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सेकुलरों को चुन-चुनकर मारने वाला फांसी पर लटका

1971 के वॉर क्राइम का दोषी था मोतिउर रहमान निजामी. इसके कट्टर ग्रुप जमाते इस्लामी ने चुन चुन कर लेखक, पत्रकार, प्रोफेसर मारे थे.

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Source: Reuters
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आशुतोष चचा
11 मई 2016 (Updated: 11 मई 2016, 09:45 AM IST) कॉमेंट्स
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मंगलवार की रात बांग्लादेश की ढाका जेल में मोतिउर रहमान निजामी को फांसी पर लटका दिया गया. सन 1971 में जब बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ था. उस वक्त निजामी की पार्टी जमाते इस्लामी ने पाकिस्तान का साथ दिया था. बांग्लादेश की आजादी का विरोध किया था. उस वॉर क्राइम में मर्डर के 16 केस, इसके अलावा रेप और दूसरी तरह के केस चल रहे थे इस पर.

निजामी की जनम कुंडली

बांग्लादेश में कट्टर मुसलमानों का एक संगठन है. जमाते इस्लामी. निजामी उसका चीफ था. सन 2000 तक इस ग्रुप में नंबर दो की पोजीशन थी. फिर आ गया लीड रोल में. और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया. ये अतिवादी संगठन देश को कंट्रोल करने वाला तब बन गया जब 2001 में नेशनलिस्ट पार्टी के साथ इसने चुनाव जीता.
उस टाइम तो इनका सितारा बुलंद था भैया. मौका लगा तो मार दिया चौका. 2001 से 06 तक इंडस्ट्री और खेत खरिहान मिनिस्ट्री संभाली. उसके बाद सरकार आ गई. इनका काम खतम हुआ. उसके चार साल बाद इनके बुरे दिन आ गए. 2010 में अरेस्ट करके जेल में डाल दिया गया. तब उनके पुराने गुनाहों का हिसाब शुरू हुआ.

सेकुलरों को चुन चुन कर मारा था

सन इकहत्तर के वॉर में निजामी जमाते इस्लामी की स्टूडेंट विंग का कमांडर था. उसने नए लड़कों की बंपर भर्ती की. वो लड़के जिनको किसी धर्म मजहब से मतलब नहीं था. बस मार काट प्यारी थी उनको. उनके दिमाग में भरी वायलेंस का अच्छा इस्तेमाल किया निजामी ने. उनको इकट्ठा करके एक डेथ मशीन जैसी बनाई. फिर जो बांग्लादेश की आजादी की बात कर रहे थे, चुन चुन के उनको खत्म किया.
जैसे वहां अभी नास्तिक ब्लॉगर और जर्नलिस्ट्स मारे जा रहे हैं. निजामी ने इससे कई गुना ज्यादा प्रोफेसर, थिंकर, पत्रकार और लेखक मारे थे. उसके खुद के गांव में साढ़े चार सौ लोगों का कत्लेआम किया था. जिनकी लाशें शहर के बाहर बंधी पड़ी मिलती थीं. आंख में पट्टी बंधी रहती थी.
2009 में पीएम शेख हसीना ने एक इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल बनाया. इस टीम को 1971 में 9 महीने चली लड़ाई को फिर से पूरा जांचना था. उस दौरान हुए वॉर क्राइम में जमाते इस्लामी, दर्जन भर दूसरे संगठनों की जांच होनी थी.
निजामी पर केस चला. 2014 में कोर्ट ने उसको अपराधी पाया. मौत की सजा सुनाई गई. फांसी पर लटकाने की. उसने फाइनल अपील की सुप्रीम कोर्ट में. पिछले हफ्ते वहां से भी मौत की सजा पर मुहर लग गई. उसके बाद लास्ट ऑप्शन था. राष्ट्रपति से माफी की अर्जी का. उस पर निजामी तैयार नहीं था. फिर वही हुआ जो होना था. मंगलवार की रात 12 बजे दुनिया से रुख्सती हो गई.

इनकी जमात कह रही है कि फंसाया गया

उसके ग्रुप वाले कह रहे हैं कि उसके साजिश की गई. 2013 में हज्जारों जमातियों को गिरफ्तार किया गया. इधर उधर कैद किये गए. 500 के करीब दीनी मुसलमान मार दिए गए. जांच करने वाला ट्रिब्यूनल खुद साजिश में हिस्सा बना. उसने पॉलिटिकल दबाव में जांच की.
पिछले साल नवंबर में निजामी के खिलाफ चल रही जांच पर उससे जुड़े ग्रुप्स ने सड़कों पर प्रदर्शन किए. सुप्रीम कोर्ट ने जब सजा डिक्लेअर कर दी तो फिर प्रोटेस्ट हुआ. लेकिन सब शांति से निपट गया. कहीं कोई मार काट नहीं.
Source: Reuters
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अभी जमात के कुछ और लोगों पर केस चल रहे हैं. जल्दी ही उनका काम भी हो जाएगा. फिलहाल सबसे पहले नंबर लगेगा मीर कासिम अली का. ये जमाते इस्लामी का फाइनेंसर है. उसको भी मौत की सजा मिली हुई है लेकिन इसने सजा के खिलाफ अर्जी दे रखी है. अगर अर्जी खारिज हो गई तो इनका भी किस्सा खतम.

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