'हिंदू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं है', RSS प्रमुख मोहन भागवत ने ऐसा क्यों कहा?
मोहन भागवन ने संघ के पुराने बयान को फिर दोहराया. उन्होंने कहा कि भारत में कोई “अहिंदू” नहीं है, क्योंकि यहां रहने वाले सभी लोग,चाहे मुसलमान हों या ईसाई, एक ही पूर्वजों के वंशज हैं.

मोहन भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के पंजीकरण पर उठ रहे सवालों पर जवाब दिया है. 9 नवंबर को भागवत ने कहा कि कई चीज़ें पंजीकृत नहीं हैं, यहां तक कि हिंदू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं है. RSS प्रमुख ने कहा
"हमें तीन बार प्रतिबंधित किया गया, यानी सरकार ने हमें मान्यता दी थी. अगर हम होते ही नहीं, तो वे किस पर प्रतिबंध लगाते? हर बार अदालतों ने प्रतिबंध हटा दिया और RSS को एक क़ानूनी संगठन के रूप में मान्यता दे दी गई. संसद और अन्य जगहों पर कई सवाल उठाए गए हैं. क़ानूनी तौर पर, हम एक संगठन हैं. हम असंवैधानिक नहीं हैं. इसलिए, पंजीकरण की कोई ज़रूरत नहीं है. वैसे तो, हिंदू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं है."
भागवत बेंगलुरु में “संघ की 100 वर्ष की यात्रा: नए क्षितिज” कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम में सवाल जवाब के दौरान उन्होंने ये बयान दिया. भागवत ने कहा संघ की स्थापना 1925 में हुई थी, तो क्या ब्रिटिश सरकार के पास पंजीकरण कराया जाता. उन्होंने कहा
"आप जानते हैं कि संघ की शुरुआत 1925 में हुई थी. क्या आप हमसे यह उम्मीद करते हैं कि हम ब्रिटिश सरकार के पास जाकर रजिस्ट्रेशन कराते. जिनके ख़िलाफ़ हम काम कर रहे थे. आज़ादी के बाद, स्वतंत्र भारत के क़ानून पंजीकरण को अनिवार्य नहीं बनाते. अपंजीकृत व्यक्तियों को भी क़ानूनी दर्जा दिया गया है, इसलिए हमें इसी श्रेणी में रखा गया है और एक संगठन के रूप में मान्यता दी गई है."
RSS प्रमुख का ये बयान कांग्रेस पर पलटवार है. कांग्रेस ने हाल ही में कहा था कि RSS रजिस्टर्ड संगठन नहीं है. उनकी यह टिप्पणी उस वक्त आई जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. उनके बेटे और कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खरगे ने भी सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों पर RSS की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी. उन्होंने यह सवाल भी उठाया था कि RSS का पंजीकरण नंबर क्या है और इसके फंडिंग कहां से आती है.
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प्रियंक खरगे के टैक्स चोरी वाले बयान पर भागवत ने कहा कि आयकर विभाग और अदालत ने RSS को “व्यक्तियों का समूह” (Body of Individuals) के रूप में मान्यता दी है.
उन्होंने कहा कि संगठन को आयकर से छूट दी गई है.
भागवत ने भगवा ध्वज को लेकर उठ रहे सवालों पर भी जवाब दिया. उन्होंने कहा कि हालांकि संगठन के भीतर भगवा को गुरु माना जाता है, लेकिन वह भारतीय तिरंगे का भी बहुत सम्मान करते हैं. उन्होंने कहा,
"राष्ट्रीय ध्वज पहली बार 1933 में पारंपरिक 'भगवा' रंग का होना तय किया गया था, लेकिन महात्मा गांधी ने कुछ कारणों से हस्तक्षेप किया और तीन रंगों का सुझाव दिया, जिसमें सबसे ऊपर 'भगवा' हो. संघ ने हमेशा तिरंगे ध्वज का सम्मान किया है."
इसके साथ ही मोहन भागवन ने संघ के पुराने बयान को भी दोहराया. उन्होंने कहा कि भारत में कोई “अहिंदू” नहीं है, क्योंकि यहां रहने वाले सभी लोग,चाहे मुसलमान हों या ईसाई, एक ही पूर्वजों के वंशज हैं, और देश की मूल संस्कृति हिंदू संस्कृति है.
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