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ये कौन सी चिड़िया है जो देश के सबसे बड़े एयरपोर्ट के लोगो पर दिखेगी?

हिंटः ये 40 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से उड़ती है.

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बाएं से दाएं: उड़ता हुआ सारस (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट). जेवर एयरपोर्ट के मॉडल की तस्वीर और कोने में लोगो की तस्वीर (फोटो- ट्विटर @dr_maheshsharma)
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लालिमा
21 दिसंबर 2020 (Updated: 21 दिसंबर 2020, 06:08 AM IST) कॉमेंट्स
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उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर के जेवर में एयरपोर्ट बनने जा रहा है, जिसका आधिकारिक नाम होगा 'नोएडा इंटरनेशनल ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट'. वैसे इसे जेवर एयरपोर्ट भी कहा जा रहा है. 17 दिसंबर को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एयरपोर्ट के नाम, डिज़ाइन और लोगो (प्रतीक चिन्ह) पर हामी भरी. एयरपोर्ट का लोगो होगा उड़ता हुआ 'सारस' पक्षी. ये पक्षी यूपी का स्टेट बर्ड यानी राज्य पक्षी भी है. 'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी सूत्रों ने बताया कि उड़ते हुए सारस को लोगो इसलिए बनाया गया, ताकि वो पूरी दुनिया से कनेक्टिविटी को दर्शाए.


अब जेवर एयरपोर्ट जब बनेगा, तब बनेगा. खबरें आती रहेंगी. लेकिन बात उठी है सारस पक्षी की, तो उसके बारे में आपको बिना कुछ बताए हम कैसे रह सकते हैं. क्या खासियत है इसकी? मिलता कहां है? सब बताएंगे एक-एक करके-

सारस आखिर किस चिड़िया का नाम है?

बहुतई बड़ी चिड़िया है. देखिए, हर जीव-जंतु, पक्षी के कई सारे प्रकार-प्रजातियां होती हैं. ऐसे ही पक्षी का एक प्रकार है- क्रेन (Crane), हिंदी में इसे क्रुंज भी कहा जाता है. क्रेन फैमिली में जो पक्षी आते हैं, उनके लंबे-लंबे पैर होते हैं, लंबी और पतली गर्दन होती है, चोंच भी नुकीली और लंबी होती है. बढ़िया चालाक-चतुर शिकारी होते हैं. काफी तेज़ी से उड़ते हैं. अब इस क्रेन फैमिली की दुनियाभर में टोटल 15 प्रजातियां हैं. यानी देखने-दिखाने, बनावट, कहां रहते हैं, इन सब आधार पर क्रेन फैमिली को आगे 15 क्रेन्स में बांटा गया है. इनमें से ही एक प्रजाती है सारस क्रेन या सारस की.


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क्रेन फैमिली की दुनियाभर में टोटल 15 प्रजातियां हैं. इनमें से ही एक प्रजाती है सारस क्रेन या सारस की. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

सारस के अलावा भारत में और कितने क्रेन्स?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए 'दी लल्लनटॉप' ने बात की वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) के साइंटिस्ट आर. सुरेश कुमार से. उन्होंने बताया कि भारत में क्रेन्स की कुल चार प्रजातियां मिलती हैं. अब ये चार क्रेन्स भी दो कैटेगिरी में बंटे हैं. एक वो, जो प्रॉपर भारत के हैं. दूसरा वो, जो साल के कुछ महीनों के लिए दूसरे देशों से माइग्रेट होकर इंडिया आते हैं.

प्रॉपर भारत में मिलने वाले क्रेन्स हैं- सारस और ब्लैक-नेक्ड क्रेन.

माइग्रेटेड क्रेन्स हैं- कॉमन क्रेन और डिमॉइज़ल क्रेन.

बहुतों के सिर पर बज रही है खतरे की घंटी

'इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर' यानी IUCN ने 15 क्रेन प्रजातियों में से 11 को खतरे में होना बताया है. यानी इनकी संख्या बहुत कम हो चुकी है. सारस क्रेन भी 11 की लिस्ट में शामिल है.

अब सारस पर बात विस्तार से

क्रेन्स की रक्षा के लिए काम करने वाला एक संगठन है. नाम है ICF यानी इंटरनेशनल क्रेन फाउंडेशन. काफी नामी फाउंडेशन है. इसकी आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, सारस भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, कंबोडिया, वियतनाम में पाए जाते हैं. भारत में मिलने वाले सारस को इंडियन सारस कहते हैं. WII की आधिकारिक वेबसाइट की मानें तो हमारे देश में सारस उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, बिहार और पश्चिम बंगाल में खासतौर पर मिलते हैं.


