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कलर्स के नए शो 'नमक इस्क का' ने डांसर को नचनिया कहकर गंद मचा दी है

कब तक फिल्मों में, सीरियल्स में डांसर को नीचे दर्जे के काम की तरह दिखाया जाता रहेगा?

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नाचने वाली लड़की को अपनाने वाला पुरुष कब तक हीरो बनता रहेगा? फोटो - ट्विटर
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यमन
7 दिसंबर 2020 (Updated: 7 दिसंबर 2020, 12:40 PM IST) कॉमेंट्स
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कलर्स टीवी पर नया शो शुरू हो रहा है. 'नमक इस्क का'. 7 दिसंबर रात 9 बजे से. कुछ दिन पहले इसका प्रोमो भी रिलीज़ हुआ था. दिखाई गई एक डांसर की कहानी. नाम है चमचम. समाज में कोई उसे अपनाने को तैयार नहीं क्यूंकि, "नाचने वालियों से बस मनोरंजन किया जाता है. उन्हे घर की बहू नहीं बनाया जाता". इस लाइन का क्रेडिट शो के प्रोमो को जाता है, हमे नहीं. कास्ट की बात करते हैं. छमछम का किरदार निभाया है श्रुति शर्मा ने. आप जल्द इन्हें सान्या मल्होत्रा की आने वाली फिल्म 'पगलैट' में भी देखेंगे. इनके अलावा मोनालिसा, आदित्य ओझा और विशाल आदित्य सिंह मुख्य किरदारों में है. ये शो फोर लॉयन फिल्म्स के बैनर तले बन रहा है. 'इश्कबाज', 'नज़र', 'कुल्फी कुमार बाजेवाला' और 'कुबूल है' जैसे शोज भी इसी प्रोडक्शन हाउस की देन हैं.
चैनल शो के प्रोमोशन में लगा है. और वो भी जमकर. एक के बाद एक धड़ल्ले से प्रोमो आए. सबका मैसेज एक. 'क्या आप एक नचनिया को अपनाएंगे?' प्रोमो कम पड़े, तो अखबारों में एड छपे. लगा कुछ अलग दृष्टिकोण देंगे. पर यहां भी जनता गलत ही साबित हुई. यहां भी बात एक ही धुरी पर नाच रही थी, क्या आप करेंगे एक नचनिया को बहू के रूप में स्वीकार?  बस शब्दों को थोड़ा बोल्ड कर दिया.
शो का प्रसारण आज रात 9 बजे से होगा. फोटो - ट्विटर
शो का प्रसारण आज रात 9 बजे से होगा. फोटो - ट्विटर

एक मामले में शो की तारीफ होनी चाहिए. फोकस बड़ा शार्प है. एक विचारधारा को पकड़ा और उसी के चारों ओर परिक्रमा लगा रहें हैं. मेकर्स को लगा नहीं होगा कि अपने मैसेज को लेकर कोई सफाई देनी होगी. और देने की जरूरत भी कहां आन पड़ी. सदियों से बनी खानदान की इज्ज़त घर की लड़की के नाचने से ही तो धूलधूसरित होती है. यही हमें बिना पढ़ाए, पढ़ाया गया है. वो नाचेगी, सीटियां बजेंगी, लोग भद्दे कमेंट पास करेंगे. इन कमेंट करने वालों की भी क्या गलती भला? यही होता आया है. फिल्मों के आइटम सॉन्ग्स में भी नाच रही महिला सबको अटपटी लगती है. वही उसके चारों ओर झुंड बनाकर नाच रहे मर्दों से किसी को शिकायत नहीं होती.

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सवाल ये है कि डांसिंग का प्रोफेशन ख़राब है ये किसने तय किया? कोई अगर डांस कर रहा है तो इससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा ख़त्म हो गई?
माइकल जैक्सन के डांस का मुरीद कौन नहीं? इस तरह नाचते थे कि मानो देखने वालों की एक-एक नस को प्रेरणा दे रहे हैं. फिर आए अपने प्रभुदेवा. जिनका क्रेज़ भी क्या कुछ कम है भला. टीवी स्क्रीन पर ऐसे थिरकते जैसे हिंदुस्तान के हर बच्चे को डान्सर बना डालेंगे. इन कलाकारों की प्रेरणा घरों में छनकर प्रवेश करती थी. अब तक करती है. लड़के हो तो कूद-कूदकर डांस करो, हर्ज ही क्या है. तब तक करो जब तक पड़ोसी शिकायत करने ना आ जाए. और वहीं लड़की ने सिर्फ सोच भर भी लिया तो आंखें चढ़ जाती हैं. दुख सिर्फ इतना नहीं है. दुख है कि इतने विकास के बाद भी हम डांस को वो इज़्ज़त का दर्जा नहीं दे पा रहे. ऊपर से हमारी फिल्में और धारावाहिक ऐसी सोच की पैरवी कर रहे हैं, जो हमारे समाज का गौरव नहीं बल्कि एक घाव है. ऐसा घाव जो हर ऐसी किसी फिल्म या शो से गहरा होता जा रहा है. पर ये चलता रहेगा. तब तक चलता रहेगा जब तक "नचनिया" लड़की से शादी करने वाले लड़के को हीरो की तरह देखा जाता रहेगा. सामान्य लड़के की तरह नहीं, हीरो की तरह.

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