एक भाई साहब हुए माइकल डॉब्स. ऑक्सफर्ड वगैरह से पढ़ाई की. फिर नेतागीरी में आ गए. कंजरवेटिव पार्टी के मेंबर हो गए. भाषण गजब का लिखते थे. इंग्लैंड की इंदिरा गांधी यानी मार्गरेट थैचर के दफ्तर में रहे. और तब से अब तक चपे पड़े हैं.
इन्होंने 1989 में हाउस ऑफ कार्ड्स नॉवेल लिखा. बीबीसी ने इस पर सीरियल बनाया. भयानक हिट हुआ ये. कहानी एक नेता की है. जो सोचता है कि अब उसकी मंत्री बनने की बारी है. मगर बड़े नेता उसका पत्ता काट देते हैं. फिर वो अपनी बीवी संग मिल खुन्नस निकालता है. ऐसी ऐसी साजिशें कि चाणक्य भी शाबासी दें. और फिर वो बन जाता है परधानमंतरी.
अमरीका वालों को भी सीरियल पसंद आया. उन्होंने इसकी बॉडी बदल दी. वहां पीएम की जगह प्रेजिडेंट आ गए. सीरियल खूब चला. चलती चीज खींची जाती है. तो हाउस ऑफ कार्ड्स के सीजन बनने लगे. अब तक तीन आ चुके हैं. चौथा 4 मार्च से आएगा.
हम काहे इत्ते दीवाने हो रहे हैं. दरअसल पूरी इंडिया को होना चाहिए. यहां आदमी औरत रात दिन पालिटिक्स बतियाता है. मगर मनोरंजन के जो साधन हैं, फिल्में और सीरियल, वो सब सास-बहू और सनसनी में खर्च हो जाते हैं.
कहानी तो बताओ गुरु
एक सांसद हैं. नाम है फ्रैंक अंडरवुड. पार्टी उनकी वही जो अपने ओबामा मामा की. डेमोक्रेटिक पार्टी. फ्रैंक की सुंदर, स्मार्ट पत्नी हैं क्लेयर. वो बड़ा सा एनजीओ चलाती हैं. एनवायरमेंट बचाने के लिए.
तो सीन ये है कि फ्रैंक की पार्टी चुनाव जीत गई है. मगर प्रेजिडेंट जो हैं, वो उनको विदेश मंत्री नहीं बनाते हैं. फ्रैंक छटपटा के रह जाता है. फिर ऐसी साजिश कि पहले सीजन के आखिर तक वो बन जाता है उपराष्ट्रपति. मगर भूख यहीं नहीं रुकती. दूसरे सीजन तक राष्ट्रपति जाते हैं घिर और उन्हें देना पड़ता है इस्तीफा. तो फिर गुइंया बज्जू जिंदाबाद. फ्रैंक उपराष्ट्रपति से ऑटोमैटिकली बन गए राष्ट्रपति. और यहां खत्म होता है सीजन 2. तीसरे सीजन में प्रेजिडेंट के रूस और सदन के लंद फंद देवानंद दिखाए गए हैं. बीवी भी हिलेरी बनना चाहती हैं. तो उनकी अपनी गणित है. और फ्रैंक का टाइम पूरा हो रहा है. अब अगर टॉप पोस्ट पर रहना है तो चुनाव लड़ना होगा. उसके लिए चाहिए नॉमिनेशन. शुरू हो जाती है जीभ की जूतम पैजार. जैसा अभी आप विदेश वाले अखबार के पन्ने में पढ़ते हैं. जेब बुश ने ये कहा. ट्रंप ने वो कहा, हिलेरी इस पर घिरीं. वगैरह.
अब चौथे सीजन में देखा जाएगा कि फ्रैंक को पार्टी का टिकट मिलता है क्या प्रेजिडेंट का चुनाव लड़ने के लिए. और मिल जाता है तो सरऊ जीतेंगे कि लंबी तानेंगे.
वैसे फ्रैंक का चुनाव प्रचार शुरू हो गया है. धांसू वीडियो बन रहे हैं. ट्विटर पे कर रहे हैं दावेदारी. वेबसाइट खुल रही है.
https://twitter.com/HouseofCards/status/676958731603681280?ref_src=twsrc%5Etfw
पर मैं क्यों देखूं?
इसे देखने के तीन फायदे हैं. पहला, राजनीति की घुमावदार गलियों में घुसने और घूमने का मजा. दूसरा, नेटफ्लिक्स की सीरीज है, तो क्वांटिको की तरह एक ऐपिसोड के लिए एक हफ्ता वेट नहीं. नेटफ्लिक्स इंटरनेट पर एक साथ सारे ऐपिसोड जारी कर देता है. देखो वीकएंड पर पसर कर. तीसरा, इस सीरियल को देखने से अमेरिका और वहां के पॉलिटिकल सिस्टम की बढ़िया समझ हो जाती है. अंदाजा भी लगता है कुछ कुछ कि दुनिया का सबसे पइसा, हथियार और जलवे वाला देश आखिर चलता कैसे है.
और ये रहा ट्रेलर:
https://www.youtube.com/watch?v=Se44ed4KBMA