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मां की हत्या करके लाश पकाकर खा गया, कोर्ट ने कोई रहम नहीं दिखाया

आरोपी के पेट में से निकाला सैम्पल

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कोल्हापुर के सेशन कोर्ट ने 35 साल के सुनील रामा कुचकोरवी को अपनी मां की जघन्य हत्या का दोषी पाया. उसे फांसी की सजा सुनाई गई. (फोटो-आजतक)
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अमित
9 जुलाई 2021 (Updated: 8 जुलाई 2021, 04:48 AM IST)
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महाराष्ट्र के कोल्हापुर की एक अदालत 8 जुलाई ने मां की हत्या के मामले में आरोपी 35 वर्षीय सुनील को मौत की सजा सुनाई है. जिला और सत्र न्यायाधीश महेश जाधव ने हत्या को 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' यानी दुर्लभतम मामला बताया. हत्या के बाद शव खाने की कोशिश की हां. आपने सही पढ़ा. वारदात 28 अगस्त 2017 की है. महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले की मकड़वाड़ा सोसाइटी. दोपहर दो बजे आरोपी सुनील रामा कुचकोरवी ने अपनी 62 साल की मां यल्लवा रामा कुचकोरवी से शराब के पैसे मांगे. जब यल्लवा ने पैसे देने से मना कर दिया तो सुनील को गुस्सा आ गया. उसने धारदार हथियार से अपनी मां की हत्या कर दी. जब पड़ोस के लोगों को घटना की जानकारी मिली तो सुनील फरार होने लगा. लोगों ने उसे पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया. पुलिस ने जांच कर उसके खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया. पुलिस के मुताबिक आरोपी ने हत्या करने के बाद शव के टुकड़े कर दिए थे और उन्हें पकाने की कोशिश कर रहा था. उसके मुंह पर भी खून लगा हुआ था. पुलिस ने मामले में 12 गवाहों को पेश किया. हालांकि हत्या का कोई भी प्रत्यक्षदर्शी नहीं मिला. ऐसे में कोर्ट ने परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर सुनील को दोषी ठहराया. पुलिस भी चौंक गई इस केस की जांच करने वाले इंस्पेक्टर एस.एस मोरे ने केस को सुलझाने के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग की मदद ली. मोरे ने अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया,
“ मैंने अपने पुलिस करियर में मुंबई से लेकर नक्सल प्रभावित इलाकों में कई शव देखे हैं. ये उनमें सबसे जघन्य था. हमने सावधानी से आरोपी के पेट के अंदर, हाथ और पांव से डीएनए सैंपल जुटाए. सभी सैंपल मृतक से मेल खा गए. सभी 12 गवाहों ने भी हमारा साथ दिया. उसके अलावा मर्डर की जगह के हालात और शव की दशा ये बताने के लिए काफी थी कि आरोपी ने कितनी बर्बरता की है.”
फैसला आने के बाद जिले के एसपी ने केस से जुड़ी टीम के लिए 15 हजार रुपए का पुरस्कार घोषित किया है. कोर्ट ने आरोपी सुनील को मृत्युदंड देने के अलावा 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. अगर आरोपी इसे नहीं भरता है तो उसे 6 महीने जेल में गुजारने होंगे. इधर बचाव पक्ष के वकील ने फैसले को लेकर असंतुष्टि जताई है. बचाव पक्ष के वकील विजय लंबोरे ने बताया कि
“आरोपी के रिश्तेदार इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं. वो इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील करेंगे. हमने केस से जुड़े सभी कागजात रिश्तेदारों को सौंप दिए हैं जिससे वो अगला कानूनी कदम उठा सकें.”
बता दें कि साल 2000 से 2020 के बीच देशभर में 10 लोगों को फांसी पर लटकाया गया है. हर साल मौत की सजा पर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली 'प्रोजेक्ट 39 ए' नाम से एक रिपोर्ट निकालती है. साल 2020 की इस रिपोर्ट के मुताबिक 31 दिसंबर 2020 तक देश भर की जेलों में 404 ऐसे कैदी थे, जो फांसी का इंतजार कर रहे थे. इनमें सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में थी. यहां की जेलों में फांसी की सजा पाए 59 कैदी बंद हैं. इसके बाद महाराष्ट्र में 45 और मध्यप्रदेश की जेलों में ऐसे 37 कैदी बंद हैं.

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