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कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी आखिरी उम्मीद या मोदी मैजिक फिर से काम करेगा?

कर्नाटक विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई, पूरा राज्य एक चरण में डालेगा वोट.

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Rahul Gandhi pm modi
राहूल गांधी और पीएम मोदी
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29 मार्च 2023 (Updated: 29 मार्च 2023, 23:49 IST)
Updated: 29 मार्च 2023 23:49 IST
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एक राज्य जहां, पांच साल में चार बार शपथ होती है और तीन मुख्यमंत्री आते हैं. एक राज्य जहां सत्तारुढ़ पार्टी ने अपने ही मुख्यमंत्री से इस्तीफा लिया. और जिस नेता को मुख्यमंत्री बनाया, वो लगातार आरोपों में घिरा रहा. दक्षिण की जो शिकायत थी कि हिंदी पट्टी के चैनल वहां के बारे में बात नहीं करते, अकेले इस सूबे ने दूर कर दी है. सांप्रदायिक तनाव - नेशनल न्यूज़. सीमा पर झगड़ा - नेशनल न्यूज़. सरकार पर 40-40 फीसदी कमीशन खाने का आरोप - नेशनल न्यूज़. हम बात कर रहे हैं कर्नाटक की, जिसे 13 मई को मालूम चल जाएगा कि सरकार किसकी बनने वाली है.

चुनाव आयोग ने आज कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए तारीख़ों का एलान कर दिया है. पूरा राज्य एक चरण में वोट डालेगा, 10 मई को. और नतीजे 13 मई को आएंगे. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि चुनाव की अधिसूचना 13 अप्रैल को जारी की जाएगी और नामांकन भरने की आख़िरी तारीख़ 20 अप्रैल होगी. ये तो हो गई बुनियादी जानकारी. अब आपको कर्नाटक का मौजूदा हाल बताते हैं.

कर्नाटक विधानसभा में कुल 224 सीटें हैं. बहुमत का आंकड़ा है 113. फिलहाल -
117 सीटें भाजपा के खाते में है.
69 कांग्रेस के पास हैं.
32 जनता दल (सेकुलर) यानी JD(S) के पास है.
1 विधायक बसपा से है
2 निर्दलीय हैं.

ये कर्नाटक की 15 वीं विधानसभा है. और इसी विधानसभा ने एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, पूरे चार बार मुख्यमंत्री को शपथ लेते देखा. 2018 में हुआ ड्रामा आपको याद होगा. विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 224 में से 104 सीटें मिली थीं. कांग्रेस ने 80, और JDS ने 37 सीटें जीती थीं. नतीजों का ऐलान होते-होते ही साफ हो गया कि किसी को बहुमत नहीं मिलेगा, इसीलिए कांग्रेस-जेडीएस साथ हो लिए. लेकिन येदियुरप्पा को शपथ दिला दी गई. अब उनके पास विधायक तो थे नहीं. और न किसी ''फ्लोर मैनेजमेंट'' की उम्मीद ही थी. 6 दिन बाद सरकार गिर गई. और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के मुख्यमंत्री बने एचडी कुमारास्वामी.

कुमारास्वामी की सरकार चली 14 महीने. तभी अचानक सरकार के कुछ विधायकों का हृदय परिवर्तन हो गया. कुमारास्वामी ने कहा कि उनकी कुर्सी हिलाने के लिए भाजपा ऑपरेशन लोटस चला रही है. लेकिन उनकी शिकायतों से कुछ हुआ नहीं. विधायकों ने इस्तीफ़ा दिया. बीजेपी में शामिल हुए. और उसके बाद चुनाव भी जीते. जुलाई, 2019 में बीजेपी ने सरकार बनाई. बीएस येदियुरप्पा सीएम बने. लेकिन, दो साल बाद भाजपा ने येदियुरप्पा से भी इस्तीफा लिया. और मुख्यमंत्री बने बसवराज बोम्मई. तो एक सूबे की राजनीति में इतना हेर-फेर क्यों चल रहा है? ये समझने के लिए आपको पिछले कुछ चुनावों पर गौर करना होगा.

