The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • Centre has opposed the plea to debar the netas convicted in criminal cases for lifetime

दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर जिंदगीभर का बैन लगाने की मांग पर सरकार ने क्या कहा है?

सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर सरकार ने जवाब दिया है

Advertisement
Img The Lallantop
अभी नेताओं को आपराधिक मामलों में 2 साल या ज्यादा की सजा मिलने पर 6 साल बैन करने का नियम है.
pic
अमित
3 दिसंबर 2020 (Updated: 3 दिसंबर 2020, 05:04 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
आपराधिक मामलों में दोषी करार दिए गए नेताओं पर ताउम्र चुनाव लड़ने की रोक लगाए जाने का केंद्र सरकार ने विरोध किया है. सरकार ने कहा है कि नेता भी सरकारी कर्मचारियों की तरह हैं, और कानून से ऊपर नहीं हैं. उनके लिए अलग से कोई कानून नहीं हैं.
अभी क्रिमिनल केसों में 2 साल की सजा होने के बाद नेताओं को अगले 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दे दिया जाता है. वकील और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दाखिल करके इस रोक को आजीवन करने की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि ये सरकारी कर्मचारियों और नेताओं को लेकर दोहरे मापदंड अपनाने जैसा है. जब सरकारी कर्मचारी को गंभीर आपराधिक केस में दोषी पाए जाने पर जीवनभर के लिए सरकारी नौकरी से बैन कर दिया जाता है, तो नेताओं को क्यों नहीं किया जा सकता. याचिका में ये भी मांग की गई है कि दोषी पाए जाने के बाद नेताओं को अपनी पार्टी बनाने या किसी पार्टी में पदाधिकारी बनने पर भी रोक लगाई जानी चाहिए.
इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या ऐसा करना मुमकिन होगा? इस पर केंद्र सरकार की ओर से गुरुवार 3 दिसंबर को कोर्ट में हलफनामा पेश करके जवाब दिया गया.
Supreme
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा 2017 के एक मामले में दाखिल किया. फोटो- PTI

क्या कहना है सरकार का?
सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि नेताओं के लिए बाकी सरकारी कर्मचारियों की तरह कोई सर्विस कंडिशन नहीं होतीं. वो तो सिर्फ जनता के सेवक होते हैं. चुनकर आए हुए नेता आमतौर पर उस शपथ से बंधे होते हैं, जो वे देश और अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए लेते हैं. उनका आचरण अच्छे अंतःकरण और देशहित से जुड़ा होता है. उनसे यही उम्मीद की जाती है कि वे देशहित और जनहित में काम करेंगे. सरकार की ओर से आगे कहा गया,
नेता भी जनप्रतिनिधित्क कानून और सुप्रीम कोर्ट के वक्त-वक्त पर दिए फैसलों के अनुसार अयोग्य ठहराए जा सकते हैं. चुने हुए नेता किसी भी तरह कानून से ऊपर नही हैं. आईपीसी के जो नियम आम नागरिकों पर लागू होते हैं, नेताओं पर भी लागू होते हैं. ऐसा कभी देखने में नहीं आया कि किसी पब्लिक सर्वेंट और चुने हुए नेता के लिए अलग-अलग तरह के कानून से काम लिया गया हो.
सरकार ने कहा है कि उसका मानना है कि आपराधिक मामलों में नेताओं के खिलाफ रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट के तहत ही कार्रवाई होनी चाहिए, उनके राजनैतिक जीवन पर आजीवन रोक नहीं लगाई जानी चाहिए. ये भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही काफी हद तक इस मामले से डील कर चुका है.

Advertisement