थाईलैंड में किसके अच्छे दिन आ गए?
भांग के फ़ेयर और रिक्रिएशनल यूज़ में क्या अंतर हैं?

दक्षिण-पूर्वी एशिया का एक देश है, थाईलैंड. बांग्लादेश और म्यांमार के बाद थाईलैंड आता है. इस देश में ड्रग्स से जुड़े सबसे सख़्त कानून हैं. ड्रग्स के इस्तेमाल के लिए थाईलैंड में मौत की सज़ा तक का प्रावधान है. लेकिन यहीं एक करिश्मा हुआ है. थाईलैंड ने भांग की खेती और बिक्री को लीगल बना दिया है. वो ऐसा करने वाला एशिया का पहला देश बन गया है.
आज हम जानेंगे,
- थाईलैंड ने भांग को लीगल क्यों बनाया?
- भांग के फ़ेयर और रिक्रिएशनल यूज़ में क्या अंतर हैं?
- और, इसे वैध करने के पीछे की वजहें क्या हैं?
08 जून 2022 की तारीख़ को थाईलैंड सरकार ने भांग की खेती को इजाज़त दे दी है. कुछ प्रतिबंधों के साथ. सरकार ने मैरुआना को प्रतिबंधित नारकोटिक्स की लिस्ट से बाहर कर दिया है. इससे क्या होगा? अब थाईलैंड में लोग अपने घरों में भांग की खेती कर सकेंगे. और, उसे बेच भी सकते हैं.
2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, थाईलैंड दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से है, जहां की जेलों में तय क्षमता से अधिक क़ैदी बंद थे. इनमें से 80 प्रतिशत क़ैदी ड्रग्स से जुड़े मामलों में पकड़े गए थे. 2021 में सरकार ने नियमों में कुछ ढील दी. पुनर्वास केंद्र स्थापित किए. ड्रग्स से जुड़े अपराधों को उनकी गंभीरता के आधार पर विभाजित किया. हालांकि, इससे बहुत फ़र्क़ नहीं पड़ा.
सामाजिक कार्यकर्ता मांग कर रहे थे कि भांग के रिक्रिएशनल यूज़ को मंजूरी दी जाए. रिक्रिएशनल यूज़ का मतलब क्या है? जब भांग का इस्तेमाल मेडिकल कंडीशन की बजाय निजी आनंद के लिए किया जाए. थाईलैंड ने इस दफ़ा भी रिक्रिएशनल यूज़ पर लगा प्रतिबंध बरकरार रखा है.
अब समझते हैं कि सरकार ने किस चीज़ की इजाज़त दी है?
- अब से लोग अपने घर पर अधिकतम भांग के 06 पौधे लगा सकते हैं. इसके लिए उन्हें सरकार से इजाज़त लेनी होगी.
- कंपनियां भी तय मात्रा में भांग की खेती कर सकतीं है. बशर्ते उनके पास सरकारी परमिट हो.
- होटल और रेस्टोरेंट में भी भांग से बनने वाला खाना या ड्रिंक परोसे जा सकते हैं.
- थाईलैंड के अस्पताल भांग के ज़रिए मरीज़ों का इलाज़ करने के लिए आज़ाद होंगे. थाईलैंड ने 2018 में ही भांग के मेडिकल इस्तेमाल की इजाज़त दे दी थी.
- नए कानून के आने के बाद जेल में बंद 04 हज़ार से अधिक क़ैदियों को राहत मिलेगी. उन्हें जल्द-से-जल्द रिहा करने की योजना है.
आपके मन में जिज्ञासा हो रही होगी कि क्या लीगल नहीं है?
- अभी भी तय स्तर से अधिक केमिकल वाला ड्रग बेचना या सप्लाई करना अवैध है.
- सड़क पर चलते हुए गांजा पीना लीगल नहीं है. यानी, अभी थाईलैंड में कोई व्यक्ति नशाखोरी के लिए भांग का इस्तेमाल नहीं कर सकता. अगर कोई ऐसा करते पकड़ा गया तो उसे तीन महीने की जेल हो सकती है या 60 हज़ार रुपये तक का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है.
अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि थाईलैंड सरकार ने भांग को लीगल क्यों बनाया?
