6 जून 2016 (Updated: 6 जून 2016, 10:35 AM IST) कॉमेंट्स
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आदमी को जब 'छपास' लगती है तो आगापीछा नहीं सोच पाता. अगला पैसे न दे रहा हो तो खुद से पैसे लगाकर अपने नाम से छपने का मजा ले लो. अखबार में नाम छप जाए तो कटिंग लेकर घूमो. किताब छप जाए तो उसका प्रचार करो. एक 83 साल के दादाजी अपनी कविताओं की किताब छपाने में 12 लाख रुपए लुटा बैठे.
चलो अब पूरी खबर बता देते हैं ताकि तुमको ऐसा कीड़ा न काट ले कभी. एक बुजुर्ग हैं 83 साल के, गंगाराम अग्रवाल. रेलवे के रिटायर्ड अफसर हैं. अंदर से कबी हृदय. उनको मुन्ना सिंह नाम के एक आदमी ने बताया कि "दादा हम पत्रकार हैं, एक वीकली न्यूज पेपर के. अपनी कविताएं लाओ. हम उनको साउथ अफ्रीका में छपवा दूंगा."
दादा वैसे तो दुनियादारी खूब पढ़े होंगे. लेकिन अंदर का कवि कुलांचे मार रहा था. खोपड़ी फंस के रह गई झांसे में. वो धीरे धीरे उनसे वसूली चालू कर दिहिस. आराम से 12 लाख झटक दिहिस. उसके लिए बाकायदे पीएम ऑफिस का लेटर भी दिया था मोहर ओहर लगा के. पैसा लेकर घर बदल लिया. फोन नंबर बंद कर दिया.
अमर उजाला की खबर के मुताबिक फिर दादा कुछ होश में आए. भागे भागे पहुंचे पुलिस के पास. रपट लिखाई. पुलिस ने एक जून जहांगीरपुरी इलाके में मुन्ना को धर लिया. 36 साल के मुन्ना अब जेल में किताब छापेंगे दीवार पर. उसका कंप्यूटर भी जब्त कर लिया गया है.
तो देखो छपने के चक्कर में इधर उधर पइसा न गंवाओ. हमारी वेबसाइट पर आओ. यहां अपनी कविता भेजो. धांसू लगी तो छपने की गारंटी ले लो.