21 जनवरी 2022 (Updated: 21 जनवरी 2022, 06:56 PM IST) कॉमेंट्स
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28 मई 2021 को प्रधानमंत्री मोदी अंफान तूफान से हुए नुकसान की समीक्षा करने पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मेदिनीपुर गए. दोपहर के 2 बजे पश्चिमी मेदिनीपुर के कलाईकुंडा में एक बैठक की, मगर उनके बगल की दो कुर्सियां करीब आधे घंटे खाली रही. एक कुर्सी सीएम ममता बनर्जी की थी और दूसरी राज्य के तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी अलपन बंधोपाध्याय की. खाली कुर्सियां विवाद का विषय बन गईं, प्रधानमंत्री को आधे घंटे इंतजार कराने के बाद ममता आईं और तूफान से हुए नुकसान की प्राइमरी रिपोर्ट सौंपकर बिना मीटिंग किए निकल गईं.
एक नेता ने दूसरे नेता को इंतजार कराया, एक दूसरे पर राजनीतिक आक्षेप खूब हुए. लेकिन बात सिर्फ पॉटिकल नहीं रह गई. क्योंकि एक IAS अधिकारी जो चीफ सेक्रेटरी थे, उनका मीटिंग में ना आना केंद्र सरकार को अखर गया. और हुआ ये कि रात होते-होते केंद्र सरकार की तरफ से DoPT यानि डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग ने अलपन बंधोपाध्याय को दिल्ली बुला लिया.
DoPT को हिंदी में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग कहते हैं और यही IAS अधिकारियों के काडर को कंट्रोल करता है. और कार्मिक विभाग का मंत्रायल खुद प्रधानमंत्री के पास है. तो फिर विभाग ने तुंरत ही बंगाल सरकार से उन्हें रिलीव करने की गुजारिश की. साथ ही अल्पन बंधोपाध्याय को 31 मई, सुबह 10 बजे तक दिल्ली रिपोर्ट करने को कहा गया.
अब यहां दिलचस्प ये था कि 31 मई को ही 1987 बैच के IAS अल्पन बंधोपाध्याय रिटायर हो रहे थे और केंद्र सरकार ने कार्रवाई के मूड से उन्हें दिल्ली बुलाया था. मगर चीफ सेक्रेटरी तो थहरे सीएम के खास आदमी,तो उनकी तरफ से सीएम ममता बनर्जी ने मोर्चा खोल दिया. उनकी तरफ से कह दिया गया कि 3 दिन में रिटायर हो रहे हैं तो वो दिल्ली नहीं जाएंगे. चुनाव का टाइम था और याद होगा इस पर केंद्र और राज्य में बड़ी तनातनी हुई. फौरन ही उन्हें चीफ सेक्रेटरी से हटाकर ममता ने अपना मुख्य सलाहकार बना लिया.
लेकिन मसला पीएम मोदी को इंतजार कराने का था. तो फिर केंद्र भी अड़ गया, कहा गया कि भले ही वो रिटायर हो रहे हैं लेकिन उन्होंने PM मोदी को आपदा के समय में इंतजार करा डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट का उल्लंघन किया. प्रधानमंत्री NDMA नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरटी के चेयमैन होते हैं और अधिकारी के गायब रहने पर कार्रवाई बनती है.
अलपन से लिखित जवाब मांगा जाने लगे और इसके बाद आपको याद होगा कि सीएम ममता बनर्जी की तरफ ट्विटर समेत टीवी पर बड़ी तीखी प्रतिक्राया दी गई. केंद्र की तरफ से भी. मामला हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट तक पहुंच गए.
अब देखिए भारत राज्यों का एक संघीय ढांचा है. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री उसके पिलर हैं. एक IAS अधिकरी जिससे जनता के चुने हुए प्रधिनिधि को काम करना होता है, वो उस अधिकारी के लिए काम करने लग गए. एक बचाने में लग गया और दूसरा ना बख्शने में. सारा विवाद एक IAS की राज्य से दिल्ली में पोस्टिंग को लेकर हुआ.
अब आ जाते हैं आज के प्वाइंट पर. ये सारी कहानी आखिर सुनाई क्यों. तो वजह ये है कि IAS की पोस्टिंग को लेकर ही फिर से बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और केंद्र की मोदी सरकार आमने-सामने है.
दरअसल हुआ ये है कि केंद्र सरकार ने IAS कैडर रूल्स 1954 में बदलाव करना चाहती है. उसके लिए वो अगले सत्र में संसद से बिल पास कराने की तैयारी में है. केंद्र ने राज्यों को एक्ट का ड्राफ्ट भेजकर उनसे सुझाव मांगा है. 25 जनवरी तक राज्यों को जवाब देना है.
होता ये है कि अब तक IAS रुल्स 1954 के तहत जब केंद्र सरकार को राज्य सरकार के अधीन काम कर रहे किसी IAS अधिकारी को दिल्ली लाना होता है, तो वो राज्य से गुजारिश करती थी कि फला अधिकारी को डेप्यूटेशन पर दिल्ली भेज दीजिए. इसके लिए IAS अधिकारी को राज्य से नो ऑब्जेशन सर्टिफिकेट लेना होता था यानि एक तरह की सहमती ली जाती है और फिर वो केंद्र के विभागों में आ जाता था. राज्य के मना करने पर भी केंद्र के फैसले को ही तरजीह दी जाती है.
लेकिन अब केंद्र सरकार इस नियम में बदलाव करना चाहती है. नए ड्राफ्ट में नियम ये हैं कि किसी भी IAS अधिकारी को केंद्र में लाने के लिए अब राज्यों की सहमती की जरूरत नहीं होगी. जैसा अभी होता है. केंद्र से आदेश आएगा कि राज्य इस IAS अधिकारी को इस तारीख को दिल्ली भेजिए तो राज्यों को भेजना ही पड़ेगा. अगर राज्य ने नहीं भेजा तो केंद्र की बताई गई तारीख से अधिकारी कार्यमुक्त माना जाएगा
यानि केंद्र जब चाहेगा, किसी भी राज्य के सीनियर IAS अधिकारी, जो भी केंद्र में काम करने की काबिलियत रखता है, उसे बुला लेगा. आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्रा ने इस तरह के IAS कैडर नियमों में बदलाव के ड्राफ्ट पर मुहर भी लगा दी.
यानी केंद्र सरकार की दलील है कि कई राज्यों के अधिकारी केंद्र में काम नहीं करना चाहते. महाराष्ट्र का उदाहरण देकर कहा कि वहां से 93 अधिकारियों का कोटा है और केंद्र में सिर्फ महाराष्ट्र कैडर के सिर्फ 22 अधिकारी हैं. केंद्र की तरफ से दलील है कि उसके पास काम करने वाले IAS अधिकारियों की कमी है और जब राज्यों से अधिकारी मांगे जाते हैं तो वो अपने काबिल और भरोसेमंद अधिकारियों को देने से मना कर देते हैं. जैसा बंगाल के केस में देखने को मिला और इस स्थिति में विवाद होता है. लेकिन ये तो केंद्र की दलील है,
चुंकि हम पत्रकार हैं दोनों पक्षों की दलील रखना हमारा काम है. अब राज्यों की चिंता ये है कि अगर IAS अधिकारियों को केंद्र से कंट्रोल किया जाने लगा तो फिर राज्य में काम कैसे होगा ? ममता बनर्जी की तरफ से संघीय ढांचे को तोड़ने का आरोप लगाते हुए एक नहीं दो चिट्ठी लिखी जा चुकी है. क्या लिखा...
लिखा कि
डीओपीटी के मंत्री कौन हैं, (यहां इशारा प्रधानमंत्री मोदी की तरफ है). प्रस्ताव सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ हैं और "राज्य के प्रशासन को प्रभावित करेंगे". "प्रस्तावित संशोधन के माध्यम से अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति के लिए उपलब्ध कराने पर जोर देने से न केवल राज्यों का प्रशासन प्रभावित होगा बल्कि राज्य के प्रशासन का आकलन और योजना बनाना भी असंभव हो जाएगा.