- पहली वजह टूरिज्म से जुड़ी है. कोविड महामारी के चलते दुनियाभर के देशों में पर्यटन बाधित हुआ. इसके चलते उन देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई. श्रीलंका की हालत हम देख ही रहे हैं. थाईलैंड की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. थाईलैंड की इकॉनमी का बड़ा हिस्सा टूरिज़्म पर टिका है. कोविड-युग बीतने के बाद टूरिज्म सेक्टर बूम पर है. थाईलैंड सरकार को उम्मीद है कि इस फ़ैसले से टूरिज़्म इंडस्ट्री पटरी पर लौट आएगी. हालांकि, टूरिस्टों के लिए गांजा पीने पर बैन रहेगा. थाईलैंड के हेल्थ मिनिस्टर ने सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा कि अगर आप भांग पर आधारित इलाज कराने के लिए हमारे देश में आते हैं तो, आपका स्वागत रहेगा. अगर आप ये सोच रहे हैं कि आप हमारे देश में आकर खुलेआम नशा कर सकते हैं तो आपकी भूल है. यू आर नॉट वेलकम देन.
- दूसरी वजह जेलों से जुड़ी है. जैसा कि हमने बताया, थाईलैंड की जेलों में 80 प्रतिशत से अधिक क़ैदी ड्रग्स से जुड़े आरोपों में बंद हैं. जेलों में भीड़ बढ़ रही है. इसके चलते जेलों के अंदर हिंसा बढ़ रही है. सरकारी मशीनरी के लिए उसको कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा है.
- तीसरी वजह अर्थव्यवस्था से जुड़ी है. थाईलैंड सरकार को उम्मीद है कि भांग को लीगल बनाने से सरकार को हर साल लगभग 15 हज़ार करोड़ रुपये तक की आमदनी होगी. थाईलैंड का कृषि मंत्रालय दस लाख भांग के पौधे फ़्री में बांटने की योजना बना रहा है.
- चौथी वजह वैध बनाम अवैध की बहस से जुड़ी है. जानकारों का मानना है कि कानूनी सख़्ती के चलते ड्रग्स का अवैध इस्तेमाल बढ़ता है. गैंग्स को फलने-फूलने का मौका मिलता है. सरकार के फ़ैसले से इसके ऊपर भी लगाम लगाई जा सकेगी.
ये तो हुई वजहें. अब समझते हैं कि भांग को लीगल बनाने से ज़रूरी बदलाव आ जाएंगे?
जानकारों की मानें तो सरकार की पहल अच्छी है. आने वाले समय में इसमें और ढील दी जाएगी. लेकिन एक सच ये भी है कि मेडिकल और पर्सनल यूज़ के बीच की रेखा बहुत पहले मिट चुकी है. थाईलैंड में कानून बनने से पहले भांग से जुड़े उत्पादों का इस्तेमाल होता आ रहा है. देखना दिलचस्प होगा कि सरकार कितनी बारीक़ी से मात्रा का ख़याल रख पाती है.
अब सुर्खियों की बारी.
पहली सुर्खी अमेरिका से है. कई अपडेट्स हैं. एक-एक कर जान लेते हैं.
- अमेरिका की संसद के निचले सदन यानी हाउस ऑफ़ रिप्रजेंटेटिव्स ने बंदूकों की बिक्री से जुड़ा बिल पास कर दिया है. इस बिल में 21 वर्ष से कम उम्र के लोगों को सेमी-ऑटोमेटिक हथियार बेचने पर पाबंदी का प्रावधान है. अब इस बिल को संसद ऊपरी सदन यानी सेनेट में भेजा जाएगा. जानकारों के मुताबिक, सेनेट में बिल को मंज़ूरी दिलाने के लिए कम-से-कम 10 रिपब्लिकन सांसदों का सहयोग चाहिए. रिपब्लिकन पार्टी गन रेगुलेशन के कतई ख़िलाफ़ है. इसलिए, बिल का पास होना लगभग असंभव है.
- अगली अपडेट एक मुकदमे से जुड़ी है. नेशनल जिमनास्टिक्स टीम के डॉक्टर पर यौन शोषण का आरोप गाने वाली महिला खिलाड़ियों ने अब FBI को कोर्ट में घसीट लिया है. खिलाड़ियों ने FBI से लगभग आठ हज़ार करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है. इन खिलाड़ियों में ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता सिमोन बाइल्स, एली राइसमैन और मेकायला मेरोनी के नाम शामिल हैं. उनका आरोप है कि जिमनास्टिक्स टीम के पूर्व कोच लैरी नासेर के मामले में FBI ने ठीक से काम नहीं किया. नासेर पर महिला खिलाड़ियों का यौन शोषण करने के आरोप लगे थे. 2021 में यूएस जस्टिस डिपार्टमेंट ने FBI की जांच को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें कहा गया था कि FBI एजेंट्स ने मामले की जांच में ढील बरती. इसके चलते नासेर का यौन अपराध और लंबे समय तक जारी रहा. उसने कई और महिला खिलाड़ियों और जिमनास्टिक स्टूडेंट्स को अपना शिकार बनाया. जबकि उन्हें बचाया जा सकता था. नासेर को बाद में 175 सालों की सज़ा हुई थी.
