कविताओं से जुड़ा हमारा कार्यक्रम 'एक कविता रोज़'. आज आपको सुनाते हैं एक जादूगर कीकविता. जादूगर का नाम - विनोद कुमार शुक्ल. जादू दिखाने के उन्हें किसी छड़ी की नहींबल्कि अपनी कलम की ज़रूरत होती है. कागज़ पर वो कलम घुमाते हैं और कुछ ऐसा छप जाता हैजो सदियों से वहीं था मगर हमें दिखा नहीं था. जैसे जब वो कहते हैं कि - 'कुछ भीनहीं में/सब कुछ होना बचा रहेगा', तो हमें वो सब कुछ, कुछ भी नहीं में दिखता हैजिसे हम ना जाने कब से ढूंढ रहे थे. खैर आज की कविता पर आते हैं. आज विनोद कुमारशुक्ल की जो कविता हम पढ़ने जा रहे हैं उसका शीर्षक है - प्रेम की जगह अनिश्चित है.देखिए वीडियो.