मगध, जहां कभी चाणक्य के विचारों ने साम्राज्य की नींव रखी, जहां नालंदा औरविक्रमशिला दुनिया में ज्ञान-ज्योति से चमके. जो कभी भारत के स्वर्णिम अध्यायों कागवाह था. आज मगध का वो साम्राज्य तो नहीं बचा, लेकिन उसका ज्यादातर हिस्सा आज बिहारमें आता है. कभी सबसे समृद्ध साम्राज्य में शुमार मगध, आज बिहार की शक्ल की शक्लमें बेरोजगारी और पलायन की कहानी बयां कर रहा है. प्रदेश में न ढंग की प्राइवेटकंपनियां हैं और न पर्याप्त मात्रा में अच्छी प्राइवेट नौकरियां. विकास जो ग़ायबहुआ था, उसने ना लौटने की क़सम खा ली. यूनिवर्सिटियों में 3 साल का BA, 6 साल मेंपूरा होता है, सरकारी नौकरियों की भर्ती कभी टाइम नहीं पर होती. आखिर बिहार की येदुर्दशा क्यों है? क्या है बिहार की बर्बादी की असल तस्वीर? कितने युवा बेरोज़गारहैं? कितने पलायन को मजबूर हैं और प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की बदहाल है? क्याबिहार की ये तस्वीर बदल सकती है? कोई उपाय बाकी है या सब चौपट हो चला है।