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रेप नहीं तो किन मामलों में सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं?

देश के अदालती क्रम के चलते सुप्रीम कोर्ट ने एक रेप केस पर सुनवाई से इनकार कर दिया था.

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सुप्रीम कोर्ट. (तस्वीर- पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट. (तस्वीर- पीटीआई)
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धीरज मिश्रा
5 अप्रैल 2022 (Updated: 5 अप्रैल 2022, 02:23 PM IST) कॉमेंट्स
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भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना का एक बयान इस समय काफी चर्चा में है. बीते सोमवार, 4 अप्रैल को शीर्ष अदालत के सामने एक मामला आया था. इसमें पीड़ित पिता ने अपनी नाबालिग बेटी की हत्या और गैंगरेप के मामले में कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की थी. हालांकि न्यायालय ने इस मामले को खारिज कर दिया और कहा कि वे अपनी याचिका हाई कोर्ट में दायर करें. लाइव लॉ के मुताबिक सीजेआई ने कहा,
'इस कोर्ट में ऐसी याचिकाओं का भरमार न लगाएं. आप हाई कोर्ट जा सकते हैं और यही बात रख सकते हैं. आप क्यों सीधे सुप्रीम कोर्ट आ रहे हैं?'
इसके जवाब में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा,
'मैं एक मजदूर हूं, मैं हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट का चक्कर काटने में सक्षम नहीं हूं. मैं इस व्यवस्था का पीड़ित हूं. उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से अराजकता है.'
हालांकि जस्टिस एनवी रमना ने इसके बाद भी याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा,
'ऐसी हरकत दोबारा न करें. याचिका को वापस लेने और हाई कोर्ट जाने की आपको छूट दी जाती है.'
क्या मामला है? मामला उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले का है. यहां 21 जनवरी 2022 को एक 16 वर्षीय लड़की की हत्या कर दी गई थी. परिजनों ने आरोप लगाया कि गैंगरेप करने के बाद नाबालिग के साथ इस घटना को अंजाम दिया गया और आरोपियों को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है. बहरहाल, इस समय एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है कि सुप्रीम कोर्ट को मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए याचिका को स्वीकार करना चाहिए था. वहीं एक दलील ये भी है कि पहले याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाना चाहिए था. अगर वहां से राहत न मिलती, तब वे सुप्रीम कोर्ट आ सकते थे. इस बहस में पड़ने से पहले आप ये जान लीजिए कि भारत में कौन से न्यायालय किस तरह के मामलों को सुन सकते हैं. किस कोर्ट में आप सीधे केस फाइल कर सकते हैं और कहां आप सिर्फ अपील कर सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्च अदालत है. किसी भी विवाद, केस, मुद्दे पर इसका फैसला अंतिम होता है. इसके निर्णयों को कहीं भी चुनौती नहीं दी सकती है, सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही अपने फैसलों पर पुनर्विचार कर सकता है और जरूरत पड़ने पर अपने किसी फैसले को पलट सकता है. सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र बहुत व्यापक है, जहां तीन तरह की याचिकाओं- मूल या ओरिजिनल याचिका, अपील याचिका और एडवाइजरी आवेदनों- पर सुनवाई होती है. ओरिजिनल न्याय अधिकार क्षेत्र या याचिका का मतलब है कि ऐसे विषय या मुद्दे जिस पर सुप्रीम कोर्ट सीधे सुनवाई कर सकता है. केंद्र और राज्यों के बीच का विवाद, राज्य-राज्य के बीच का विवाद, कई राज्यों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों पर सुनवाई करने का अधिकार सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पास है. ऐसी स्थिति में सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है और शीर्ष अदालत को उस पर सुनवाई करनी होती है. इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार मिला हुआ है कि वो मौलिक अधिकारों को लागू करने से जुड़े मामलों की सुनवाई करेगा. ऐसी याचिकाओं को जनहित याचिका (पीआईएल) कहा जाता है. यदि कहीं पर मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो कोई भी व्यक्ति सर्वोच्च अदालत में पीआईएल दायर कर राहत की मांग कर सकता है. बुलंदशहर वाले मामले में याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 32 के तहत ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. उन्होंने दलील दी थी कि उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है, उन्हें न्याय से वंचित किया जा रहा है, इसलिए न्यायालय जांच का आदेश दे. सुप्रीम कोर्ट पीआईएल पर कई तरह के निर्देश या आदेश जारी कर सकता है. हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत देश के उच्च न्यायालयों को भी ये अधिकार मिला हुआ है कि वे जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर जरूरी आदेश और निर्देश देंगे. इस तरह सुप्रीम कोर्ट की तरह उच्च न्यायालयों के पास भी मौलिक अधिकारों को लागू करने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट का ये विशेषाधिकार है कि वो अनुच्छेद 32 के तहत दायर किस पीआईएल को स्वीकार करेगा, किसे हाई कोर्ट के पास जाने को कहेगा और किसे खारिज करेगा. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के पास ये भी अधिकार है कि वो किसी मामले को एक हाई कोर्ट से दूसरे हाई कोर्ट या एक निचली अदालत से दूसरे हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर सकता है. ये शक्ति सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पास है, हाई कोर्ट के पास नहीं. इसलिए इस संबंध में याचिका सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट को ये शक्ति मिली हुई है कि अगर कोई मामला उसके यहां लंबित है, और इसी तरह का मामला एक या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में लंबित है, तो वो जरूरत पड़ने पर सभी मामलों को सीधे अपने पास ट्रांसफर करके एक साथ उन पर फैसला सुना सकता है. इन सब के अलावा सुप्रीम कोर्ट याचिकाओं पर सुनवाई करता है. अगर कोई याचिकाकर्ता हाई कोर्ट के फैसले से खुश नहीं होता है और मामले में कानून से जुड़े सवाल उठते हैं, तो वो इसके खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट देश के तमाम न्यायाधिकरणों यानी कि ट्रिब्यूनल्स के फैसलों के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर जरूरी आदेश जारी कर सकता है. संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट, भारत के राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए प्रस्तावों पर अपनी सलाह दे सकता है. शीर्ष अदालत के पास ये एक विशेष अधिकार  है. हाई कोर्ट किसी भी राज्य की न्यायिक व्यवस्था में हाई कोर्ट शीर्ष अदालत होती है. ये राज्य की शीर्ष अपीलीय कोर्ट होता है. देश में कुल 25 हाई कोर्ट हैं. सुप्रीम कोर्ट की तरह हाई कोर्ट के पास भी ये अधिकार है कि वे मौलिक अधिकारों को लागू करने से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे. संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट में पीआईएल दायर करने का प्रावधान है. इसके अलावा अगर नौसेना विभाग, वसीयत, विवाह, तलाक, कंपनी कानून और अदालत की अवमानना ​​से संबंधित मामले हैं तो इससे जुड़ी याचिका सीधे हाई कोर्ट में दायर की जा सकती है. इसके साथ ही चुनाव, सांसद, विधायक संबंधी याचिकाएं सीधे हाई कोर्ट में दायर की जा सकती है. देश के सभी उच्च न्यायालयों के पास ये अधिकार है कि वे निचली आदलतों के फैसलों के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर सकते हैं और इसे लेकेर जरूरी आदेश या निर्देश जारी कर सकते हैं. उच्च न्यायालयों के पास ज्युडिशियल रिव्यू (न्यायिक पुनर्विचार) की भी शक्ति है. उनके पास किसी भी कानून या अध्यादेश को असंवैधानिक घोषित करने की शक्ति है, अगर ये भारतीय संविधान के खिलाफ पाया जाता है. इसके साथ ही हाई कोर्ट ये भी तय कर सकता है कि कौन सा मामला सुप्रीम कोर्ट में सुने जाने योग्य है. निचली अदालत निचली अदालतें जिले के मामलों की सुनवाई करती हैं. आपराधिक और दीवानी (सिविल) मामलों की पहली सुनवाई इन्हीं अदालतों में होती है. उसके बाद इन मामलों पर अपील हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में की जाती है. निचली अदालतें कई प्रकार की होती हैं. दीवानी मामलों के लिए जूनियर सिविल जज कोर्ट, प्रिंसिपिल जूनियर सिविल जज कोर्ट और सीनियर सिविल जज कोर्ट होती है. वहीं आपराधिक मामलों के लिए फर्स्ट क्लास ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट और चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट होते हैं. आपराधिक और दीवानी के कुछ ऐसे मामले होते हैं, जिन पर सुनवाई जिला न्यायालय के नीचे होती है. इस तरह ऐसे मामलों से संबंधित केस केवल जिला कोर्ट में ही दायर किए जा सकते हैं. ऐसे जिला कोर्ट अपने से नीचे के न्यायालयों के आदेशों के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर सकते हैं.

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