उग्रवादियों को खत्म करने वाले 'ऑपरेशन ऑल आउट' से इस IPS को इतनी दिक्कत क्यों है?
कश्मीर में 200 दहशतगर्दों को खत्म करने के लिए शुरू किया गया था ऑपरेशन ऑल आउट.
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कश्मीर मेें हुए ऑपरेशन को गलत मानते हैं शैलेन्द्र मिश्रा.
भारत सरकार 200 कश्मीरी उग्रवादियों को मार अपने 'ऑपरेशन ऑल आउट' का जश्न मना रही है. क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने इस डबल सेंचुरी के लिए सरकार को ट्विटर पर बधाई भी दे दी. लेकिन जब ये सब चल रहा था उसी दौरान कश्मीर में पोस्टेड एक यंग आईपीएस ऑफिसर ने सरकार की इस सफलता पर सवाल खड़ा कर दिया है.कश्मीर कैडर के आईपीएस शैलेंद्र मिश्रा 26/11 मुंबई हमले की 9वीं बरसी पर जनता को संबोधित कर रहे थे. अपने संबोधन में उन्होंने उग्रवादियों की मौत को 'सामूहिक विफलता' करार दिया है. मुंबई में हुए ब्राह्मण महासम्मेलन में दिए उनके भाषण का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. आप भी देख लीजिए:
अपनी 15 मिनट की स्पीच में मिश्रा ने इस घटना पर अफसोस ज़ाहिर किया. 'किसी मिलिटेंट के मरने का कभी उल्हास न मनाएं, उसका मरना हमारी हार का प्रतीक है. कलेक्टिव फेलियर का प्रतीक है. वो मिलिटेंट बना क्यों इस कहानी को जानना जरूरी है.' सामने खड़ी तालियां बजा रही जनता से उन्होंने ये सवाल किया.
अपनी दबंगई और ईमानदारी के लिए पहचाने जाने वाले इस अफसर को वीडियो में ये कहते हुए देखा जा सकता है कि कश्मीर में आतंकवाद नहीं बल्कि उग्रवाद है. उन्होंने अपनी बात स्पष्ट करते हुए आगे कहा 'मैं एक ब्यूरोक्रेट हूं और भाषण देना मेरा काम नहीं है. लेकिन मेरी ज़ाती राय है कि कश्मीर में आतंकवाद नहीं दहशतवाद है. या कहें कि पूरे भारत में कहीं आतंकवाद नहीं है. आतंकवाद क्या होता वो आपने इज़िप्ट में देखा, जहां मस्जिद ब्लास्ट में 305 लोग मारे गए.'

इजिप्ट में हुए हमले के बाद मस्जिद के बाहर फैला सन्नाटा.
'मैं कभी ये नहीं कहूंगा कि परिस्थितियां विकट हो तब आप मिलिटेंट बन जाएं. हमारी परिस्थितियां कोई ठीक नहीं थीं. मैं एक मिल वर्कर का लड़का हूं. मेरे पिताजी मिल में काम करते थे. 1980 में वो मिल बंद पड़ गई. फिर वॉचमेन का काम किया. उनके पूरे दिन की तनख्वाह 7 रूपये हुआ करती थी. सिस्टम उनके खिलाफ था. इसका मतलब ये नहीं कि वो सारे मिलिटेंट बन जाते.' मिश्रा ने वहां के लोगों से तीर्थ यात्रा से इतर भी कभी कश्मीर घूमने आने की गुज़ारिश की.
ये कोई पहली बार नहीं है जब 2009 बैच के आईपीएस मिश्रा ने अपने बयान से सुर्खियां बटोरी हैं. जूलाई 2016 में भी उनका कश्मीर के IAS ऑफिसर शाह फैज़ल से जुबानी जंग हो गई थी. जिसके बाद शाह ने जल्द से जल्द अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही थी. शाह की हिज़बुल कमांडर बुरहान वानी के साथ एक फोटो में नज़र आने के बाद माहौल गरमाना शुरू हो गया था. जिसके बाद कई न्यूज़ चैनल वालों ने दोनों के लाइफ गोल्स में अंतर दिखाने की कोशिश की थी. यानी एक बंदूक उठाकर चेंज लाना चाहता है तो दूसरा कलम उठाकर.