2008 के विधानसभा चुनाव. भाजपा ने सभी 224 सीटों पर चुनाव लड़ा और 110 सीटें अपने खाते में की थीं. दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस. 222 सीटों पर चुनाव लड़ा और 80 सीटें जीती थीं. इन दोनों के बाद JD(S). 219 सीटों पर कंटेस्ट किया और 28 सीटें निकालीं. बसपा, CPI, CPM, AMDK ने भी चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीती थी. यानी पूर्ण बहुमत किसी को नहीं मिली. बहुमत के लिए 113 सीटें चाहिए होती हैं, जो किसी ने पार नहीं किया. भाजपा सबसे बड़ी पार्टी थी. बहुमत के लिए केवल 3 सीटें चाहिए थीं, सो उन्होंने 6 निर्दलीय विधायकों को अपने पाले कर लिया और इतिहास रच दिया. कैसे? ये पहली बार था, जब बीजेपी ने कर्नाटक या किसी भी दक्षिण भारतीय राज्य में अपने दम पर सरकार बनाई.

2018 की तरह ही इस टर्म में भी तीन CM रहे थे. बीएस येदियुरप्पा, सदानंद गौड़ा और जगदीश शेट्टार. येदियुरप्पा का कार्यकाल विवादों से पटा रहा. पार्टी के अंदर भी बहुत विरोध था. सत्ता में आने के कुछ महीने बाद ही बीजेपी ने विधानसभा में अपना दम बढ़ाने के लिए कथित तौर पर कांग्रेस और जेडी (एस) के विधायकों को बीजेपी में शामिल होने के लिए कहा. करुणाकरा, सोमशेखरा और जनार्दन रेड्डी - जिन्हें राज्य में रेड्डी बंधु भी कहते हैं - उन्होंने येदियुरप्पा के 'तौर-तरीक़ों' पर सवाल उठाए. बी. श्रीरामुलु, बालचंद्र जारकीहोली के नेतृत्व वाला गुट और अनंत कुमार के नेतृत्व वाले पुराने 'भाजपाई' भी येदियुरप्पा के ख़िलाफ़ थे. येदियुरप्पा और कुमारस्वामी पर अवैध ख़नन के भी आरोप लगे थे. हालांकि, बाद में कर्नाटक हाईकोर्ट ने उन्हें इन आरोपों से बरी कर दिया.

आरोपों से छुट्टी मिली, लेकिन 'PR' बिगड़ गया. जुलाई 2011 में येदियुरप्पा को भूमि स्कैम मामले में नाम आने की वजह से इस्तीफ़ा देना पड़ा. लेकिन उनका रसूख कम नहीं हुआ. सो उन्होंने ही अपना उत्तराधिकारी चुना. डी वी सदानंद गौड़ा. लेकिन वो भी ज़्यादा नहीं टिके. भाजपा में येदियुरप्पा के विरोधी गुट की पसंद थे जगदीश शेट्टार. उन्होंने गौड़ा को चुनौती दी और मुख्यमंत्री बनने के केवल 11 महीने बाद ही भाजपा आलाकमान ने उनकी जगह शेट्टार को CM बना दिया.

इसमें एक दिलचस्प बात और बता देते हैं. भले ही भाजपा ने 110 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने 80, पर वोट शेयर के मामले में कांग्रेस भाजपा से आगे रही थी. भाजपा को 33.86 फ़ीसदी वोट मिले थे, और कांग्रेस को 34.76. फिर इन्हीं आंकड़ों के ज़रिए 2013 का चुनाव पलटा. 2008 में 110 सीट जीतने वाली भाजपा 40 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी और 122 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया और राज्य के सीएम बने सीद्धारमैया. पांच साल यही सीएम रहे. बीते चुनावों के मुक़ाबले JD(S) का भी रिकॉर्ड सुधरा. JD(S) विधानसभा में 28 से 40 सीटों पर आ गई. बसपा, CPI, CPM, AMDK का वही हाल रहा. ज़ीरो बटा सन्नाटा.

इसके बाद आता है 2018 का चुनाव, जिसके बारे में हमने आपको शुरुआत में बताया था. लेकिन एक टेन्योर में तीन सीएम और चार शपथ ग्रहण का कारण क्या था? और बोम्मई के आने के बावजूद वो ठहराव भाजपा चाह रही थी, वो नहीं आया. यहां तक आते आते हमने पिछले 15 सालों का इतिहास समझा, अब भूगोल समझते हैं. कर्नाटक का भूगोल 6 हिस्सों में बंटा है. सेंट्रल कर्नाटक, ओल्ड मैसूर, बेंगलुरु, तटीय क्षेत्र, बॉम्बे कर्नाटका और हैदराबाद कर्नाटक. ये नाम पुरानी प्रेसिडेंसीज़ और राज्यों से आए हैं. जो इलाके आंध्र-तेलंगाना से लगते हैं, उन्हें हैदराबाद कर्नाटक कहते हैं. जो महाराष्ट्र से लगते हैं, बॉम्बे कर्नाटका कहलाते हैं.

इन सारे अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग जाति समूहों और समुदायों का वर्चस्व है.

1. कोस्टल कर्नाटक
शुरुआत तटीय कर्नाटक से करते हैं. यहां उत्तरी कन्नडा, उडुपी और दक्षिण कन्नडा जिले की 19 विधानसभा सीटें हैं. 2018 में यहां बीजेपी 16 और कांग्रेस 3 सीट जीतने में कामयाब रही थी. कोस्टल कर्नाटक का इलाका बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला माना जाता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इस इलाके में अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है. बीजेपी सांसद और फायर ब्रांड नेता अनंत हेगड़े इसी इलाके से आते हैं. यहां नाथ संप्रदाय को मानने वालों की अच्छी खासी संख्या है. इसलिए बीजेपी, योगी आदित्यनाथ को भी यहां प्रचार के लिए बुलाती रहती है. यहां की राजनीति में हिंदुत्व एक बड़ा फैक्टर है.

2. ओल्ड मैसूर
ये कर्नाटक का दक्षिणी इलाका है. इसमें चामराजा नगर, रामनगरम, मांड्या, मैसूर, कोलार, तुमकुर और चिक्कबल्लपुर जिले आते हैं. यहां कुल 66 विधानसभा सीटें हैं. 2018 में इसमें से 30 जेडीएस को, 20 कांग्रेस को और 15 बीजेपी को मिली थी. एक सीट अन्य के खाते में थी. दक्षिण कर्नाटक वोक्कालिगा समुदाय का गढ़ है, जिसे जेडीएस का परंपरागत वोटबैंक माना जाता है. हालांकि इस इलाके में वोक्कालिंगा के साथ-साथ दलित और कोरबा समुदाय के वोट भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं. जेडीएस प्रमुख एचडी देवगौड़ा और कुमारस्वामी वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार भी वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. जबकि सिद्धारमैया कोरबा समुदाय से. बीजेपी के पास इस इलाके में कोई बड़ा चेहरा नहीं था. हालांकि पिछले दिनों कांग्रेस से बीजेपी में आए पूर्व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा से पार्टी को काफी उम्मीदें हैं. कृष्णा भी वोक्कालिंगा समुदाय से आते हैं.

3. बेंगलुरु
बेंगलुरु पूरी तरह से शहरी मतदाताओं का इलाका है. जहां कर्नाटक के अलावा अलग-अलग राज्यों से आकर भी लोग बसे हुए हैं. इसमें बेंगलुरु सिटी, नॉर्थ, साउथ और सेंट्रल इलाके आते हैं. यहां कुल 28 विधानसभा सीटें हैं. जिसमें से 2018 में बीजेपी को 11, कांग्रेस को 13 और जेडीएस को 2 सीटें मिली थीं. यहां की राजनीति बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य रूप से बंटी हुई है. बीजेपी युवा मोर्चा के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या और पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा इस इलाके से आते हैं. जबकि कांग्रेस के दिग्गज नेता दिनेश गुंडूराव और राज्य में पार्टी का मुस्लिम चेहरा के. रहमान खान भी बेंगलुरु से ही है.

4. बॉम्बे कर्नाटक
महाराष्ट्र की सीमा से लगते इलाके को बॉम्बे कर्नाटक कहा जाता है. यहां बीजापुर, धारवाड़, बेलगाम, बागलकोट जिलों की 44 विधानसभा सीटें हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 26, कांग्रेस को 16 और जेडीएस को 2 सीटें यहां से मिली थी.  इस इलाके में लिंगायत समुदाय का दबदबा माना जाता है. बीजेपी की यहां मजबूत पकड़ रही है. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई इसी क्षेत्र से आते हैं. हालांकि यहां उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है.

