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यूपी विधानसभा भर्ती की होगी CBI जांच, 'बाहरी एजेंसी' की भूमिका पर शक

यूपी में विधानसभा और विधान परिषद् में हुए कथित भर्ती घोटाले की जांच इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सीबीआई से कराने का आदेश दिया है. सीबीआई को 6 हफ़्तों में प्रारंभिक जांच की रिपोर्ट कोर्ट में पेश करनी है.

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Allahabad High Court
इलाहाबाद हाईकोर्ट
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रणवीर सिंह
22 सितंबर 2023 (Published: 04:47 PM IST)
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यूपी में विधानसभा और विधान परिषद में कर्मचारियों की भर्ती में हुए कथित घोटाले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सीबीआई को जांच का आदेश दिया है. मामले को लेकर कोर्ट में दाख़िल याचिकाओं पर संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने सीबीआई को निर्दश दिया कि वो जांच कर 6 हफ़्तों में प्रारंभिक रिपोर्ट पेश करे. याचिका में आरोप लगाया गया है कि विधानसभा और विधान परिषद में भर्ती कराने वाले लोक सेवा आयोग को भर्ती प्रक्रिया से हटा कर बाहरी एजेंसी को भर्ती कराने के लिए अधिकृत किया गया. आरोप के मुताबिक़ भर्ती में 'अपने लोगों' को जगह देने के लिए नियमों में बदलाव किया गया है.

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कथित भर्ती घोटाले को जनहित याचिका के तौर पर दर्ज करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने सीबीआई से इस मामले में जांच कर डेढ़ महीने में शुरुआती रिपोर्ट कोर्ट के सामने रखने का आदेश दिया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता की तरफ से मुहैया कराए गए दस्तावेज़ों को सील कवर में रखने का भी आदेश दिया है. याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बाहरी एजेंसी पर संदेह व्यक्त किया है. इसकी वजह ये है कि यूपी में पीएससी के अलावा ज़्यादातर सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया का काम यूपी-एसएसएससी के पास है. ऐसे में दोनों सरकारी एजेंसियों की जगह बाहरी एजेंसियों के चयन को लेकर कोर्ट ने संदेह जताया है और सीबीआई को जांच करने को कहा है. इस मामले में नवंबर के पहले हफ्ते में सुनवाई होगी.

आरोप क्या है?

उत्तर प्रदेश में विधान परिषद सचिवालय (भर्ती एवं सेवा शर्तें) नियम, 1976 के अनुसार राज्य में विधानसभा और विधान परिषद में कर्मचारियों की भर्ती के लिए परीक्षा एजेंसी यूपी-पीएससी यानी यूपी लोक सेवा आयोग थी. साल 2019 में इस नियम में बदलाव कर यूपी-पीएससी की जगह बाहरी एजेंसी को भर्ती कराने के लिए अधिकृत कर दिया गया. इस बदलाव की वजह से विधानसभा और विधान परिषद में हुई भर्तियों में घोटाले के आरोप लगे. दावा किया गया है कि बड़े अधिकारियों ने अपने लोगों को नियुक्त कराने के लिए इस नियम में बदलाव कराया है.

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