हुई. उमा भारती के इस्तीफे के बाद का भी एक किस्सा सुनिए. उमा खुद पद छोड़ने के बाद बाबूलाल गौर को सीएम बनाने को तैयार हुईं. सीएम बनने के बाद उमा ने उन्हें सीएम हाउस स्थित 21 देवी-देवताओं के सामने गंगाजल उठाकर शपथ दिलवाई. शपथ इस बात की थी कि जब उमा कहेंगी, गौर इस्तीफा दे देंगे. हालांकि जब शिवराज के सीएम बनने की बारी आई और उमा ने गौर को इस्तीफा न देने को कहा तो गौर बोले- आपने मुझे जब आप कहें इस्तीफा देने की कसम खिलाई थी. इस बात की नहीं कि मैं इस्तीफा नहीं दे सकता.
अंक 3: एक साध्वी की सत्ता कथा
3 मई 1959. टीकमगढ़ के डुंडा गांव में उमा लोधी पैदा हुईं. कम उम्र में ही वो भागवत का पाठ करने लगीं. उनकी कथा मशहूर हुई तो खबर राजमाता विजयाराजे सिंधिया तक पहुंची. 1984 में सिंधिया ने उमा को खजुराहो से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा दिया. वह हार गईं. लेकिन संघ, बीजेपी और विहिप के करीब आ गईं. राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय हो गईं. इन्हीं सबके बीच 1989 में खजुराहो से लोकसभा सदस्य भी बन गईं.

उमा भारती को राम मंदिर आंदोलन में सक्रियता का फायदा मिला. वो संघ, विहिप और बीजेपी के ज्यादा करीब आ गईं.
उन दिनों दो महिला संतों के भाषण की कैसेट बहुत मशहूर हुईं. साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती. राम मंदिर तो अभी तक नहीं बना, लेकिन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिर गई. फिर एमपी में बीजेपी की पटवा सरकार भी. नई सरकार बनी दिग्विजय की. अगले 10 साल के लिए. दिग्गी दो बार चुनाव जीते, दोनों बार उनकी जीत में एमपी बीजेपी की गुटबाजी ने भरपूर सहयोग दिया.
इसलिए दिग्गी को तीसरी जीत से रोकने के लिए उमा को तैनात किया गया. चुनावी साल से एक साल पहले यानी 2002 में. तब उमा भोपाल से सांसद और अटल सरकार में कैबिनेट में मंत्री थीं. पार्टी ने उमा से प्रदेश अध्यक्ष बनने को कहा, उन्होंने इनकार कर दिया. लेकिन अपनी पसंद के दो लोग तैनात करवा दिए. विक्रम वर्मा की जगह कैलाश जोशी को अध्यक्ष बनवाया और गौरीशंकर शेजवार की जगह बाबूलाल गौर को नेता प्रतिपक्ष. मगर सबसे अहम बदलाव था तीसरा, कृष्णमुरारी मोघे की जगह कप्तान सिंह सोलंकी को संगठन मंत्री बनाया गया. यही कप्तान सिंह अभी त्रिपुरा के राज्यपाल हैं.

जब बीजेपी ने उमा भारती को एमपी बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनने को कहा, तो उमा ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर कैलाश जोशी को बिठा दिया. नेता प्रतिपक्ष बने बाबूलाल गौर.
मगर उमा को कमान देना बीजेपी आलाकमान के लिए आसान नहीं रहा. प्रदेश में हो रहे दिग्विजय विरोधी आंदोलनों में उनकी सक्रियता देख विरोध भी शुरू हो गया. लेकिन चुनाव से छह महीने पहले प्रमोज महाजन की सलाह पर लाल परेड मैदान की रैली में अटल ने उमा के नाम का ऐलान कर दिया. इसके बाद सबके ताजिए ठंडे हो गए. उमा भारती आईं तो विकास के साथ हिंदुत्व का मसला भी लाईं. बिपासा, यानी बिजली, पानी, सड़क पर उन्होंने दिग्विजय के 10 साल के कुशासन को जिम्मेदार ठहराया. उन्हें मिस्टर बंटाधार कहा. साथ ही धार की भोजशाला जैसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मसले भी सुर्खियों में लौटे.
फिर आया एमपी में गुजरात. रूपकों में. नरेंद्र मोदी ने एक रथ पर सवार हो 2002 का गुजरात चुनाव जीता था. और उसके पहले गुजरात गौरव यात्रा निकाली थी. प्रमोद महाजन ने वही रथ एमपी में दौड़ा दिया. इस पर सवार उमा भारती ने संकल्प यात्रा निकाली और नारा दिया.
'आप सत्ता का परिवर्तन करो, हम व्यवस्था परिवर्तन करेंगे.'

उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी 230 में से 173 सीटें जीती थी. इसके बाद उमा भारती सीएम की कुर्सी पर बैठी.
सत्ता परिवर्तन हो गया. बीजेपी ने 230 में से 173 सीटें जीतीं. कांग्रेस 38 पर सिमट गई. जिस वक्त नतीजे आए, उमा भोपाल में नहीं थीं. वह सतना की मैहर देवी के मंदिर में बैठी पूजा कर रही थीं. शाम को करीब 5.30 बजे वो हेलिकॉप्टर से भोपाल में लाल परेड मैदान पर उतरीं. उस शाम मैदान में बिना न्योते की रैली लग रही थी. 8 दिसंबर 2003 को यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और एमपी के गवर्नर रामप्रकाश गुप्ता ने उमा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई. उसी लाल परेड मैदान में, जहां 1990 में पटवा ने शपथ ली थी.
अंक 4: कल दसमूराम की दुकान खुलेगी

मुख्यमंत्री बनने के बाद उमा भारती जनता दरबार लगाती थीं.
मुख्यमंत्री बनते ही उमा भारती ने धड़ाधड़ फैसले लेने शुरू किए. पहली कैबिनेट बैठक में ही 28 हजार दैनिक वेतन भोगियों को परमानेंट करने का आदेश दिया. 90 आदिवासी ब्लॉकों के 14 लाख बच्चों को दलिया की जगह पूरा पका खाना देने की योजना शुरू की. दिग्गी राज के आदी हो चुके अधिकारियों पर नकेल कसी. कैबिनेट मीटिंग के फैसले लीक हुए तो अधिकारियों को इस मीटिंग से बाहर रखने का फैसला किया.
श्यामला हिल्स स्थित मुख्यमंत्री आवास में पहुंचते ही उमा ने जनता दरबार शुरू किया. हर मंगलवार. कुछ ही दिनों में हालात बेकाबू होने लगे. हजारों की भीड़. फिर संभालने के लिए पुलिस की लाठियां. लोगों की बेतरह मांगें. झुंझलातीं उमा. और अखबारों में सुर्खियां. इस वाकये को सुनिए. जनता दरबार में पहुंचे दसमूराम. घंटों लाइन में इंतजार के बाद सीएम के सामने पहुंचे.
उमा ने पूछा-
'क्या समस्या है.'
दसमूराम बोले-
'बेरोजगार हूं.'
उमा बोलीं-
'चाय की दुकान क्यों नहीं कर लेते.'
दसमूराम बोले
'कहां करें दीदी.'
उमा ने तुरंत अपने सहयोगी को बुलाया और आदेश दिए, कल से मेरे आवास के गेट नंबर 6 के बाहर दसमूराम चाय की दुकान चलाएंगे. पर सबकी किस्मत दसमूराम सी नहीं थी. पूरे सूबे में बेरोजगारी का आलम था. कुछ ही महीनों में जनता दरबार बंद करना पड़ा.
अंक 5: मुझसे शादी करना चाहते थे गोविंदाचार्य

उमा भारती ने कहा था कि गोविंदाचार्य उनसे शादी करना चाहते थे.
1 मई 2004. गवर्नर रामनरेश गुप्त का निधन हो गया. 30 जून को नए राज्यपाल डॉ. बलराम जाखड़ ने शपथ ली. उसी दिन एक किताब का विमोचन था. भोपाल के रविंद्र भवन में. कार्यक्रम में पूर्व पीएम चंद्रशेखर, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष कैलाश जोशी, संगठन मंत्री कप्तान सिंह और गोविंदाचार्य बैठे थे.
उमा मंच पर आईं और एकाएक अपने और गोविंदाचार्य के निजी संबंधों पर बोलना शुरू कर दिया. उमा ने कहा, 1991 के लोकसभा चुनावों के बाद गोविंदाचार्य ने मुझसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की थी. पर ये बात जैसे ही मेरे भाई स्वामी लोधी को पता चली तो उन्होंने इस प्रस्ताव को तत्काल खारिज कर दिया. फिर एक साल बाद 17 नवंबर 1991 को मैंने संन्यास ले लिया. उमा के इस बयान के बाद हॉल में एक असहज चुप्पी छा गई. संघ को भी उनका बड़बोलापन रास नहीं आया.
अंक 6: क्या एंटी उमा थे मोदी और महाजन?