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सारस दलदली ज़मीन पर रहते हैं. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

ऐसा क्या खास है कि सारस का इतना नाम है

पहली बात तो ये कि ये देखने में बड़े प्यारे होते हैं. इनकी गर्दन से लेकर आंखों तक लाल रंग की पट्टी होती है. पैर भी लाल होते हैं. बाकी शरीर यानी पंखों का रंग हल्का ग्रे होता है. और भई हाइट तो इंसानों जितनी होती है. क्रेन की सभी 15 प्रजातियों में सबसे ऊंचे सारस ही होते हैं. इनकी हाइट पांच से छह फुट तक होती है. यानी अगर कोई इंसान इसके बगल में खड़ा हो जाए, तो बराबर दिखेंगे. मादा सारस का वज़न 35 से 40 किलो होता है और नर सारस का 40 से 45 किलो. और ये करीब 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरते हैं. इतनी तो अपने यहां कई ट्रेनों की स्पीड है.

और सबसे ज्यादा खास बात ये है कि सारस दुनिया का सबसे ऊंचा पक्षी है जो उड़ान भरता है.

कहां रहते हैं?

साइंटिस्ट गोपी सुंदर, नेचर कंज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF) के लिए काम करते हैं. 1998 से क्रेन्स पर रिसर्च कर रहे हैं. उन्होंने 'दी लल्लनटॉप' को बताया कि सारस 'लार्ज वॉटर बर्ड' है. यानी झीलों, नदी या तालाब के आसपास ही मिलते हैं. दलदल वाले इलाकों में ये सबसे ज्यादा पाए जाते हैं. इसके अलावा पानी से भरे खेतों में भी ये रहते हैं, खासतौर पर धान के खेत में, क्योंकि यहां पानी काफी ज्यादा होता है. और ये अपने घोसले पेड़ों पर नहीं, बल्कि पानी पर बनाते हैं.

क्या खासियत है सारस की?

रहने का तरीका, इंसानों से काफी मिलता-जुलता है. जैसे इंसान अपना घर बनाकर रहते हैं, सारस भी अपनी टेरिटरी डिसाइड करके रखते हैं. कैसे? देखिए, सारस जोड़ो और झुंड दोनों में रहते हैं, लेकिन ज्यादातर जोड़ों में रहते हैं. जोड़े में एक नर और एक मादा सारस होते हैं. ये हर साल बच्चे देते हैं. नर और मादा सारस का जोड़ा अपना परिवार आगे बढ़ाने के लिए अपना घर खोजता है. यानी रहने के लिए जगह डिसाइड करता है. ये जगह सारस जोड़े की टेरिटरी होती है. इस टेरिटरी में, उन दो पर्टिकुलर सारस के अलावा दूसरे सारस एंटर नहीं करते हैं. इस टेरिटरी के अंदर ही सारस जोड़ा घोसला बनाता है. मॉनसून में मादा सारस घोसले में अंडे देती है. एक बार में एक से दो अंडे देती है. इन अंडों से जो बच्चे निकलते हैं, वो सारस जोड़े के साथ सात से आठ महीने रहते हैं. फिर अगले मॉनसून के आने के पहले दूर चले जाते हैं.


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सारस ज्यादातर जोड़ों में रहते हैं. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

अब यही बच्चे, जो अपने पैरेंट्स सारस से मॉनसून के पहले दूर जाते हैं, वो साथ में झुंड बनाकर रहते हैं. यही वजह है कि झुंड में रहने वाले सारस काफी यंग होते हैं. डॉक्टर गोपी बताते हैं कि झुंड में एक सारस तब तक रहता है, जब तक वो अपना पार्टनर नहीं खोज लेता. अक्सर सारस अपने झुंड में मौजूद बाकी सारस के बीच ही अपना पार्टनर खोजता है. फिर जब एक बार उसे पार्टनर मिल जाए, तो ये जोड़ा निकल पड़ता है अपनी टेरिटरी खोजने. और इसी तरह से ये साइकल चलता रहता है.