5. हैदराबाद कर्नाटक
कर्नाटक के उत्तरी हिस्से और आंध्र प्रदेश से लगते इलाके को हैदराबाद कर्नाटक के नाम से जाना जाता है. यहां गुलबर्गा, बीदर, यादगीर, बिल्लारी और कप्पल जिलों की कुल 40 विधानसभा सीटें हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 15, कांग्रेस को 21 और जेडीएस को 5 सीट मिली थी.  कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इसी इलाके से आते हैं. जबकि बीजेपी के पास इस इलाके में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. एक समय बीजेपी की सरकार में मंत्री रहे रेड्डी बंधुओं का भी इस इलाके में अच्छा प्रभाव है. हालांकि वे अब बीजेपी से अलग हो चुके हैं. सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यहां लिंगायत, ओबीसी, बंजारा और दलित समुदाय की बड़ी आबादी  है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी इलाके में रैली कर बंजारा और दलित समुदाय के लोगों को जमीन का पट्टा दिया था.

6. सेंट्रल कर्नाटक
सेंट्रल कर्नाटक को भी बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है. इस इलाके में चिकमंगलूर, चित्रदुर्ग, शिवमोगा और दावनगेरे जिलों की 27 विधानसभा सीटें आती हैं. 2018 में बीजेपी को 21 और कांग्रेस को 5 सीटें मिली थीं. राज्य में बीजेपी के सबसे प्रभावी नेता माने जाने वाले बीएस येदियुरप्पा इसी इलाके से आते हैं. यहां की राजनीति में लिंगायत समुदाय का प्रभाव है. सेंट्रल कर्नाटक के धार्मिक मठ और उससे जुड़े संतों का यहां की सियासत में काफी दखल रहता है.  

अब ये भी समझ लेते हैं कि पिछले 5 सालों में कर्नाटक में कौन-कौन से बड़े मुद्दे हावी रहे.
पहला मुद्दा है भ्रष्टाचार का. एक ठेकेदार ने पंचायती राज मंत्री पर 40 प्रतिशत कमीशन मांगने का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली थी. जिसके बाद भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कर्नाटक ठेकेदार एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर शिकायत की थी. इस चिट्ठी में सीधे-सीधे कई मंत्रियों पर उंगली उठाई गई थी. कांग्रेस नेताओं ने 40 फीसद कमीशन का मुद्दा उठाते हुए खूब प्रदर्शन भी किया था और अभी भी लगातार ये मुद्दा उठाया जा रहा है. बिटकॉन घोटाला, स्कूलों में भ्रष्टाचार भी बड़ा मुद्दा है.

दूसरा मुद्दा आरक्षण का है, जिसने अभी सिर उठाया है. पिछले हफ्ते ही कर्नाटक कैबिनेट ने मुस्लिम समुदाय को मिलने वाले 4 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने का फैसला किया था. मुस्लिम समुदाय को मिलने वाले 4 फीसद आरक्षण को वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के बीच 2-2 प्रतिशत में बांट दिया गया. इसके अलावा कैबिनेट ने अनुसूचित जाति यानी SC कैटेगरी को मिलने वाले 17 प्रतिशत आरक्षण में आंतरिक आरक्षण (इंटरनल रिजर्वेशन) की घोषणा की थी. इस 17 प्रतिशत में 29 समुदायों वाले SC लेफ्ट कैटेगरी  को 6 प्रतिशत, 25 समुदायों वाले SC राइट कैटेगरी को 5.5 प्रतिशत, SC टचेबल कैटेगरी को 4.5 प्रतिशत और अन्य SC कैटेगरी को 1 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी. बंजारा समुदाय के लोग SC टचेबल कैटेगरी में आते हैं. समुदाय के लोगों की नाराजगी है कि उन्हें 4.5 प्रतिशत में सीमित कर दिया गया है. इसे लेकर बंजारा समुदाय के लोगों ने बीएस येदियुरप्पा के घर और दफ्तर पर पथराव भी किया था.