शाह और बुरहान दोनों कश्मीर से ही आते हैं लेकिन दोनों की जीवन शैली एक दूसरे से बिल्कुल परे है.
शाह के फेसबुक पोस्ट के जवाब में मिश्रा ने लिखा था 'ये मेरा देश है और मैं इसकी रक्षा करूंगा. किसी भी तरह की आलोचना या धमकी मुझे डर जाने या पीछे हटने पर मजबूर नहीं कर सकती है. मैंने इस सर्विस में क्वालिफाई, सिर्फ नौकरी पाने के लिए नहीं देश की सेवा करने के लिए किया है. मैं नहीं, बल्कि मेरा काम लोगों के लिए रोल मॉडल होना चाहिए. '
उग्रवाद पर मिश्रा की इस लेटेस्ट टिप्पणी ने फिर से मामला गर्म कर दिया है क्योंकि इस समय देश में ऊंचे जगहों पर बैठे लोग भी इन हत्याओं को सेलिब्रेट कर रहे हैं. जैसे ही पुलिस ने सभी 200 मिलिटेंट के मारे जाने की पुष्टि की अगले ही दिन पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने 'नाबाद दोहरे शतक' के लिए पुलिस वालों को बधाई दे दी. सहवाग का वो ट्वीट भी देख लीजिए:
Congratulations to @adgpi
— Virender Sehwag (@virendersehwag) December 1, 2017
and J&K Police for the unbeaten double century this year, eliminating 200 terrorists in 2017 alone. Jai Hind ! May there be peace
वहीं दूसरे क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी कश्मीर को जंग के मैदान की तरह देखते हैं. उन्होंने अपने दौरे पर क्रिकेट वाले कपड़े छोड़ आर्मी यूनिफॉर्म पहनी थी. कश्मीर दौरे पर गए धोनी को खासतौर पर जंग वाली ड्रेस और इंडियन आर्मी द्वारा सम्मानित लेफ्टिनेंट कर्नल के टाइटल के साथ वहां देखा गया. वहां एक क्रिकेट इवेंट में पहुंचे धोनी का कश्मीरी नौजवानों ने 'मुसा मुसा ज़ाकिर मुसा' के नारे से स्वागत किया.

अपने कश्मीर दौरे के दौरान धोनी.
लेकिन उग्रवादियों को मार देने का मतलब उग्रवाद को मारना नहीं है. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, कश्मीर में पिछले 30 सालों में हुई हिंसा में तकरीबन 22,000 उग्रवादी मारे जा चुके हैं. लेकिन अपनी समस्या का समाधान कश्मीर को अभी तक नहीं मिला है.
सुरक्षाबलों द्वारा 200 उग्रवादियों को मार दिए जाने के बाद कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को अफसोस जताने का होश आया है. उन्होंने कहा 'उग्रवादियों को मार देने से उग्रवाद खत्म नहीं होगा'. देखिए कश्मीर एक राजनीतिक मुद्दा है और राजनीति एक गंदा खेल, इसलिए इसमें महबूबा को भी दोषी नहीं माना जा सकता.

महबूबा भी मिलिटेंट्स को मारने के खिलाफ ही हैं लेकिन उन्होंने ये बात जरा देर से बताई.
2016 में जब मिश्रा घाटी के उधमपुर के एसएसपी थे तब उन्होंने पुलिस में घोड़े शामिल करवाए. उनके इस कदम की महबूबा मुफ्ती ने खूब तारीफ की थी. कछ ही हफ्तों बाद उन्हें एक सेल से जोड़ दिया गया और तब से वो वहीं हैं. हालांकि इसका मतलब ये कतई नहीं है कि सरकार मिश्रा जैसे अपने पुलिस अफसरों से संतुष्ट नहीं है. 15 अगस्त को महबूबा ने उन्हें उनके अच्छे काम के लिए 'शेर-ए-कश्मीर' पुरस्कार से सम्मानित किया था.
हर चीज की एक कीमत चुकानी पड़ती है. ये नया बखेड़ा शैलेंद्र मिश्रा की दबंगई की कीमत है.
वीडियो देखें:
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