दारा सिंह इन सिंगापोर. सिंगापोर में रहने वाले एक रईस आदमी ने दारा सिंह और उनकेउस्ताद को रात खाने पर बुलाया. दोनों तय समय पर पहुंचे. अच्छी ख़ासी मेहमान नवाज़ीहुई. और मेज़बान खुद उन्हें गेट तक छोड़ने भी आया. जाते हुए उसने दारा सिंह की ओरएक काग़ज़ का टुकड़ा बढ़ाया. दारा ने देखा उसमें 'पचास' की संख्या लिखी हुई थी. उससमय तो दारा सिंह को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने वो टुकड़ा अपनी जेब में डाललिया. बाद में गाड़ी में उन्होंने अपने उस्ताद से पूछा, 'इस काग़ज़ के टुकड़े का हमक्या करेंगे?'. उस्ताद ने बताया, ये नोट ले जाकर बैंक को देंगे तो पैसे मिलेंगे.दारा सिंह को विश्वास न हुआ. बोले,'अगर काग़ज़ पर लिखने से बैंक वाले इतने पैसे देदेते हैं, तो इसने पचास ही क्यों लिखा, हज़ार लिख देता.' उस्ताद ने समझाने की कोशिशकी लेकिन दारा सिंह को तसल्ली नहीं हुई. नोट ज्यों का त्यों ही रहा और बात आई गई होगई. कई बाद साल जब दारा सिंह ने अच्छे ख़ासे पैसे कमाए, उनका एक दोस्त उन्हें बैंक मेंखाता खुलाने ले गया. बैंक वाले ने काग़ज़ के नोटों वाला एक छोटा सा रजिस्टर उन्हेंपकड़ा दिया. दारा को याद आया ऐसा ही नोट उन्हें कुछ साल पहले किसी ने सिंगापोर मेंदिया था. दारा सिंह ने पूछा, ये क्या है? बैंक वाले ने जवाब दिया- इसे चेक बुक कहतेहैं.