पार्टनर खोजने का स्टाइल भी बड़ा जबर है

डॉक्टर गोपी बताते हैं कि झुंड में रहने के दौरान ही सारस जीने का तौर-तरीका सीखता है और पार्टनर खोजने की भी कई ट्रिक्स अपनाता है. डॉक्टर गोपी कहते हैं,

"झुंड में नए-नए सारस जो सात-आठ महीने के होते हैं, वो रहते हैं. और पांच-दस साल के सारस भी रहते हैं, ऐसे जिन्हें अभी तक पार्टनर नहीं मिला. या मिला भी तो कोई टेरिटरी नहीं मिली. इसलिए काफी साल झुंड में रहना पड़ता है. झुंड में रहते-रहते ही वो सीखते हैं कि कैसे खुद को स्ट्रॉन्ग करना है. एक-दूसरे के साथ कैसे रहना है. एक-दूसरे से कैसे बचाकर रखना है. यहीं पर पार्टनर ढूंढते हैं. झुंड में काफी एक्टिविटी होती रहती है. नाचना-कूदना, छलांग मारना. क्योंकि इससे पता लगता है कि कौन-सा सारस हेल्दी है. सारस एक-दूसरे की इन सारी एक्टिविटी को देखकर ही पार्टनर चुनते हैं."

कपल डांस तो कोई इनसे सीखे

केवल छोटे सारस ही उछल-कूद नहीं करते. जोड़े में रहने वाले सारस भी बढ़िया डांस करते हैं. इनके डांस के कई वीडियो भी आपको यू-ट्यूब में मिल जाएंगे. सवाल आता है कि ये डांस करते क्यों हैं? जवाब है हॉर्मोन्स को सिंक्रोनाइज़ करने के लिए. सारस पर रिसर्च करने वाले साइंटिस्ट्स ने पाया कि प्रजनन (रिप्रोडक्शन) के पहले सारस का जोड़ा बहुत डांस करता है. क्योंकि हर बार प्रजनन के लिए सारस जोड़े को अपने हॉर्मोन्स को सिंक्रोनाइज़ करना होता है. दोनों को एक्टिव होना पड़ता है.


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अपने में मग्न होकर डांस करते सारस. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

कुछ मिथ भी हैं

ऐसा माना जाता है कि जोड़े में से अगर किसी एक सारस की मौत हो जाए, तो दूसरा सारस नया पार्टनर नहीं खोजता या फिर अपने भी प्राण त्याग देता है. हालांकि इस पर डॉक्टर गोपी कहते हैं कि ऐसा नहीं है, सारस का अगर पार्टनर मर जाए, तो वो दूसरा पार्टनर खोज लेता है.

सारस को इंडिया में लोग प्यार का प्रतीक भी मानते हैं. इसलिए अगर सारस का जोड़ा किसी किसान के खेत में घर बनाता है, किसान उसे भगाते नहीं हैं. प्यार से एक्सेप्ट करते हैं.

इनकी संख्या क्यों कम हो रही है?

चार बड़े कारण हैं.

पहला- दलदली इलाके कम होते जा रहे हैं. सुंदरीकरण कह लीजिए या जो भी कारण कह लीजिए, झील तालाब के आस-पास के इलाकों को सीमेंटेड किया जा रहा है. उदाहरण के लिए भोपाल की ही झील ले लीजिए. किनारे-किनारे में पूरा सीमेंटेड कर दिया गया है.

दूसरा- खेत भी सारस के लिए काफी सही घर माना जाता है. क्योंकि यहां भी उन्हें दलदली इलाका मिल ही जाता है. लेकिन अब खेती की ज़मीन पर भी कंस्ट्रक्शन हो रहा है. या तो वो ज़मीन शहरीकरण के नाम पर चली जा रही हैं, या फिर कुछ बड़ी बिल्डिंग उनमें बन जा रही हैं.

तीसरा- बिजली के तारों से कटना. सारस बहुत तेज़ी से उड़ान भरता है. उड़ान भरते वक्त वो तार नहीं देख पाते और उससे टकरा जाते हैं. इससे उनकी मौत हो जाती है.

चौथा- कीटनाशक नुकसान कर रहे हैं. किसान अपनी फसल को कीटों के बचाने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं, सारस भी इसी फसल को खाते हैं, कई बार ये कीटनाशक उनके लिए भी ज़हर का काम करते हैं.

डॉक्टर गोपी बताते हैं मोटा-मोटी दुनिया में इस वक्त करीब 40 से 50 हज़ार सारस हैं. इनमें ज्यादा संख्या भारत में है. एक और फैक्ट की बात, अगर सारस को ज़ू में रखकर ध्यान रखा जाए, तो ये 90 बरस तक जीते हैं.


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