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बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2010 गैंगरेप केस में 8 आरोपियों को बरी किया

जस्टिस जीए सनप ने कहा कि महिला ने शुरू में आरोप लगाए थे. लेकिन बाद में वो अपने बयानों से पलट गई. महिला ने कहा कि उसने पुलिस के दबाव में अपना बयान दिया था.

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बाम्बे हाईकोर्ट ने 2010 गैंगरेप केस में 8 आरोपियों को बरी किया. (तस्वीर:सोशल मीडिया)
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21 फ़रवरी 2025 (Updated: 21 फ़रवरी 2025, 02:13 PM IST)
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने वर्धा गैंगरेप मामले में 8 आरोपियों को बरी कर दिया है. कोर्ट ने सबूतों और गवाहों के अभाव के मद्देनज़र यह फैसला सुनाया है. करीब 15 साल पहले एक महिला के साथ हुए गैंगरेप के मामले में 8 लोगों को 10 साल की सजा सुनाई गई थी.  

पूरा मामला क्या है

टाइम्स ऑफ इंडिया की सितंबर, 2011 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, घटना महाराष्ट्र के वर्धा के अलीपुर जिले की है.  24 जून, 2010 के दिन वर्धा के पवनी गांव की एक युवती अपना इलाज कराने अलीपुर के सरकारी हॉस्पिटल गई थी. वहां से वापस अपने गांव जाने के लिए वो एक स्कूल के पास ऑटोरिक्शा का इंतज़ार कर रही थी. कुछ देर बाद वहां एक ऑटो रिक्शा रुकी, जिसमें 4 लोग पहले से ही बैठे थे. महिला उस ऑटो में बैठ गई लेकिन रिक्शा चालक शंकर तडस ने ऑटो उसके गांव में नहीं रोकी. कुछ दूर आगे जाकर शंकर तडस ने बाकी यात्रियों को उतार दिया. 

इसके बाद महिला को जबरन दूसरे ऑटो में बैठाकर उसे दूसरे गांव ले गए. वहां एक सुनसान जगह में तडस और उसके साथियों ने महिला के साथ कथित तौर पर रेप किया. उसके बाद महिला को वापस एक बस स्टॉप पर छोड़कर भाग निकले.  कथित पीड़िता को पूरी रात बस स्टॉप पर गुजारनी पड़ी और अगली बस से वो अपने घर वापस गई. घर पहुंचकर उसने पूरी आपबीती अपनी मां के साथ साझा की. इसके बाद उन्होंने थाने पहुंचकर FIR दर्ज कराया.

कोर्ट ने कहा कि सबूत ठोस नहीं थे

मामले कोर्ट पहुंचा और केस का ट्रायल शुरू हुआ. मीडिया रपटों के मुताबिक, सेशन कोर्ट के जज डी ए ढोलकिया ने इस मामले में आठ लोगों को 10 साल की सजा सुना दी. इसके साथ ही दोषियों के खिलाफ 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. 

इसके बाद मामला बाम्बे हाईकोर्ट पहुंचा. इंडिया टुडे के विद्या की इनपुट के मुताबिक, नागपुर बेंच के जस्टिस जीए सनप ने कहा कि महिला ने शुरू में आरोप लगाए थे लेकिन बाद में वो अपने बयानों से पलट गई. महिला ने कहा कि उसने पुलिस के दबाव में अपना बयान दिया था. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा,

“अपुष्ट और अधकचरे सबूतों के आधार पर आरोपी को सजा नहीं दी जा सकती.”

लेकिन जस्टिस सनप ने कहा कि फोरेंसिक एनालिसिस में ढंग से सुरक्षा उपायों का ध्यान नहीं रखा गया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष DNA रिपोर्ट की प्रमाणिकता की पुष्टि के लिए एक्सपर्ट गवाहों को शामिल नहीं कर सका. जस्टिस सनप ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने CRPC की धारा 164 के तहत शिकायतकर्ता के बयान पर बहुत अधिक भरोसा करते हुए आरोपियों को सजा सुनाई थी. उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट को आधे-अधूरे बयानों के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए थी.

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