तीसरा मुद्दा है हिजाब. कर्नाटक में स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने को लेकर 2022 में काफी विवाद हुआ था. उडुपी के एक कॉलेज में हिजाब पहनकर आईं छात्राओं को क्लास में नहीं घुसने दिया गया था. कहा गया कि हिजाब कॉलेज ड्रेस कोड का हिस्सा नहीं है. मुस्लिम समुदाय की तरफ से इसका विरोध किया गया. देखते ही देखते ये राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गया कि शिक्षा संस्थानों में हिजाब पहनना सही है या नहीं. मामला हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. हाई कोर्ट ने कॉलेजों में हिजाब पर बैन लगाने के राज्य सरकार के फैसले को सही बताया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर बंटा हुआ फैसला दिया था. शीर्ष अदालत की डिविजन बेंच में शामिल जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया एकमत नहीं हो पाए. जस्टिस धूलिया ने कहा कि हिजाब पहनना निजी पसंद का मामला है. वहीं, जस्टिस गुप्ता ने हिजाब पर बैन लगाने के राज्य सरकार के फैसले को सही माना. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने इस मामले को 9 जजों की बेंच के पास भेजने की राय दी थी.

चौथा मुद्दा है टीपू सुल्तान.  18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध का सुल्तान टीपू, 2018 के चुनाव में भी मुद्दा था. शुरुआत हुई थी 2015 में. जब सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाने की घोषणा की थी. सिद्धारमैया ने कहा था कि टीपू सुल्तान सिर्फ राजा नहीं था बल्कि एक धर्म निरपेक्ष शासक था जो सभी वर्गों को अपने साथ लेकर चलता था. बीजेपी इसके विरोध में उतर गई थी. बीजेपी का कहना था कि टीपू सुल्तान ने कूर्ग और मैंगलोर इलाके में बड़े पैमाने पर हिंदुओं की हत्या की थी और उन्हें जबरन मुसलमान बनाया था. विवाद बढ़ता गया. 2016 में टीपू जयंती के विवाद ने हिंसक रूप ले लिया. कर्नाटक के कुर्ग जिले में हिंसा हो गई और इस हिंसा में विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यकर्ता समेत तीन लोगों की मौत हो गई. 2018 के चुनाव के बाद भी पिछले 5 साल में टीपू सुल्तान का मुद्दा रह-रहकर उठता रहा. कभी उनके स्वतंत्रता सेनानी होने या न होने का मुद्दा उठा तो कभी वोक्कालिगा समुदाय के साथ संघर्ष की.

लिस्ट में आखिरी नंबर है सीमा विवाद का. महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच करीब 6 दशक से सीमा विवाद चला आ रहा है. महाराष्ट्र कर्नाटक के 4 जिलों  विजयपुरा, बेलागावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ा के 814 गांवों पर अपना दावा करता है. जहां मराठी भाषा बोलने वाले बहुसंख्यक हैं. वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक भी महाराष्ट्र की सीमा से लगते कन्नड़ भाषी 260 गांवों पर अपना दावा करता है. दोनों राज्यों के नेताओं की ओर से लगातार बयानबाजी होती रही. महाराष्ट्र की NCP और शिवसेना विवादित क्षेत्र को महाराष्ट्र में मिलाने के लिए काफी उग्र भी रही हैं. दोनों राज्यों के नेताओं की ओर से बयान आते रहे कि एक इंच भी पीछे नहीं हटा जाएगा. पिछले दो-तीन सालों में भी इसे लेकर दोनों राज्यों के नेताओं के बीच खूब गहमागहमी हुई.

पिछले कुछ महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतनी बार कर्नाटक का दौरा किया है कि कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को टोकना पड़ गया. कर्नाटक से ही आने वाले खड़गे, प्रधानमंत्री के कर्नाटक दौरे पर चुटकी ले चुके हैं. कर्नाटक में भाजपा की मौजूदा सरकार का कार्यकाल 24 मई को ख़त्म होना है. उससे पहले ही नतीजे आ जाएंगे. और जब नतीजे आएंगे, तो ये मालूम चलेगा कि कर्नाटक के रास्ते दक्षिण में दाखिल होने की पार्टी की रणनीति कितना काम कर रही है. कर्नाटक से इतर भाजपा ने तेलंगाना में भी बहुत ऊर्जा लगाई है. रही बात विपक्षी पार्टियों की, तो उनके सामने ये चुनौती है कि क्या वो कर्नाटक जैसे एक साधन संपन्न राज्य को एक बार फिर अपने हाथ से जाने देंगे. और कर्नाटक की आम जनता, उसके मुद्दे तो कबके टीपू सुल्तान, सीमा विवाद और हिजाब के शोर में खो चुके हैं.

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