अब होता क्या है कि हर सरकार को अपने भरोसेमंद अधिकारी चाहिए होते हैं और होना भी चाहिए क्योंकि जिस पर भरोसा होगा, उसके साथ काम करना आसान रहता है. लेकिन अगर केंद्र जब चाहे, जिसे चाहे दिल्ली बुला ले तो इस नियम से राज्यों को आपत्ति हो गई और सिर्फ ममता बनर्जी हीं नहीं बल्कि ओडिशा की तरफ से IAS एक्ट में बदलाव के ड्राफ्ट का विरोध किया गया. महाराष्ट्र की कैबिनेट बैठक में भी इसके खिलाफ दिखी, उनकी तरफ से चिट्टी लिखी जाएगी.
मगर ये तो रहे बीजेपी के विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्य, मगर इंडियन एक्सप्रेस ने अपने सूत्रों के मुताबिक दावा किया है कि नए नियमों पर मध्य प्रदेश, बिहार और मेघालय की सरकार ने भी चिंता जताई है. क्योंकि हर राज्य की सरकारों को लगता है कि उनके अधिकारियों पर उनका पूरा कंट्रोल रहे.
कई अधिकारी नेताओं से तालमेल बना मामला राज्य में ही जमा लेते हैं
बिहार के चीफ सेक्रेटरी आमिर सुभानी ने तो इंडियन एक्सप्रेस से ये भी कहा- अभी का नियम ही अच्छा है. यानी आने वाले समय में केंद्र और राज्य के बीच टकराव की एक बड़ी स्थिति बनती नजर आ रही है और कम से कम TMC की तरफ से आ रहे बयान से यही लग रहा है
TMC सांसद सौगत राय केंद्र के इस फैसले को राष्ट्र की धारणा के खिलाफ बता रहे हैं, जबकि बीजेपी नेता शुभेंदू अधिकारी कह रहे हैं कि ये होना जरूरी है और हवाला वही अल्पन बंधोपाध्याय का ही दे रहे हैं
बीजेपी के नेताओं और विपक्ष के नेताओं के तर्क अपनी-अपनी जगह है. हर कोई अपनी ढपली, अपना राग चाहता है. लेकिन इस पर नियम क्या कहते हैं. इतियास क्या कहता है ?
इतिहास ये कहता है कि भारत में प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए अंग्रेजों ने 1861 के साल में सिविल सेवा शुरू की. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स सिविल सेवकों की नियुक्ति करते थे. उस समय ICS मतलब इंडियन सिविल सर्विस होती थी. आजादी मिली तो अंग्रेजी की शासन की इस प्रणाली को अपनाया गया. मगर ICS का नाम बदल कर IAS यानि इंडियन एडमिनिस्ट्रेशन सर्विस हो गया. ये तो रहा इतिहास.
अब नियम ये कहते हैं कि चाहे IAS, IPS और IFS यानि इंडिनय फारेस्ट सर्विस , इसके जो भी अधिकारी होते तो केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं. UPSC के जरिए चुनकर आते हैं. मगर बाद में उन्हें काडर चुनने का ऑप्शन दिया जाता है. जैसे यूपी काडर, एमपी काडर, बाकी राज्यों के काडर. वरियता और पंसद के आधार पर अधिकारियों को राज्य मिल जाते हैं और वो उस राज्य के अधीन हो जाते हैं.
इनके अवाला एक होता है AGMUT काडर, जिसके तहत केंद्रशासित राज्यों और नॉर्थ के कुछ राज्यों में नियुक्तियां होती हैं. AGMUT काडर के अधिकारियों की नियुक्ति, ट्रांसफर पोस्टिंग सीधे केंद्र के कंट्रोल में रहता है. मगर बाकी राज्यों में ऐसा नहीं होता. मगर हां एक नियम और है. राज्यों को 40% कोटा केंद्र में डेप्यूटेशन के लिए भी रिजर्व रखना पड़ता है. केंद्र हर साल 10 में 4 सीनियर IAS अधिकारियों के नाम भी मांगता है. मगर राज्य क्या करते हैं, अपने चहेते अधिकारियों का नाम नहीं देते हैं. अब भाई प्रशासन चलाने के लिए हर किसी को काबिल आदमी चाहिए और कोई अपना काबिल आदमी छोड़ना भी नहीं चाहता.
