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कहानी उस बम कांड की, जब भगत सिंह ने 'बहरों को सुनाने' के लिए संसद में किया था धमाका

संसद सुरक्षा चूक मामले में पुलिस ने बताया कि आरोपी भगत सिंह से प्रेरित थे. साथ ही सभी आरोपी जिस सोशल मीडिया पेज के जरिए आपस में जुड़े थे, उसका नाम 'भगत सिंह फैन क्लब' था.

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bhagat singh parliament bomb story amid loksabha security breach
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंका था. (तस्वीर साभार: Wikipedia Commons)
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रवि सुमन
14 दिसंबर 2023 (Published: 01:28 PM IST)
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संसद में 13 दिसंबर को सुरक्षा चूक (Parliament Security Breach) और घुसपैठ का मामला सामने आया. मामले में 6 लोगों को आरोपी बनाया गया. 5 आरोपी पुलिस की गिरफ्त में हैं. 4 पर UAPA की धारा लगाई गई है. 1 आरोपी अभी भी फरार चल रहा है. इस घटना से भगत सिंह (Bhagat Singh) का नाम जुड़ गया है. और ये हुआ कैसै?

इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े अर्जुन सेनगुप्ता की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस सूत्रों ने बताया है कि ये लोग भगत सिंह से प्रेरित थे. एक और रिपोर्ट है, इंडिया टुडे से जुड़े अरविंद ओझा की. रिपोर्ट के मुताबिक, सभी आरोपी जिस सोशल मीडिया पेज के जरिए आपस में जुड़े थे, उसका नाम ‘भगत सिंह फैन क्लब’ है. हालांकि, इस मामले में पुलिस की जांच चल रही है और इस घटना के पीछे के सभी कारणों का पता लगाया जा रहा है. 

अब क्योंकि इस मामले में शहीद भगत सिंह का नाम आ गया है तो उनके बम कांड की कहानी भी जान लेते हैं, जिसे उन्होंने अपने साथियों के साथ 8 अप्रैल, 1929 को अंजाम दिया था. भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंका था. इस तरह उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ प्रोटेस्ट किया. घटना के बाद उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दे दी. 

ये भी पढ़ें: संसद हमले की बरसी पर सुरक्षा चूक, लोकसभा कार्यवाही में कूदे दो लोग, फैलाया रंगीन धुआं

सेंट्रल असेंबली में क्या हो रहा था?

दोपहर का समय था, घड़ी में साढ़े बारह बज रहे थे. संसद में विठलभाई पटेल, ट्रेड डिस्प्यूट बिल पर हुई वोटिंग का रिजल्ट बताने के लिए खड़े हुए. तब वल्लभ भाई पटेल के बड़े भाई विठलभाई पटेल सेंट्रल असेंबली के अध्यक्ष थे.आज के समय में जैसे स्पीकर होते हैं. 

इससे पहले की अध्यक्ष वोटिंग का रिजल्ट बताते. असेंबली के बीचों-बीच खाली जगह पर दो बम आकर गिरे. जोर का धमाका हुआ और सदन में अफरा-तफरी मच गई. इसके बाद नारों की आवाज सुनाई देने लगी. इंकलाब जिंदाबाद, डाउन विद द ब्रिटिश इम्पीरियलिज्म, (ब्रिटिश साम्राज्यवाद का अंत हो).

साथ में उछले कुछ पर्चे. गुलाबी रंग के. ये HSRA के पर्चे थे. जिनमें लिखा था, “बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरुरत होती है”

बम धमाके की तैयारी

फिरोजशाह कोटला में भगत सिंह ने अपने साथियों को एक खास संदेश दिया, “हजार पैम्फलेट की बजाय एक अकेले एक्शन से कहीं ज्यादा ताकतवर प्रोपेगेंडा बनाया जा सकता है”. वो जल्द से जल्द संगठन का संदेश आम लोगों और युवाओं तक पहुंचाना चाहते थे. और इसके लिए जरूरी था एक बड़ा एक्शन. ताकि उनकी बात पूरे भारत तक पहुंचे.

