ये भारत की आज़ादी और बंटवारे के कुछ रोज़ बाद की बात है. पाकिस्तान के उत्तरीवज़ीरिस्तान में अपने सैनिक आवास में बैठा एक ब्रिटिश डिविज़न कमांडर सोच में डूबाहुआ था कि तभी एक भारतीय ब्रिगेडियर ने आने की सूचना दी. 1/7 राजपूत रेजिमेंट केब्रिगेडियर, बख्शी कुलदीप सिंह अंदर आए. 1/7 राजपूत को वज़ीरिस्तान से भारत लौटनाथा. और ब्रिगेडियर बख्शी इसी सिलसिले में डिविज़न कमांडर से बात करने आए थे. अचानकउन्हें अहसास हुआ कि उनसे एक गलती हो गई है. ये क़बीलाई इलाक़ा था, जहां हर समयख़तरा बना रहता था और ब्रिगेडियर अपनी पिस्टल साथ लाना भूल गए थे. इतनी देर मेंउन्होंने देखा कि उनका एक अर्दली उनके पीछे पीछे आ गया है. अर्दली ने अपनी एक जेबसे ब्रिगेडियर की सर्विस पिस्टल और दूसरी जेब से एक.32 इंच की पिस्टल निकाली. दोनोंपिस्टल उसने टेबल में रखी, और लगभग डांटते हुए अपने सीनियर से बोला, "साब आप हथियारसाथ नहीं लाए हैं".कमरे में मौजूद अंग्रेज अफ़सर ये सब देख रहा था. उसे हैरानी इस बात की थी कि एकअर्दली बिना इजाज़त डिविज़न कमांडर के घर में कैसे घुस आया. गार्ड्स ने उसे रोकाक्यों नहीं. कुछ देर तक उसने इस बारे में सोचा और फिर ब्रिगेडियर बख्शी की ओरमुख़ातिब होकर बोला,"ब्रिगेडियर! इस धरती पर ऐसा कोई नहीं है जो 1/7 राजपूत को वो करने से रोक सके, जोवो करना चाहते हैं. 1/7 राजपूत जब चाहेंगे, यहां से निकल जाएंगे"