मां ने डांटा तो छोटे बच्चे नाराज होकर चले गए, 13 साल बाद मिले, ये कहानी भावुक कर देगी
उत्तर प्रदेश के आगरा में रहने वाले भाई-बहन साल 2010 मां से नाराज हो कर घर से भाग गए थे. अब साल 2023 में मिले हैं.
उत्तर प्रदेश के आगरा में लगभग 13 साल पहले लापता हुए बच्चे अब अपनी मां से मिले हैं. पहली नजर में इसमें खबर जैसा कुछ नहीं लगता, लेकिन ऐसा है नहीं. इसमें खबर लायक बात है बच्चों के मां को छोड़ने की वजह और फिर उन्हें ढूंढने की कोशिश.
आजतक के अरविंद शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2010 के एक रोज नीतू नाम की महिला ने अपने दो बच्चों राखी और बबलू को डांट दिया था. शायद चिमटे से मारा भी था. हालांकि मां ने इससे इनकार किया है. बहरहाल, मां की डांट और कथित पिटाई से नाराज़ होकर दोनों बच्चे घर से रेलवे स्टेशन चले गए थे. वहां वे एक ट्रेन में बैठे और खो गए.
वहीं बच्चों की मां नीतू उन्हें खोजती रहीं. थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई, लेकिन बच्चों का पता नहीं चला. वक्त बीता और बीतता ही गया. 13 बरस हो गए. बच्चों को वापस पाने की उम्मीद धुंधली होती गई. इस बीच राखी और बबलू भी एक-दूसरे से अलग हो गए. लेकिन फिर कमाल हुआ.
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जब बच्चे घर से भागे थेबच्चों की मां नीतू ने बताया कि गुमशुदगी के वक्त उनकी बेटी राखी की उम्र 9-10 साल की थी. बेटा बबलू 3-4 साल का था. नीतू के मुताबिक एक दिन जब वो काम करके घर लौटीं तो किसी बात पर राखी को डांट दिया. इसके बाद राखी अपने भाई बबलू के साथ कहीं चली गई. उन्होंने राखी और बबलू को जगह-जगह तलाशा, लेकिन बच्चे नहीं मिले. बच्चों के गुमशुदा होने की रिपोर्ट दर्ज कराई, लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला.
वहीं राखी ने बताया कि वो अपने भाई के साथ रेलवे स्टेशन चली गई थी. वहीं से दोनों खो गए और मेरठ पहुंच गए. मेरठ में उन्हें एक शेल्टर होम भेज दिया गया. लगभग एक साल तक भाई-बहन उसी शेल्टर होम में रहे. फिर राखी को गाजियाबाद के एक अनाथालय भेज दिया गया. जबकि बबलू लगभग और दो साल मेरठ में ही रहा, फिर उसे लखनऊ भेज दिया गया.
गाजियाबाद में राखी ने अपनी पढ़ाई पूरी की. इसके बाद गुरुग्राम में जॉब करने लगी. भाई से उसका कोई संपर्क नहीं था. मां से भी मिलने की उम्मीद खो दी थी. कुछ साल पहले बबलू और राखी का संपर्क हुआ. दोनों मिले नहीं, लेकिन फोन पर बात होती रही. फिर बबलू ने एक बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस से संपर्क किया. उन्हें बताया कि वो कुछ साल पहले खो गया था. अपनी बहन के बारे में बताया. अपनी मां से मिलने की इच्छा जाहिर की.
बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस बताते हैं कि दोनों बच्चों को ज्यादा कुछ याद नहीं था. काफी खोजबीन के बाद मेरठ में जहां ये बच्चे मिले थे, वहां के अनाथालय का एक पर्चा मिला. इसमें इनकी डिटेल थी. 18 जून, 2010 की तारीख दर्ज थी. पता बिलासपुर था, लेकिन राखी कह रही थी कि वो आगरा की है.
आखिरकार मां से मुलाकात हो गईनरेश पारस ने आगरा गुमशुदा प्रकोष्ठ में बात की, जहां से पता चला कि थाना जगदीशपुरा में राखी और बबलू की गुमशुदगी दर्ज थी. फिर पुलिस के साथ नरेश गुमशुदगी की उस रिपोर्ट में दर्ज पते पर गए. पता चला कि बच्चों की मां वहां किराए पर रहती थी. आगे खोजबीन चलती रही.
बच्चों ने बताया था कि उनकी मां के गर्दन पर जले का निशान था. इन सभी जानकारियों के आधार पर आखिरकार बच्चों की मां नीतू मिलीं. वीडियो कॉल में बबलू ने अपनी मां को पहचान लिया. मां ने भी बचपन की तस्वीरें दिखाईं. इस तरह आखिरकार ये परिवार आपस में मिल पाया है. राखी, बबलू और उनकी मां नीतू अब बेहद खुश हैं.
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