The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • JNU PROFESSOR MANAGER PANDEY P...

नहीं रहे हिंदी के प्रसिद्ध लेखक मैनेजर पाण्डेय

मैनेजर पाण्डेय जेएनयू के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी प्रोफेसर थे.

Advertisement
MANAGER PANDEY
प्रोफेसर मैनेजर पाण्डेय( फोटो: यूट्यूब/शमीम अश्गर अली )
pic
लल्लनटॉप
6 नवंबर 2022 (Updated: 6 नवंबर 2022, 04:08 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

प्रसिद्ध लेखक और आलोचक मैनेजर पाण्डेय का निधन हो गया है. 6 नवंबर की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली. मैनेजर पाण्डेय के निधन के बाद हिंदी साहित्य जगत के लेखक, पत्रकारों ने गहरा शोक व्यक्त किया है. मैनेजर पाण्डेय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी प्रोफेसर थे.

आइये जानते हैं मैनेजर पाण्डेय को

बिहार के गोपालगंज जिले का एक गांव है लोहटी, जहां 23 सितंबर, 1941 को मैनेजर पाण्डेय का जन्म हुआ था. शुरुआती शिक्षा तो गांव से ही हुई लेकिन फिर आगे की पढ़ाई के लिए वो काशी हिंदू विश्वविद्यालय गए जहां उन्होंने एम. ए किया. इसके बाद मैनेजर पाण्डेय ने अपनी पीएचडी के लिए सूरदास को चुना. इसके बाद उन्होंने शिक्षा को ही अपना पेशा बनाया. जेएनयू में भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी के प्रोफेसर के साथ-साथ वो विभागाध्यक्ष भी रहे. जेएनयू में आने से पहले पाण्डेय जी बरेली कॉलेज, और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी प्रिंसिपल रहे थे.

मैनेजर पाण्डेय पिछले साढ़े तीन दशकों से हिंदी साहित्य के सक्षक्त स्तंभ थे. अपने साहित्यिक करियर के दौरान उन्होंने कई पुस्तकें प्रकाशित की. उन्होंने भक्ति आंदोलन और सूरदास का काव्य, आलोचना में सहमति-असहमति, हिंदी कविता का अतीत और वर्तमान जैसे तमाम विषयों पर लिखा. मैनेजर पाण्डेय को उनके लेखन के लिए तमाम पुरस्कारों से नवाजा गया. इनमें दिल्ली की हिंदी अकादमी द्वारा दिया गया शलाका सम्मान, राष्ट्रीय दिनकर सम्मान, रामचंद्र शुक्ल शोध संस्थान द्वारा दिया गया वाराणसी का गोकुल चन्द्र शुक्ल पुरस्कार और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा का सुब्रह्मण्य भारती सम्मान शामिल हैं.

2016 में लाइव हिंदुस्तान में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी पत्नी प्रोफेसर चंद्रा सदायत बताती है

'वह जितने ईमानदार गुरु हैं उतने ही समर्पित छात्र भी. आज भी वो 6 घंटे अध्ययन करते हैं. एक राज की बात ये कि छात्र उनसे डरते हैं और वो मुझसे.'

उनकी बेटी रेखा पाण्डेय  बताती हैं,

‘मैं कभी उनकी विद्यार्थी नहीं रही लेकिन जब वह अपने छात्रों से बात करते तो किचन में खड़े होकर मैं उन्हें सुनती और उनकी बातें नोट कर लेती थी. किताबों के लिए उनकी जैसी बेचैनी मैंने किसी और में नहीं देखी ’

न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जेएनयू के हिंदी डिपार्टमेंट के हेड नामवर सिंह, मैनेजर पाण्डेय को आलोचकों के आलोचक भी कहते थे. 

(आपके लिए ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे आर्यन ने लिखी है)

वीडियो: गंगाजल फिल्म की असली कहानी, IPS अधिकारी की जुबानी.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement