गाय अगर माता है, तो नीलगाय शैतान की ख़ाला है
फसल की नास पीटने वाली नीलगाय में घरेलू गाय वाली कोई क्वालिटी नहीं होती. उसे सिर्फ नाम की वजह से फायदा मिलता है. लेकिन उसने केंद्र सरकार के दो मंत्रियों को लड़ा रखा है.
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फोटो - thelallantop
पहली बार ये सब हो रहा है. एनवॉयर मिनिस्टर ने जोर लगाकर जानवर मरवाने का बीड़ा उठाया है. बाकायदा पूछ रहे हैं राज्यों से कि कौन कौन से जानवर मारने हैं. और ऑर्डर दिए हैं कि बंगाल में हाथी, गोआ में मूर, हिमांचल प्रदेश में बंदर मारे जाएं. हमने RTI से पता किया कि उनसे किसी स्टेट ने नहीं कहा जानवर मारने को. जिन गांवों में नुकसान होता है वहां के किसी सरपंच ने लिखकर नहीं दिया. स्टेट का अधिकार नहीं है जानवरों को मारने का. इसके लिए एनवॉयर मिनिस्ट्री की परमीशन लेनी पड़ती है.प्रकाश जावड़ेकर:
किसने क्या कहा इसपर मैं कुछ नहीं कहूंगा. हम कानून के हिसाब से काम कर रहे हैं. किसानों की फसल को नुकसान होता है तो स्टेट गवर्नमेंट हमसे इजाजत मांगते हैं.हर सींग पूंछ वाला जानवर गाय नहीं होती अगर गांव देहात में खेत खलिहान में रहे हो तो नीलगाय से पाला पड़ा होगा. फसल के लिए बहुत सत्यानाशी जानवर है. ये समझ लो कि अगर गाय माता है, तो ये खाता है. सारी फसल खा जाता है. खाते कम खौंदते ज्यादा हैं. इनसे फसल बचाने के लिए किसान कौनो जुगाड़ बचा के रखें ये हो नहीं सकता. कुत्ते लेकर खेत में सोते हैं. मचान बनाकर उस पर सोते हैं. घर का एक आदमी चउबिस घंटा खेत में बना रहता है. उसमें कंटीला तार बांधा जाता है. चमकीली पन्नी लगाई जाती है. गुलेल लेकर निशाना लगाया जाता है. इतना सब करने के बाद भी फसल चट जाती है. एक झुंड जाता है दूसरा आता है. रोड पर आ जाएं तो समझ लो एकाध कांड निश्चित है. अगर इनके आगे मोटर साइकिल आ गई तो इतना जोर से उछल कर मारती हैं कि गाड़ी वाला सीधे नाली में मिले जाकर. इतना सब बवाल करने के बाद भी वो आखिर है तो जानवर ही. उनसे फसल बचाने का कोई और तरीका निकालना चाहिए. उनकी जान लेना सही नहीं है. थोड़े में जान लो कि ये नीलगाय है क्या चीज. और कैसे ये गाय से अलग है. घोड़े के बराबर इनका जिस्म होता है. लेकिन भागते हैं ऐंचातानी. घोड़ा जैसा सिस्टम इनके अंदर नहीं होता. लेकिन ताकत बहुत होती है. नीलगाय इसको कहते हैं मारे कनफ्यूजन में. दरअसल नीला तो इनका सांड होता है. उनका कलर थोड़ा नीला होता है. मादा भूरी होती है. https://www.youtube.com/watch?v=_6RuIuO082o 1: इनकी सबसे बड़ी खासियत है सूंघने की क्षमता. कोसों दौड़कर डायरेक्ट हरे भरे खेत में कैसे कूद जाती हैं. कैसे इनको पता लगता है कि किस खेत में 'अच्छा माल' लगा है? इनकी नाक से. 2: एक क्वालिटी और है. नर और मादा दोनों अलग अलग झुंड में रहते हैं. एक झुंड में नर और मादा मिलते हैं सिर्फ सेक्स के टाइम. उसमें भी एक मादा के लिए ढेर सारे नर लड़ते हैं. उनमें से एक को मौका मिलता है. सब निपटाकर झुंड फिर अलग हो जाते हैं. 3: इनके झुंड की क्वालिटी देखो. जब इनको सुस्ताना होता है. तो खुले मैदान में आपस में पीठ टिकाकर बैठते हैं. पूरी तरह सतर्क होकर. पीठ ऐसे टिकाते हैं कि हर तरफ किसी न किसी की मुंडी रहे. जरा सा खतरा हो बस सब निपटने को तैयार. 4: जो बच्चे पैदा होते हैं वो पूरे झुंड की जिम्मेदारी होते हैं. किसी एक मम्मी पर उनका बोझ नहीं होता. जब भी भूख लगे किसी भी नीलगाय का दूध पी लेते हैं जाकर. हमारी घरेलू गायों में ऐसा हो सकता है भला? लात मार के मुंह तोड़ दें लेरुवे का. 5: नीलगाय भले कितनी सत्यानाशी हो. इसको फायदा मिलता है इसके साथ 'गाय' लगा होने का. अगर उसे माता मानते हैं तो इसको भी मौसी मान ही लेंगे. लेकिन दोनों में कोई मेल नहीं है.