तय हुआ कि एक जोरदार धमाके से कम में बात नहीं बनेगी. और धमाका भी ऐसी जगह करना था, जहां से बात ब्रिटिश हुकूमत तक भी पहुंचे और लोगों तक भी. आगरा में हींग में मंडी के पास एक पुराने मकान की रेकी की गई. जगह मुफीद थी. फणीन्द्र नाथ घोष और कमल नाथ तिवारी कलकत्ता से केमिकल और बम बनाने का सामान लेकर पहुंचे. काम शुरू हुआ और एक महीने में सबको काम सिखा दिया गया.

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झांसी के जंगलों में बम टेस्ट किए गए. हींग की मंडी में एक मीटिंग रखी गयी. HSRA के सब मेंबर मौजूद थे. सिवाय सुखदेव के. जो उस समय लाहौर में थे. पहले प्लान बना कि साइमन कमीशन को निशाना बनाना चाहिए. लेकिन इतने लम्बे ट्रैवल के लिए पैसे नहीं थे. फिर तय हुआ कि दिल्ली असेंबली में धमाका किया जाएगा. भगत सिंह ने अपना नाम सामने किया, लेकिन सांडर्स के मामले में पुलिस उनकी तलाश में थी. इसलिए सबने भगत के नाम से इनकार कर दिया. चंद्रशेखर आजाद HSRA के कमांडर थे. और वो खास तौर पर भगत को भेजे जाने के खिलाफ थे. आखिर में बटुकेश्वर दत्त और शिव वर्मा को इस काम के लिए चुना गया.

जब सुखदेव को इस बारे में पता चला, तो वो एकदम बिफर पड़े. बोले, भगत को जाना चाहिए. और कोई इस काम को सही से अंजाम दे ही नहीं सकता. भगत से बोले, तू कायर है. एक लड़की के चक्कर में मरने से डर रहा है. इसके बाद भगत सिंह ने सुखदेव को एक चिट्ठी लिखी.

इसके बाद भगत ने HSRA की एक और मीटिंग बुलाई. और जिद पे अड़ गए कि अब वही जाएंगे. अंत में तय हुआ कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त इस काम को अंजाम देंगे. 6 अप्रैल को दोनों एक बार असेंबली में गए. ताकि वहां की रेकी कर सकें.

भगत सिंह ने जूते क्यों बदले?
भगत सिंह ने दिल्ली असेंबली में बम फेंकने से पहले अपने साथी जयदेव कपूर के साथ अपने जूते बदल लिए थे (तस्वीर: Supreme Court of India)

सेंट्रल असेंबली के गेट में घुसने से ठीक पहले भगत सिंह ने बटुकेश्वर से रुकने को कहा. उन्होंने अपने हाथ से घड़ी निकाली और जयदेव को पकड़ा दी. इसके बाद बटुकेश्वर भगत सिंह से कहते हैं, चलो. लेकिन तभी भगत एक और बार ठहर जाते हैं. उनकी नज़र जयदेव के जूतों पर पड़ती है. भगत अपने जूतों को देखते हैं. एक दम नए. उन्हें खास तौर पर पुलिस की नजर से बचने के लिए वेशभूषा के तौर पर खरीदा गया था. भगत जयदेव से कहते हैं, जूते बदल लो, ये वैसे भी अब मेरे किसी काम नहीं आने वाले.

अंदर जाकर भगत सिंह ने बन्दूक निकालकर दो गोलियां हवा में फायर कीं .मोतीलाल नेहरू, जिन्ना और मदन मोहन मालवीय भी उस दिन सदन में मौजूद थे. बम फेंकने के बाद दोनों जोर जोर से नारे लगाने लगे. इंकलाब जिंदाबाद. इसके बाद दोनों ने सदन में HSRA के पर्चे उछाले.

मुकदमा चला तो कहा गया दोनों ने एक-एक बेम फेंका था. लेकिन दत्त की तरफ से बचाव पक्ष के वकील आसिफ अली के अनुसार दोनों बम भगत सिंह ने ही फेंकें थे. बटुकेश्वर दत्त ने मान लिया कि एक बम उन्होंने फेंका था. कारण कि वो भगत सिंह से अलग नहीं होना चाहते थे.

इसके बाद दोनों को गिरफ्तार कर केस चलाया गया. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई. बटुकेश्वर दत्त को इस मामले में उम्र कैद की सजा सुनाकर काला पानी जेल में भेज दिया गया था. बाद में वो जेल से बाहर आ गए.

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वीडियो: तारीख़: 19 की उम्र में शहीद होने वाला वो क्रांतिकारी, जिसे भगत सिंह अपना हीरो मानते थे

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