बारिश से भीग रही एक रात में एक शख़्स अपनी खाट पर उलट पलट रहा था. नींद कोसों दूरथी. ‘यही रात अंतिम, यही रात भारी’, वाला जो मोमेंट रावण के सामने आया था, उसकीहालत भी वैसी ही थी. ये किसी रविवार की रात थी. और अगली सुबह रवि देवता, सूरज के दोरूप उगने वाले थे. महाभारत सरीखा समय सब देखते हुए गुजर रहा था. और गुजरते हुए वोजाकर टिका 5 बजकर 30 मिनट पर. पिछली रात जागा शख़्स अब रेगिस्तान के बीचों बीच खड़ाथा. उसकी निगाहें दूर पटल पर स्थित एक बिंदु पर अटकी हुई थीं. ठीक उसी पल में, उसबिंदु ने आकार लेना शुरू किया और देखते देखते बिंदु एक विशाल वृत्त में बदल गया.महाविनाश साक्षात सामने था. मानो भगवान कृष्ण अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखा रहेहों. अर्जुन को भगवान ने गीता सिखाई थी. उसी गीता का एक श्लोक उस शख़्स के होंटोंपर था. “कालोअस्मि लोक क्षयकृत्प्रवृद्धो". मैं काल हूं. संसारों का नाश करने वाला.देखें वीडियो.