The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • Manual Scavengers Consist Of 9...

देश में 58,000 मैला ढोने वाले, इनमें से 97 प्रतिशत दलित, सरकार ने दी जानकारी

2013 में हाथ से मैला ढोने को कानून बनाकर प्रतिबंधित किया जा चुका है.

Advertisement
Img The Lallantop
भारतीय समाज में हाथ से मैला साफ करने की कुप्रथा प्रमुखता से जातिगत है. इसलिए ज्यादातर Manual Scavengers दलित समुदाय से आते हैं. (सांकेतित फोटो: PTI)
pic
मुरारी
4 दिसंबर 2021 (Updated: 4 दिसंबर 2021, 09:05 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
केंद्र सरकार ने हाथ से मैला उठाने के काम में लगे लोगों का जातिगत आंकड़ा पेश किया है. सरकार के मुताबिक, इस काम में लगे 97 प्रतिशत से अधिक लोग दलित समुदाय से आते हैं. सरकार की तरफ से ये आंकड़े राज्य सभा में पूछे गए सवाल के जवाब में जारी किए गए. ये सवाल राष्ट्रीय जनता दल के नेता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने पूछा था. हाथ से मैला उठाने को साल 2013 में कानून बनाकर प्रतिबंधित किया जा चुका है. हालांकि, इसके बाद भी लोग ये काम करने के लिए मजबूर हैं.
राज्य सभा सांसद मनोज कुमार झा ने तीन सवाल पूछे थे.
  • हाथ से मैला ढोने में शामिल व्यक्तियों की जाति-आधारित अलग-अलग संख्या क्या है?
  • सरकार ने हाथ से मैला उठाने वालों को आर्थिक प्रणाली में शामिल करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
  • सरकार ने इस प्रथा को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के लिए क्या-क्या प्रयास किए हैं?
राज्य सभा की वेबसाइट के मुताबिक, केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय ने बताया कि देश में कुल 58,098 लोग हाथ से मैला साफ करने यानी मैनुअल स्कैवेंजिंग के काम में लगे हुए हैं. मंत्रालय ने आगे बताया कि इनमें से 43,797 लोगों की ही जातिगत पहचान हो पाई है. इनमें से 42,594 लोग SC समुदाय से आते हैं. इसके अलावा 421 लोग आदिवासी और 431 लोग ओबीसी समुदाय से संबंध रखते हैं.
राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सांसद मनोज झा. (फोटो: PTI)
राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सांसद मनोज झा. (फोटो: PTI)

हाथ से मैला उठाने वालों को आर्थिक प्रणाली में शामिल करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? इस सवाल के जवाब में मंत्रालय की ओर से बताया गया है कि हाथ से मैला ढोने वालों को दूसरे कामों में लगाया जा रहा है. वहीं उन्हें आर्थिक सहायता भी दी जा रही है. मसलन, एक पहचानशुदा मैनुअल स्कैवेंजर को 40 हजार रुपये की एकमुश्त राशि दी जी रही है. साथ ही साथ हाथ से मैला ढोने वालों को कौशल विकास प्रशिक्षण और इस प्रशिक्षण के दौरान तीन हजार रुपये प्रति महीने की दर से वजीफा दिया जा रहा है.
Govtdata
केंद्र सरकार की तरफ से दिया गया डेटा. (फोटो: राज्य सभा)

सरकार ने ये भी बताया कि स्वरोजगार परियोजनाओं के तहत लोन लेने वाले मैनुअल स्कैवेंजर्स को पांच लाख रुपये तक की पूंजीगत सब्सिडी दी जा रही है. साथ ही साथ उन्हें और उनके परिवारों को स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का लाभ दिया गया है. तीसरे सवाल के जवाब में सरकार की तरफ से 2013 में बने कानून का हवाला दिया गया. मैनुअल स्कैवेंजिंग आपराधिक है भारतीय समाज में हाथ से मैला साफ करने का काम जातिगत कुप्रथा है. इस कुप्रथा को साल 1993 में ही प्रतिबंधित कर दिया गया था. बाद में साल 2013 में कानून बनाकर इसे अपराध घोषित कर दिया गया, जिसके लिए सजा का प्रावधान भी है. कोई भी व्यक्ति अगर किसी से मैनुअल स्कैवेंजिंग कराता है तो उसे दो साल तक जेल जाना पड़ सकता है या फिर एक लाख रुपये का जुर्माना देना पड़ सकता है. दोनों सजाएं भी हो सकती हैं. कानून के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति या एजेंसी सीवर और सेप्टिक टैंक साफ करने के खतरे भरे काम के लिए भी किसी व्यक्ति को हायर नहीं कर सकती है.
इस कानून के बाद भी लोग ये काम करने के लिए मजबूर हैं. इस कुप्रथा के खिलाफ संघर्ष कर रही संस्था सफाई कर्मचारी आंदोलन का दावा है कि आज भी करीब 7.7 लाख लोगों को नालों और गटरों को साफ करने के लिए भेजा जाता है. यही नहीं, इन्हें जरूरी सुरक्षा उपकरण भी नहीं दिए जाते. जिससे कई बार जहरीली गैस सूंघने से उनकी मौत हो जाती है. संस्था का कहना है कि इस वजह से अभी तक 1,760 लोगों की मौत हो चुकी है.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement