दिलीप कुमार के गुज़रने पर कुछ लोगों ने जो ज़हर की उल्टी की, उससे घिन आ जाएगी
पढ़कर लगेगा कि क्या सच में हमारा नैतिक पतन हो चुका है?
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07 जुलाई, 2021 की सुबह खबर आई कि दिलीप कुमार नहीं रहे. सारा देश स्तब्ध रह गया. माहौल ऐसा गमगीन हो गया कि जैसे परिवार के किसी बड़े का हाथ सिर से उठ गया हो. सिनेमा जगत से ताल्लुक न रखने वाली शख्सियतों को ये भी ये समाचार शूल की तरह चुभा. दिलीप साहब की हस्ती ही कुछ ऐसी थी. सिने जगत में उनकी हस्ती का कद कोई नहीं नाप सकता. और जिस तरह के वो इंसान थे, जैसी उनकी शख्सियत थी, उनका मुरीद कौन न होता भला! सीमाओं के पार से भी लोग उनपर प्यार लुटा रहे हैं. उनके जाने का शोक मना रहे हैं. सच है कि प्यार की कोई सीमा नहीं. लेकिन क्या ऐसा इसके ठीक विपरीत शब्द ‘नफरत’ के लिए भी कहा जा सकता है?
आज जो हुआ, उसके बाद शायद ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि प्यार की तरह नफरत की भी कोई सीमा नहीं. ऐसा आखिर हुआ क्या? दिलीप साहब के निधन के बाद सुरेश चव्हाणके ने ट्वीट कर लिखा,
जिस दिलीप कुमार नाम से प्रसिद्धि, पैसा और प्रतिष्ठा पाई, उस नाम के अनुसार जलाया जाएगा या यूसुफ खान नाम से दफनाया जाएगा?
चव्हाणके की बात का क्या तात्पर्य था, वो समझाने की जरुरत नहीं. देखकर गुस्सा आता है. घिन आती है. कि कोई ऐसी दुख की घड़ी में इतना घटिया सोच कैसे सकता है. लेकिन घिनौनापन अगर यहीं तक रुक जाता तो भी ठीक था. क्योंकि इसके बाद जो हुआ, वो ‘नए इंडिया’ की अलग ही तस्वीर दिखाता है. चव्हाणके के पोस्ट पर कट्टरपंथियों का जमघट लग गया. सब में जैसे होड़ होने लगी कि ज्यादा ज़हर कौन उगलेगा. ट्विटर फ़ीड में नफरत भरी उलटी कौन करेगा. एक नफरती चिंटू ने लिखा,जिस दिलीप कुमार नाम से प्रसिद्धी, पैसा और प्रतिष्ठा पायीं उस नाम के अनुसार जलाया जायेगा या यूसुफ़ खान नाम से दफ़नाया जायेगा? #DilipKumar
— Suresh Chavhanke “Sudarshan News” (@SureshChavhanke) July 7, 2021
https://t.co/3g5kDCG6QG
यहां से लव जिहाद और बर्बादी की शुरुआत हुई थी.
चव्हाणके के पोस्ट पर आया कमेंट.
एक और यूज़र ने लिखा,
बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है हमें सुनकर कोई दुख नहीं हुआ.
चव्हाणके के पोस्ट पर आया कमेंट.
एक और नफरती चिंटू ने लिखा,
चलो कम से कम एक तो आतंकियों का साथ देने वाला कम हुआ.
क्रेडिट: नफरती चिंटू
दूसरे यूज़र ने लिखा,
वैसे वो कुछ अधिक दिन रह गया.
नफरती चिंटू रिटर्न्स.
चव्हाणके ने पहले ट्वीट कर लिखा था,
दिलीप कुमार के नाम से प्रसिद्ध अभिनेता मोहम्मद यूसुफ खान नहीं रहे.
दिलीप कुमार नाम से प्रसिद्ध अभीनेता मोहम्मद यूसुफ़ खान नहीं रहें। — Suresh Chavhanke “Sudarshan News” (@SureshChavhanke) July 7, 2021
इसपर एक यूज़र ने जहर उगलते हुए लिखा,
मुल्ला मरा है, कोई जवान नहीं.
क्रेडिट: नफरती चिंटू पार्ट 2
ऐसे कमेंट्स देखकर लगता है कि नैतिक मूल्यों का पतन हो चुका है. लेकिन नफरत चाहे कितनी भी गाढ़ी हो, प्यार पनप ही जाता है. क्योंकि चव्हाणके के पोस्ट पर हमें ऐसे कमेंट भी मिले जो इंसानियत में भरोसा कायम रखते हैं. चव्हाणके के दफनाने या जलाने वाले पर ट्वीट पर एक यूज़र ने लिखा,
ठीक ऐसा ही सवाल कबीर के निधन के बाद भी खड़ा हुआ था. बहस छिड़ गई कि उन्हें जलाया जाए या दफनाया जाए और हम सब जानते हैं कि उसका समाधान कैसे हुआ था.
दूसरी यूज़र ने चव्हाणके को फटकारते हुए लिखा,Similar question was raised on the death of Kabir, even a fight ensued on whether to cremate or bury, and we all know, how it resolved. Unnecessary indulging in matters beyond the scope of one's authority isn't a wise man's calling.
— Thorian, Vikas Chandra (@thorianvc) July 7, 2021
हम समझते हैं कि आप बेकार इंसान हो लेकिन लोग आपके ऐसे वक्तव्य को पढ़कर आपको घटिया से भी ऊपर वाली श्रेणी में रखेंगे.
अगर आप मृतक के प्रति संवेदना जाहिर नही कर सकते, तो कृपा करके ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करके उनकी आत्मा को ठेस न पहुचाये। हम समझते है कि आप बेकार इंसान हो लेकिन लोग आपके ऐसे वक्तव्य को पढ़कर आपको घटिया से भी ऊपर की श्रेड़ी में रखेंगे। — Shradha Tiwari (@shradhaAmaZinG) July 7, 2021
आगे लोगों ने चव्हाणके से सवाल किए कि तब कहां थे, जब गंगा में लाशें तैर रही थी. तब क्यों नहीं पूछा कि उन लाशों को दफनाना चाहिए या जलाना. चव्हाणके ने कोई जवाब नहीं दिया. शायद देंगे भी नहीं.