नरेंद्र मोदी और प्रमोद महाजन ने उमा भारती की तिरंगा यात्रा को अपने यहां हरी झंडी नहीं दी थी.
उमा के सत्ता में आने के छह महीने के अंदर ही केंद्र की वाजपेयी सरकार चली गई. इसके बाद बीजेपी नेताओं की कलह खुलकर बाहर आ गई. सबका ध्यान चार राज्यों पर. जहां बीजेपी सरकार थी. गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश. इसमें नरेंद्र मोदी दिल्ली की महीन सियासत सीखकर आए थे. आराम से काम कर रहे थे. वसुंधरा को भैरो सिंह का बैकअप हासिल था. छत्तीसगढ़ में किसी की ज्यादा दिलचस्पी नहीं.
बचा एमपी. जहां की सीएम उमा अति सक्रिय नजर आ रही थीं. वह राजनीतिक मधुरता के टंटे में नहीं पड़तीं. सीधे भिड़ जातीं. फिर चाहे सामने संघ वाला हो या संगठन वाला. इन सबने उनकी वापसी की राह खत्म की. वापसी क्यों. क्योंकि तिरंगा विवाद के बाद उनका इस्तीफा हो गया था. तब उमा ने एक शर्त रखी थी. कि कोर्ट से राहत पाने के बाद वह पूरे देश में तिरंग यात्रा निकालेंगी. और इसके बाद फिर एमपी संभालेंगी. आलाकमान ने तब दूतों के जरिए हामी भर दी.

सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और वेंकैया नायडू भी उमा की तिरंगा यात्रा के खिलाफ थे.
कुछ ही महीनों में कर्नाटक सरकार ने उमा के खिलाफ केस वापस ले लिया. अब वह यात्रा की तैयारी में जुट गईं. कुछ ही महीनों में महाराष्ट्र में चुनाव थे. इनका हवाला देकर प्रमोद महाजन और वैंकेया नायडू ने यात्रा का विरोध किया. अटल-आडवाणी से कहा कि इससे ध्यान भटकेगा. उमा फिर भी अड़ी रहीं. पार्टी की दिल्ली कोटरी का एक बड़ा हिस्सा उनसे खफा हो गया. खफा के पीछे खौफ भी था. उमा की यात्रा शुरू हो चुकी थी. इसे कर्नाटक और महाराष्ट्र में जबरदस्त रेस्पॉन्स मिला था. समर्थकों को लगा, बीजेपी को अटल-आडवाणी के बाद कौन का जवाब मिल रहा है. और इसी टेक पर पार्टी में उनके विरोधी एक हो गए. इसमें गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी भी थे और अटल के खास प्रमोद महाजन भी. आडवाणी कोटरी के सुषमा स्वराज और नायडू जैसे लोग भी साथ हो लिए. और इन सबके पीछे अरुण जेटली तो सक्रिय थे ही.
सबसे पहले, उमा को चिढ़ाता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नायडू का बयान आया. सितंबर 2004 में. कि उमा के वापस सीएम बनने का कोई प्रस्ताव नहीं है. फिर मुंबई बीजेपी ने कहा, हम चुनावी तैयारियों में व्यस्त हैं. यात्रा यहां न लेकर आएं. ये महाजन के इशारे पर किया गया. यात्रा जैसे तैसे यूपी के मथुरा में पहुंची. उमा अब तक खीझ चुकी थीं. उन्होंने फिर से कोप भवन में जाने का फैसला किया. सार्वजनिक रूप से ऐलान कर दिया. राजनीति से संन्यास का. अटल बिहारी ने बीच-बचाव किया. उसी के तहत अमृतसर के जलियांवाला बाग में जब उनकी यात्रा खत्म हुई तो वाजपेयी आशीर्वाद देने पहुंचे.
अंक 7: आडवाणी जी, मैं आपको चुनौती देती हूं

