साल 2022 का बसंत. एक पुरानी कहावत दोहराई गई. ‘एक युद्ध सभी युद्धों का अंत करदेगा’. बात कर रहे हैं रूस यूक्रेन युद्ध की. युद्ध हो रहा था सुदूर यूरोप में.लेकिन सभी युद्धों की तरह इस युद्ध ने भी दुनिया को दो खेमों में बांट दिया. एक वोजो यूक्रेन की तरफ थे, एक वो जो रूस की तरफ. भारत किस तरफ था? विश्लेषकों की मानेंतो भारत बार-बार सिर्फ शांति की बात करता रहा.पश्चिम से जो आवाजें उठीं, उनमें कहागया कि भारत इस युद्ध में मध्यस्थ की भूमिका अदा कर सकता है. भारत के प्रति इस सोचका कारण यूं ही नहीं है. आजादी के बाद वक्त-वक्त पर भारत ने युद्धों के बीच शांतिकी कोशिश की है.आज बात इतिहास के एक ऐसे ही चैप्टर की. जब भारत ने उस युद्ध में मध्यस्था की जिसमेंएक तरफ चीन और सोवियत रूस थे, तो दूसरी तरफ अमेरिका. हम बात कर रहे हैं साल 1950 से1953 के बीच हुए कोरिया युद्ध की. जब ये युद्ध शुरू हुआ, भारत को आजाद हुए महज 3साल हुए थे. इसके बावजूद भारत ने अपनी फौज भेजी. लड़ने के लिए नहीं, बल्कि शान्ति केलिए. - कोरिया युद्ध में भारत की क्या भूमिका थी?- क्यों कोरिया के लोग भारतीय सैनिकों को ‘मैरून टोपी वाले मसीहा’ कहकर बुलाते थे?- और क्यों इस युद्द के बाद अमेरिका और यूरोप के 80 सैनिकों को भारत लाया गया?