तो बीच का रास्ता क्या है और केंद्र और राज्य के तनाव की वजह क्या ? अब इस विषय पर ज्यादा जानकारी रखने वाले विकास पाठक से समझिए. उन्होंने हमें बताया
ये वाला सिस्टम तब तक सही था जब तक केंद्र और राज्य में सहमति हो सकती थी. लेकिन अभी कुछ समय से केंद्र और कुछ राज्यों में दूरियां बढ़ गई हैं. इनका अब एक दूसरे पर भरोसा कम हो गया है. इसलिए केंद्र सरकार अपनी समस्या हल करने के लिए ऐसा करना चाहती है
यानी तनाव की वजह दो तरफा है. पीएम को अपने खास अधिकारी चाहिए तो सीएम को भी खास अधिकारी चाहिए. IAS के अलावा IPS और IFS के नियमों में भी बदवाल की मंशा है. ड्राफ्ट में एक और बात है जिसपर राज्यों का विरोध है. वो क्या है...मान लीजिए कि आपके घर में कोई IAS बन गया और उसे बिहार कैडर मिला. तो अब उस पर सीधा कंट्रोल बिहार के चीफ सेक्रेटरी का होगा, जो सूबे का सबसे बड़ा IAS अधिकारी है.
चीफ सेक्रेटरी पर सीधा कंट्रोल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का होगा. किसी जिले में ट्रांसफर करना, सचिवालय में पोस्टिंग करनी है, सबकुछ मुख्यमंत्री की मर्जी से होगा. कुछ गलती हुई तो कार्रवाई भी उन्हीं की तरफ से होगी. लेकिन केंद्र सरकार अब कार्रवाई में भी वैकल्पिक व्यवस्था चाहती है.
अब तक क्या होता है कि जैसे बंगाल के IAS या IPS अधिकारी पर केंद्र सीधे निलंबन या ट्रांसपर की कार्रवाई करना चाहे तो नहीं कर सकता. वो काम राज्य का चीफ सेक्रेरटरी ही कर सकता है, जो मुख्यमंत्री के आदेश पर काम करता है.
उदाहरण के लिए मान लीजिए कि किसी अधिकारी केंद्र ने तलब भी लिया और कहा कि कल दिल्ली आइए तो हो सकता है वो ये कह दे कि कल तो सीएम साहब के साथ बैठक है, मैं नहीं आऊंगा. राज्य के अधिकारी का मालिक सीएम तो वफादारी भी सीएम की तरफ और इस स्थिति में केंद्र ज्यादा कठोर कार्रवाई भी नहीं कर सकता.
आपको याद हो तो बंगाल चुनाव के वक्त डायमंड हार्बर में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर पत्थर चले, हमला हुआ तो केंद्र ने 3 IPS अधिकारियों को तत्काल दिल्ली बुलाया, मगर फिर सीएम अपने ममता बनर्जी ने अपने अधिकारियों को देने से मना कर दिया और आज भी वो अधिकारी बंगाल में कार्यरत हैं.
केंद्र कोई कार्रवाई भी नहीं कर पाया. पंजाब के सिक्योरिटी ब्रीच के मामले में भी यही हुआ. जानकारी के बावजूद अनदेखी हुई, IPS अधिकारियों से जवाब तलब चल रहा है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है. मगर केंद्र कार्रवाई नहीं कर पाया और बीते दिनों हुई इन्हीं सब बातों को जानकार विवाद की वजह मान रहे हैं
यानी नियमों में बदलाव के जरिए केंद्र अब IAS अधिकारियों पर सीधा कंट्रोल चाहता है और राज्यों को लग रहा है कि केंद्र का सीधा दखल हुआ तो फिर काम करना मुश्किल हो जाएगा. केंद्र ने चाहा तो सीधे सीएम के चीफ सेक्रेटरी पर ही कार्रवाई हो जाएगी तो सीएम छटपटा कर रह जाएगा. ये ऐसा विषय है जिस पर लंबी बहस होने वाली है और हो सकता है कि आने वाले दिनों में संसद में भी खूब बवाल कटे. इसलिए आज ही हमने आपको सब बता दिया, दोनों पक्षों का तर्क भी दिखा दिया ताकि आपको राय बनाने में आसनी हो.