The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • Bachcha rai's degree college r...

वो बच्चा राय नहीं है, वो आदमी एजुकेशन का शॉपिंग मॉल है

झुग्गी से कॉलेज चला रखा था, ऑफिस था, लैब थी, लाइब्रेरी थी बस क्लासरूम नहीं थे.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
आशीष मिश्रा
15 जून 2016 (Updated: 16 जून 2016, 05:09 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
बच्चा राय के नाम से आप चट ही चुके होंगें. न्यूज वाले उसके नाम पर इतना चाट चुके हैं, कि अब तो लगने लगा है कहीं मुझे भी तो उसी ने पास नहीं कराया था. फिलहाल हाल ये है कि उसके सचिव के मोबाइल नंबर से लेकर उसकी चप्पल के नंबर तक की डीटेल हर ओर बगर चुकी है. अब वो चीज पढ़िए. जो पढ़ने आए हैं. WP_20160614_030 बच्चा राय की टॉपर्स वाली जो फैक्ट्री चलती थी न वो एक झोपड़ी में चलती थी. उसका डिग्री कॉलेज एक ऐसी झोपड़ी में चलता था जिससे अच्छा हमारे अंकेश चाचा की गुमठी, जिससे अच्छी रामनिश्चय बबा की ढेकुर वाली मंड़ई, इससे अच्छी झुग्गी तो सात दिन की भागवत वाली कथा में पंडित जी के लिए बना दी जाती थी. हम दूसरी कक्षा में ड्राइंग की बुक पर जो झोपड़ा बनाते थे, जिसके पीछे दो पहाड़ों से सूरज निकलता था. वो भी इस सड़हे डिग्री कॉलेज से अच्छा होता था. ये देख लीजिए ये कोई कॉलेज है? आंगनबाड़ी न लगाऊं मैं इसमें. WP_20160614_029 बच्चा राय लोकल अखबारों में एड भी निकलवाता था, वही अखबार जिनमें धूल भरी आंधियां चलने से जनजीवन अस्त-व्यस्त टाइप न्यूज आती हैं. उनके मुताबिक़ बच्चा राय के 10 कॉलेज थे. 4 स्कूल थीं.

बहुत जल्द ही वो एक यूनिवर्सिटी भी खोलने वाला था. नाम होता, Lord Buddha R.D.R.L.M Bihar University.

ये जो ऊपर दिखे न, स्कूल और कॉलेज. वो सिर्फ वैशाली जिले में थे. समझे? पूरा शॉपिंग मॉल चलता था. जहां से मन आओ कर लेओ. पढ़ लेओ. सारे स्कूल-कॉलेज इतने बुरे नहीं दिखते थे. काहे कि कई तो दिखते ही नहीं थे, काहे कि वो थे ही नहीं. इस चराचर जगत में भौतिक रूप से विद्यमान ही नहीं थे. वो सिर्फ कागजों पर थे. उनका नाम था, नाम चलता भी था. बस नेत्र गोलकों की मदद से दिखता नहीं था. ऊपर जिस डिग्री कॉलेज की फोटो लगी है. वो एक खेतहरे के बीच में था. चार ठो कमरा था और एक प्रिंसिपल ऑफिस था, एक कॉलेज का ऑफिस था, एक लैब थी, प्रैक्टिकल्स जरुरी होते हैं कि नहीं, एक लाइब्रेरी थी क्योंकि किताबें इंसान की सच्ची दोस्त होती हैं, लेकिन क्लासरूम नहीं थे. जब बच्चे बिन क्लास लिए टॉप कर जाते हैं तो क्लासरूम का अचार डालिएगा. खोजने वाले जब ठाकुर देवी रामचंद्र राजदेव बौआजी राय (+2) हायर सेकेंडरी स्कूल खोजने गए तो उनको नहीं मिला. उनने पूरे लालगंज में खोजा नहीं मिला. घंटों खोजा नहीं मिला. लोगों से पूछा नहीं मिला. लोगों ने बताया, हमको भी कभी नहीं मिला. लोगों ने बताया, यहां डिग्री कॉलेज तो है पर स्कूल नहीं है. नहीं है. नहीं है.
एक जने थे, नाम बताए सुभाष. उनने कहा यहां डिग्री कॉलेज है, लेकिन स्कूल नहीं है. नहीं है. नहीं है.
उनने गलत बताया है, स्कूल है, था और रहेगा, बच्चा राय के कागजों में.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement