कहानी की शुरुआत होती है 8 वीं सदी से. मदुरै तब पांड्य राजाओं की राजधानी हुआ करता था. कौटिल्य अपने अर्थशास्त्र में इसे दक्षिण की मथुरा लिखते हैं. पांड्य राजवंश का विशाल साम्राज्य धनधान्य से भरपूर था. लेकिन 20-22 साल के बोधिसेना का दिल मदुरै में नहीं था. हालांकि इस विलासिता से ऊबकर ही वो शाक्य मुनि की शरण में गया था. लेकिन अब उसे आगे की यात्रा करनी थी. कहानी कहती है कि एक रोज़ मंजुश्री उसके सपने में आए और कहा, वुटाई के पहाड़ पर जाओ, वहां मैं तुमसे मिलूंगा. बौद्ध धर्म के महायान स्कूल में मंजुश्री को सर्वोच्च बुद्धिमता का प्रतीक माना जाता है जो अलग-अलग रूपों में धरती पर पैदा होते हैं. जैसे ही बोधिसेन को ये स्वप्न आया वो अपने रास्ते पर निकल गया. माउंट वुटाई चीन में था. इसलिए बोधिसेना ने समंदर का रास्ता पकड़ा और एक नाव में बैठकर मलेशिया-फिलीपींस के रास्ते माउंट वुटाई तक पहुंच गए. यहां पहुंचकर बोधिसेना को पता चला कि मंजुश्री ने दोबारा जन्म लिया है लेकिन जापान में. चीन में तब बुद्ध धर्म का खूब प्रचार प्रसार हो चुका था. इसलिए बुद्ध धर्म की दीक्षा देते हुए बोधिसेना यूं ही विचरने लगे. देखिए वीडियो.