उमा भारती ने सीधे तौर पर लाल कृष्ण आडवाणी को चुनौती दे दी थी. इसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया.
नवंबर 2004. धनतेरस का दिन. बीजेपी मुख्यालय में मीटिंग. कमरे में टीवी पत्रकार और कैमरे भी मौजूद थे. पार्टी अध्यक्ष आडवाणी ने बोलना शुरू किया. कुछ लोग पूछते हैं कि उमा भारती, मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन जैसे नेता एक दूसरे के खिलाफ क्यों बयान देते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता. ये तरीका बंद होना चाहिए...आडवाणी का इतना बोलना था कि उमा खड़ी हुईं और बोलीं
'इस हॉल में 4-5 नेता बैठे हैं जो मेरे खिलाफ ऑफ द रिकॉर्ड ब्रीफिंग कर अखबारों में खबरें छपवाते हैं. मुझे अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए सफाई देनी पड़ती है. इसे अनुशासनहीनता कहा जा रहा है. जो लोग राज्यसभा में बैठे हैं उन्हें कुछ काम तो है नहीं, बस यही करते हैं.'
अब आडवाणी बोले-
'मैं कह चुका हूं. ये विषय समाप्त हो चुका है. आप बैठ जाइये.'
पर उमा नहीं मानीं. आडवाणी को कार्यवाही करने की चुनौती देकर मीटिंग से निकल गईं. उन्हें निलंबित कर दिया गया. उमा ने अयोध्या जाने का ऐलान किया. उन्हें लगा पार्टी फिर मनाएगी. मगर वह गलत थीं. डेढ़ दो बरस कुढ़ने और यात्रा करने के बाद उन्होंने वो करने की ठानी, जिससे बीजेपी सबसे ज्यादा डरती. एक नई पार्टी. 30 अप्रैल 2006 को उज्जैन में उन्होंने भारतीय जनशक्ति पार्टी (बीजेएस) का ऐलान किया.

बीजेपी से निकाले जाने के बाद उमा भारती ने अपनी पार्टी बनाई भारतीय जनशक्ति पार्टी.
2008 के चुनाव में उमा की पार्टी ने बीजेपी का नुकसान नहीं बल्कि फायदा किया. एंटी इनकमबैंसी वोट बीजेएस और कांग्रेस के बीच बंट गया. 213 सीटों पर लड़ी भारतीय जनशक्ति पार्टी केवल 6 सीटों पर जीत सकी. उमा खुद टीकमगढ़ में कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह से 9000 वोटों से हार गईं.
कुछ बरसों बाद उमा को समझ आ गया. पार्टी चलाना उनके बूते की बात नहीं. उधर उनके सखा गोविंदाचार्य लगातार संघ प्रमुख के सामने लॉबीइंग कर रहे थे. इसी आलोक में 2011 में उनकी वापसी हुई. मगर एक शर्त पर. जिसे रखा था मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज ने. कि दीदी एमपी से दूर रहेंगी.

2012 में यूपी के चुनाव में नितिन गडकरी ने उमा भारती को सीएम फेस प्रोजेक्ट किया था.
गडकरी की भी यही योजना थी. 2012 के चुनाव में उन्हें यूपी में पार्टी का सीएम फेस घोषित किया गया. उमा अपनी लोध जाति की बहुलता वाली हमीरपुर की चरखारी सीट से विधायकी भी लड़ीं. वह चुनाव जीतीं, मगर पार्टी सूबे में लगातार तीसरी बार बुरी तरह हारी. दो साल बाद यूपी में बीजेपी का पुराना जलवा कायम हुआ. क्योंकि अब मोदी युग शुरू हो चुका था. उमा को भी इस दफा लोकसभा के लिए यूपी की झांसी सीट से लड़ाया गया. ताकि आसपास के लोधी वोटरों के बीच दुरुस्त संदेश जाए. उमा बड़े अंतर से जीतीं और फिर गंगा सफाई मंत्री बनीं. गंगा की हालत तो नहीं बदली, मगर उमा का मंत्रालय बदल गया. और सियासत. बदली है. चल रही है.
वीडियो- राजनीति के गेम में एक्सपर्ट नेता, जो सिर्फ एक चुनाव मैनेज कर पाया