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वो रोज़ा तो नहीं रखता मगर इफ़्तारी समझता है

वो दिल्ली में देहाड़ी करने वाला आज़मगढ़ का एक देहाती आदमी है. नाम गुलाब यादव. उम्र 45 साल.

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Photo: Reuters
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कुलदीप
21 जून 2016 (Updated: 21 जून 2016, 06:14 AM IST) कॉमेंट्स
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सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है वो रोज़ा तो नहीं रखता मगर इफ़्तारी समझता है
वो कौन है. वो दिल्ली में देहाड़ी करने वाला आज़मगढ़ का एक देहाती आदमी है. नाम गुलाब यादव. उम्र 45 साल.
गुलाब यादव का ताल्लुक आजमगढ़ के मुबारकपुर गांव से है. यहां बड़ी संख्या में बनारसी साड़ियों के बुनकर रहते हैं. यह रमज़ान का महीना है. तड़के 3 बज रहे हैं. अंधेरा अभी छंटा नहीं है.
लेकिन गुलाब यादव जाग रहे हैं. उनका 12 साल का बच्चा भी. दोनों देर रात 1 बजे से अपने काम पर लग जाते हैं. रमज़ान के समय वे गांव में निकल पड़ते हैं. दो घंटे तक घूम-घूमकर गांव के मुसलमानों को जगाते हैं. ताकि अज़ान से पहले वे समय रहते सहरी का खाना खा लें.
गुलाब, बेटे अभिषेक के साथ.
गुलाब, बेटे अभिषेक के साथ.

गुलाब और उनका बेटा अभिषेक दो साल से ये काम कर रहे हैं. दोनों गांव के हर मुस्लिम परिवार के घर तक जाते हैं और उनका दरवाजा खटखटाते हैं. तब तक, जब तक कोई जागकर दरवाजा न खोल दे.
ये परंपरा 45 साल पुरानी है. गुलाब यादव के पिता चिरकित यादव ने 1975 में इसे शुरू किया था. तब इसकी वजह समझने के लिहाज से गुलाब काफी छोटे थे.
NDTV से बातचीत में वह कहते हैं, 'मुझे लगता है कि इससे आपको शांति मिलती है. मेरे पिता के बाद, बड़े भाई ने कुछ साल तक ये काम किया. अब मैं करता हूं और इसके लिए हर रमजान यहां लौट आता हूं.'
'लौट आता हूं' से उनका मतलब दिल्ली से लौट आने से है. गुलाब दिल्ली में देहाड़ी पर काम करते हैं और हर रमजान में गांव सिर्फ इसलिए लौट जाते हैं ताकि मुसलमानों को सहरी से पहले जगाने का काम कर सकें.
गुलाब यादव के पड़ोसी शफीक याद करते हैं कि जब ये परंपरा शुरू हुई तब वे चार साल के थे. वह कहते हैं, 'आप देख रहे हैं, ये कितनी अच्छी बात है. गुलाब पूरे गांव का चक्कर लगाते हैं. इस काम में उन्हें कम से कम डेढ़ घंटा लग जाता है. फिर वे वापस आकर दूसरा राउंड भी लगाते हैं. वो ख्याल रखते हैं कि सहरी किए बिना कोई सोता न रह जाए. इससे ज्यादा पाक बात और क्या हो सकती है.'
उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. बीते दिनों में कैराना से हिंदुओं के पलायन की खबरों को सांप्रदायिक रंग देकर माहौल खराब करने की कोशिशें हुई हैं. लेकिन गुलाब यादव जैसे लोगों की मौजूदगी भरोसा जगाती है.

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