PM-CARES: क्या है ये फंड और सरकार ने कोरोना से लड़ाई में इसका क्या इस्तेमाल किया?
प्रधानमंत्री का वो फंड जिसे बस 4 दिन में लोगों ने पैसे से भर दिया था.
एक नया फंड बनाने का. नाम - PM CARES Fund. पूरा नाम - Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations Fund
. आज हम इस ऐलान से एक साल, 29 दिन आगे खड़े हैं. कोरोना वायरस की एक लहर तबाही मचा चुकी है. दूसरी लहर से हम - आप जूझ रहे हैं. ऐसे में एक पड़ताल करना लाज़िमी है कि PM CARES का हुआ क्या? इसके तहत जो पैसा आया, वो गया कहां? सरकार ने कोरोना के ख़िलाफ लड़ाई में इसका क्या इस्तेमाल किया?
4 दिन में 3,000 करोड़ रुपये
PM CARES की वेबसाइट, इसे एक चेरिटेबल ट्रस्ट बताती है, जिसके ट्रस्टी प्रधानमंत्री हैं. उनके अलावा रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री, गृह मंत्री को इसका सदस्य बनाया गया. बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ के अध्यक्ष, प्रधानमंत्री को ये शक्ति दी गई कि वे किन्हीं 3 लोगों को ट्रस्ट में नामित कर सकें. बाद में लोगों से अपील की गई कि कोविड-19 के ख़िलाफ लड़ाई में इस फंड के ज़रिये आर्थिक सहयोग दें. कहा गया कि ये सहयोग पूरी तरह इनकम टैक्स से मुक्त होगा. सहयोग मिला भी. पहले 4 ही दिन में ही इस फंड में 3076 करोड़ रुपये का योगदान आया.
पारदर्शिता पर सवाल
15 अगस्त 2016 को PM मोदी ने लालकिले से देश को संबोधित करते हुए एक पंचलाइन दी थी.“ट्रांस्पेरेंसी के साथ ट्रांसफॉर्मेशन.”फिर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी में प्रधानमंत्री मोदी जब महाराष्ट्र के सोलापुर में थे. तो यहां एक भाषण में उन्होंने कहा कि –
“पहले मलाई बिचौलिए खाते थे, आज वो सब बंद हो गया है. चोरी-लूट की दुकानों को ताले लग गए हैं. वे लोग (यानी कांग्रेस) चाहे ज़ोर-ज़ोर से झूठ बोलें, लेकिन ये चौकीदार सफाई बंद नहीं करेगा.”यानी प्रधानमंत्री के संबोधनों में बार-बार पारदर्शिता पर ज़ोर रहता है. लेकिन PM CARES के बनने और पहले 4 दिन में रिकॉर्ड धन राशि आने के बाद इसमें पारदर्शिता का सवाल उठा. कांग्रेस ने 31 मार्च को ट्वीट करते हुए सवाल किया.
Why are the funds from the existing PM Relief Fund not being used? The new Public Charitable Trust created by the BJP is blanketed with opacity, which begs the questions, is this just another PR stunt?#PMDoesNotCare
— Congress (@INCIndia) March 31, 2020
pic.twitter.com/J1njv97pSK
PMNRF के रहते PM-CARES क्यों?
ये सवाल उठा कि जब देश में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) पहले से ही मौजूद है, तो नया फंड बनाने की क्या ज़रूरत थी? प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में 2019 के अंत तक 3800 करोड़ रुपये मौजूद थे. ये आंकड़े प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. किस-किस मद में कितने पैसे ख़र्च हुए? इसका भी ब्यौरा मौजूद है. लेकिन PM CARES के बारे में इतना हिसाब वेबसाइट पर मौजूद नहीं है.ऑडिट को हां, जानकारी को ना
तमाम सवालों के बीच 13 अप्रैल को फैसला आया कि पीएम केयर्स की ऑडिटिंगहोगी. मतलब हिसाब-किताब की पूरी जांच. इसके लिए एक इंडिपेंडेंट टीम बनाई जाएगी, जिसमें पीएम मोदी भी शामिल रहेंगे. लेकिन अप्रैल 2020 में ही जब श्रीहर्ष कंदुकुरी नाम के व्यक्ति ने एक RTI लगाकर फंड से जुड़े ट्रस्ट के दस्तावेज, इसे बनाने और चलाने को लेकर सरकारी आदेश, नोटिफिकेशन, सर्कुलर के बारे में जानकारी मांगी तो PMO की तरफ से जानकारी देने से मना कर दिया गया. कह दिया गया कि RTI act, 2005 के तहत ये फंड पब्लिक अथॉरिटी नहीं है.
