साल 1990 की बात है. इस्लामाबाद से कुछ 30 किलोमीटर दूर माणिक्यल में एक रैली चलरही थी. मई की महीना. सूरज आसमान से आग बरसा रहा था. इसके बावजूद लोग घंटों सेइंतज़ार कर रहे थे. एक छोटे से शामियाने में बने स्टेज पर माइक लगा था. चंद मिनटोंमें आगमन हुआ वजीर-ए- आजम बेनजीर भुट्टो का. बेनज़ीर कुछ देर तक इधर-उधर की कहतीरहीं. मसलन, पाकिस्तान को आत्मनिर्भर होना होगा, हमारी किस्मत हमारे हाथ में है, इसतरह की बातें. लोगों के मुंह लटके हुए थे. उन्हें बेनजीर से कुछ और सुनना था. भीड़का मायूस चेहरा देखते हुए बेनजीर ने स्थिति को भांपा और पब्लिक एकदम से जिन्दा होगई. बेनजीर के मुंह पर अब एक ही नाम था, कश्मीर. पब्लिक नारे लगाने लगी थी, “कश्मीरहम लेके रहेंगे”.