JNU की पढ़ाई छोड़, 'दिल्ली का बाबू' बना गांव का मुखिया
JNU में रिसर्च स्कॉलर थे. गांव आकर मुखिया का चुनाव लड़ा और 17 गांवों के 23 दावेदारों को हराया.
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फोटो - thelallantop
पढ़ाई छोड़ गांव वापस आना मेरा सोचा-समझा फैसला है. अब तो दिल्ली वापस जाने का सवाल ही नहीं उठता. हालांकि मैं कोशिश करूंगा कि अपनी रिसर्च पूरी कर सकूं.अमृत घर के बड़े बेटे हैं. JNU में एडमिशन लेने के पहले दो सालों तक एक कंपनी में काम किया. जी नहीं लगा तो रिसर्च में आ गए. उनके छोटे भाई अमेरिका में रिसर्च कर रहे हैं. उनके पिता आनंद कुमार सिंह 15 बीघे की जमीन पर खेती करते हैं. जब अमृत से पूछा गया कि रिसर्च छोड़कर पंचायत चुनाव का आइडिया कैसे आया. उन्होंने कहा,
जब भी मैं गांव आता, हमेशा सोचा करता कि एक मुखिया गांव में कितने बदलाव ला सकता है. कई समस्याओं की जड़ों पर सीधे चोट कर सकता है. लोगों की शिकायतें आती हैं कि गरीबी रेखा के नीचे वाले लोगों के नाम की लिस्ट में बहुत गलतियां हैं. लोगों को इंदिरा आवास योजना के तहत घर नहीं मिलते. मैंने गांव वालों से दो चीजें कही हैं. एक, सिस्टम के अंदर घुसे दलालों को हटाएंगे. दूसरा, गांव में इतने टॉयलेट होंगे कि किसी को खुले में नहीं जाना पड़ेगा. हम ये प्रोपोजल रखेंगे कि टॉयलेट बनाने के काम को MNREGA का हिस्सा बनाया जाए.अमृत को बैकवर्ड और शिड्यूल्ड कास्ट से खूब वोट मिले हैं. इनको मिले 668 वोटों में से 400 बैकवर्ड समुदायों से हैं.