सेकेंड वेव में फिर याद आया PM-CARES
अब कोविड की दूसरी वेव आने पर, देश में ऑक्सीजन की अभूतपूर्व किल्लत होने पर, एक बार फिर सवाल उठे कि PM-CARES के ज़रिये जमा हुआ पैसा कहां गया. भाजपा नेताओं की तरफ से आरोप लगाए गए कि हमारी केंद्र सरकार ने तो राज्यों को पैसा दिया था. राज्यों ने न जाने क्या किया! मसलन, असम के मंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का ट्वीट. उन्होंने लिखा –“अरविंद केजरीवाल जी, कोविड संकट के बाद से असम में 8 ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए. 5 और लगाए जा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली को भी 8 ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए PM-CARES से पैसा दिया था. लेकिन आपकी सरकार इन 8 में से एक प्लांट ही लगा पाई.”
BJP IT सेल के हेड अमित मालवीय ने ट्वीट किया कि -Dear Sri @ArvindKejriwal
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) April 24, 2021
- Assam has installed 8 Oxygen plants (5.25 MT /day) after #Covid
crisis hit us; 5 in process. PM Sri @narendramodi
gave Delhi funds for 8 plants through #PMCARES
in Dec 2020. Why blame Modi, when your govt has failed and could instal just one out of 8!
“दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी के लिए केजरीवाल जिम्मेदार हैं… दिसंबर 2020 में केंद्र सरकार ने 8 ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए पैसे दिए थे लेकिन अभी तक एक ही ऑपरेशनल क्यों हो पाया है ये बात दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में पूछी है…. दिल्ली सरकार के पास कोई जवाब नहीं है.”
कुछ ऐसा ही ट्वीट फिल्म एक्ट्रेस कंगना रनौत ने भी किया. और कहा कि दिल्ली को 8, और महाराष्ट्र को 10 ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए केंद्र की तरफ से पैसा दिया गया लेकिन लगा दोनों जगह सिर्फ एक-एक प्लांट ही.Kejriwal is responsible for the oxygen crunch in Delhi.
In Dec 2020, Central Govt had sanctioned funds to set up 8 Pressure Swing Absorption Plants for production of oxygen, why only one has become operational till date, asked Delhi HC in its order.
Delhi Govt had no answers... pic.twitter.com/mFjFnbmOJn
— Amit Malviya (@amitmalviya) April 24, 2021
यानी कुल मिलाकर इनका दावा ये है कि केंद्र ने तो ऑक्सीजन प्लांट्स लगाने के लिए PM-CARES से पैसा राज्यों को दिया. लेकिन राज्य सरकारें ही निठल्ली निकलीं और उन्होंने इसका इस्तेमाल स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए नहीं किया.Kha gaye PMcares ka paisa and now asking for oxygen... Where’s the money gone ? Why these two characters did not build oxygen plants ? Why? We need answers and hisab of the money allocated to them .... pic.twitter.com/9w86Og8nTd
— Kangana Ranaut (@KanganaTeam) April 24, 2021
सच क्या है?
21 अक्टूबर 2020 को केंद्र सरकार ने, 14 राज्यों में 162 पीएसए ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए, करीब 202 करोड़ रुपये PM-CARES फंड से आवंटित किए. पीएसए मतलब Pressure Swing Adsoprtion प्लांट. यहां एक बात पर ध्यान जाता है कि मार्च के अंत तक केंद्र के पास PM-CARES से पैसा आ चुका था. लेकिन ऑक्सीजन प्लांट के टेंडर निकालने के लिए 6 महीने का इंतज़ार किया गया. न जाने क्यों?ख़ैर, इन 162 में से सबसे ज्यादा 14 प्लांट उत्तर प्रदेश में, 10 महाराष्ट्र में, 8 मध्य प्रदेश में और 7-7 प्लांट हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में लगने थे. जो भी जिम्मेदार स्टेकहोल्डर्स थे, अगर इस काम को वे मुस्तैदी से कर लेते तो आज स्वास्थ्य सेवाओं की हालत इतनी बदतर नहीं होती. लेकिन ये काम भी पूरा नहीं हुआ. स्वास्थ्य मंत्रालय की ही जानकारी के मुताबिक, अभी तक सिर्फ 33 प्लांट इंस्टॉल हो पाए हैं. इनमें से भी कितने फंक्शनल हैं, ये जानकारी नहीं दी गई. दिल्ली, जहां ऑक्सीजन का सबसे ज़्यादा संकट सामने आ रहा है, वहां सिर्फ एक प्लांट लगा है.