दूसरी सुर्खी नाइजीरिया से है. नाइजीरिया में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने वाला है. फिलहाल, सत्ता की कमान मुहम्मदु बुहारी के पास है. लेकिन गवर्निंग पार्टी ने आगामी 2023 चुनावों के लिए अपने कैंडिडेट की घोषणा कर दी है. पार्टी ने अगले चुनाव के लिए बोला टिनुबू को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में चुना है. राष्ट्रपति बनने के लिए, उन्हें फरवरी 2023 में होने वाले आम चुनावों में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के अतीकू अबुबक्र को हराना होगा. इन सबके इतर नाइजीरिया के रुझान क्या कहते हैं? बीते मंगलवार और बुधवार को यहां प्रथम चरण के चुनाव आयोजित हुए. इसमें बोला टीनूबू ने जीत हासिल की. रुझानों के मुताबिक, टिनुबू राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार हैं. ये दावा कितना सच साबित होता है, ये देखने वाली बात होगी.
तीसरी सुर्खी श्रीलंका से है. श्रीलंका से भी दो अपडेट्स हैं.
- पहली ख़बर पावर कट की है. 09 जून को सरकारी बिजली कंपनी सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (CEB) के लगभग एक हज़ार इंजीनियर्स हड़ताल पर चले गए. इसके चलते आठ हाइड्रोपावर प्लांट्स का काम ठप पड़ गया. इसके कारण श्रीलंका के कई हिस्सों में बिजली की सप्लाई बंद हो गई है. हड़ताल पर जाने वाले इंजीनियर्स एनर्जी सेक्टर से जुड़े कानूनों में बदलाव की मांग कर रहे हैं. हड़ताल शुरू होने से कुछ घंटे पहले ही राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने बिजली सप्लाई को आवश्यक सेवाओं की लिस्ट में डाल दिया था. इसके बावजूद सरकार असंतोष को थामने में नाकाम रही.
- अगली अपडेट एक इस्तीफ़े से जुड़ी है. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के भाई और पूर्व वित्तमंत्री बासिल राजपक्षे ने संसद से इस्तीफ़ा दे दिया है. ताक़तवर राजपक्षे परिवार का ये दूसरा इस्तीफ़ा है. इससे पहले प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने 09 मई को इस्तीफ़ा दिया था. बासिल ने कहा कि अब वो सरकार के किसी भी काम में हिस्सा नहीं लेंगे. हालांकि, बासिल राजनीति में बने रहेंगे.
आज की चौथी और अंतिम सुर्खी डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कॉन्गो से है. अपनी ग़लती मानने वाला इंसान महान होता है, ये सीख हमने कई दफ़े नैतिक शिक्षा की किताबों में पढ़ी है. आज इसका जीता-जागता उदाहरण बेल्जियम से आया है. बेल्जियम के राजा फ़िलिप ने पूर्वजों के शासन के दौरान हुए नस्लवाद की निंदा की है. किंग फिलिप फिलहाल डीआर कॉन्गो के दौरे पर हैं. उन्होंने इसी यात्रा के दौरान एक कार्यक्रम में ये बात कही. उन्होंने कहा,
मेरे पूर्वजों का शासन अन्यायपूर्ण रहा है. उनके राज में पितृसत्ता, भेदभाव और नस्लवाद था. कांगो की मेरी पहली यात्रा के अवसर पर मैं कांगो के लोगों से माफ़ी मांगता हूं. मैं अतीत के उनके घावों के लिए गहरा खेद प्रकट करता हूं.
ये तो रही राजा फिलिप की माफ़ी लेकिन अब जानते हैं कि बेल्जियम का औपनिवेशिक शासन इतना क्रूर क्यों था?
बेल्जियम शासन के दौरान जब किंग लियोपोल्ड द्वितीय गद्दी में थे, उस समय पूरे देश को राजा की निजी संपत्ति घोषित कर दिया गया था, उनके शासन के दौरान गुलामी का कल्चर परवान चढ़ रहा था, आलम ये था कि गलती होने पर अधिकारी गुलामों के अंग काट दिया करते थे. बेल्जियम का औपनिवेशिक शासन 1885 से 1960 तक चला था. इस शासन के शुरुआती 23 सालों में कॉन्गो में एक करोड़ से अधिक लोगों की मौत हुई थी. बेल्जियम ने कॉन्गो से बड़ी संख्या में कलाकृतियां भी लूटीं थी. किंग फ़िलिप ने उनमें से कुछ को लौटाने का वादा किया है.
कानपुर हिंसा और नूपुर शर्मा पर क्या बोले असदुद्दीन ओवैसी?