PM मोदी ने मार्च 2020 में PM-CARES फंड का ऐलान किया था. इसके तहत ऑक्सीजन प्लांट लगाने का काम कागजी तौर पर अक्टूबर में जाकर शुरू किया गया. ज़मीनी काम शुरू होते होते तो दिसंबर आ गया था. (फाइल फोटो- PTI)
तने खड़े हैं प्लांट, पर काम के नहीं
Scroll.in वेबसाइटने इस मामले में पड़ताल की. 14 राज्यों के ऐसे 60 अस्पतालों में फोन किया, जहां ऑक्सीजन प्लांट लगने थे. इन प्रस्तावित ऑक्सीजन यूनिट्स में से महज़ 11 इंस्टॉल पाई गईं. इनमें से भी 5 ही ऑपरेशनल थीं, बाकी बस तैयार बनकर खड़ी थीं.
इस मामले में ज़िम्मेदारी तय कर पाना एक पेचीदा काम है. क्योंकि एक तरफ तो BJP के नेता दिल्ली का उदाहरण देकर राज्य सरकारों पर ज़िम्मेदारी डाल रहे हैं. ये कहते हुए कि हमने तो पैसा दिया था, लेकिन राज्य ही ढीले निकले. लेकिन दूसरा सच ये है कि सबसे ज़्यादा प्लांट तो UP के नाम पर अलॉट हुए थे, जहां भाजपा की ही सरकार है. फिर वहां भी एक ही प्लांट क्यों लगा? इसका जवाब तो दूर, ज़िक्र तक बातों में नहीं आ रहा. अगर राज्य सरकारों की गलती है, तो न तो दिल्ली की सरकार, और न ही यूपी की सरकार जवाबदेही से मुक्त हो सकती है.
वेंटिलेटर्स भी नहीं आए
PM-CARES फंड से ही बीते साल करीब 2300 करोड़ रुपए वेंटिलेटर्स खरीदने के लिए दिए गए थे. 58 हज़ार से अधिक मेड इन इंडिया वेंटिलेटर्स के लिए पैसा दिया गया, लेकिन BBCकी रिपोर्ट के मुताबिक करीब 30 हज़ार ही खरीदे गए. इनमें से भी लगातार वेंटिलेटर्स ख़राब होने की शिकायत आती रहती है. अभी भी वेंटिलेटर बेड की लगातार किल्लत बनी रहती है.
ऑक्सीजन की किल्लत में कोई मरीज अस्पताल के दरवाजे पर दम तोड़ दे रहा है. किसी के परिजन कतार में ही लगे रह जाते हैं और ख़बर आ जाती है. कहीं से तस्वीर आती है कि बीमार पति को पत्नी मुंह से ऑक्सीजन देती रह गई और पति की जान चली गई. सरकार ने समय रहते कदम उठाए होते तो स्थितियां अलग होतीं. शायद. (फोटो- PTI)
केंद्र और इसके सिपहसालारों की तरफ से बार-बार ये कहा जा रहा है कि हमने तो PM-CARES से पैसा निकालकर दिया. लेकिन क्या सरकार की ज़िम्मेदारी पैसा देने तक ही सीमित रह जाती है? केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाली सेंट्रल मेडिकल सर्विस सोसायटी का ही काम होता है - टेंडर निकालना, बोली लगवाना, वेंडर सलेक्ट करना और काम करवाना. फिर ये सब समय से क्यों नहीं हुआ. टेंडर निकालने में 6 महीने की देरी. अक्टूबर में जाकर ऐलान और राशि का आवंटन. फिर कॉन्ट्रैक्ट देते-देते दिसंबर आ गया. कंपनियों से कहा गया कि 45 दिन में काम पूरा करके दें, यानी प्लांट इंस्टॉल करके दें. लेकिन ये काम अब तक पूरे नहीं हो पाए हैं.
कोविड-19 कहर बनकर टूटा है. लोगों की सांस फूल रही है. वो मर रहे हैं. सरकार आत्ममुग्ध है. नंबर्स गिनाए जाते हैं. 202 करोड़, 2300 करोड़, 162 प्लांट. लेकिन ये सब ज़मीन पर हैं कहां? यही सबसे बड़ा सवाल है.