क्या है ग्रीन हाइड्रोजन मिशन जिस पर पीएम मोदी इतना जोर दे रहे हैं?
मोदी सरकार ने इस मिशन पर 19 हजार 744 करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही थी. आज उसपर प्रधानमंत्री मोदी ने किया संबोधन.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 फरवरी के दिन हरित ऊर्जा यानी ग्रीन एनर्जी पर एक वेबिनार को संबोधित किया. वेबिनार में प्रधानमंत्री मोदी ने अमृत काल बजट और हरित विकास की गति को तेज करने की बात कही. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत ने हरित विकास और ऊर्जा परिवर्तन के लिए 3 स्तंभ स्थापित किए हैं, जिसमें नवीन ऊर्जा (Renewable energy) का उत्पादन बढ़ाना, जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) के उपयोग को कम करना और गैस आधारित अर्थव्यवस्था (Gas based economy) को बढ़ावा देना शामिल है.
आपको बता दें कि भारत सरकार ने इसी साल के जनवरी महीने में नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission) को मंजूरी दी थी. सरकार ने बताया था कि इस मिशन से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने और भारत को ग्रीन हाइड्रोन का 'ग्लोबल हब' बनाने में मदद मिलेगी. 4 जनवरी को इस प्रोजेक्ट के लिए कुल 19 हजार 744 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई थी. केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) ने इस फैसले की घोषणा करते हुए बताया था कि देश में 2030 तक हर साल 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ही नेशनल हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी.
क्या है नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन?दुनिया के सभी देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोत ढूंढने में लगे हैं. इसी कोशिश में हाइड्रोजन का तार्किक इस्तेमाल करना है. इस मिशन को समझने से पहले 'ग्रीन हाइड्रोजन' को समझते हैं. हाइड्रोजन गैस के फॉर्म में उपलब्ध नहीं है. इसलिए इसे बनाने की प्रक्रिया होती है. हम सभी जानते हैं कि पानी का फॉर्मूला होता है- H20. इसी पानी से अलग करके बनाते हैं हाइड्रोजन. लेकिन इसको बनाने के लिए भी ज्यादातर हम परंपरागत ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं. इसलिए इसे 'ग्रे हाइड्रोजन' कहते हैं. कम प्रदूषण से पैदा हुए हाइड्रोजन को कहते हैं ब्लू हाइड्रोजन. लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन का निर्माण रिन्यूएबल एनर्जी से होता है. यानी इसे बनाने में सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी और बायोमास का इस्तेमाल होता है.
अब सरकार के नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन पर आते हैं. मिशन में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के साथ-साथ, इसकी मांग को बढ़ाना और निर्यात भी शामिल है. इसके लिए सरकार ने स्ट्रैटेजिक इंटरवेंशन्स फॉर ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन प्रोग्राम (SIGHT) बनाया है. इसके तहत देश में इलेक्ट्रोलाइजर की मैन्यूफैक्चरिंग और ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन शामिल है. हाइड्रोजन जिस प्रक्रिया से बनाया जाता है, उसे इलेक्ट्रोलिसिस कहते हैं. सरकार ने बताया है कि ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए 60 से 100 गीगावाट क्षमता वाले इलेक्ट्रोलाइजर प्लांट को तैयार किया जाएगा. इलेक्ट्रोलाइजर की मैन्यूफैक्चरिंग और ग्रीन हाइड्रोजन पर 5 सालों के लिए इंसेंटिव दिया जाएगा.
वैसे क्षेत्रों की पहचान की जाएगी, जहां हाइड्रोजन का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है. उन इलाकों को ग्रीन हाइड्रोजन हब बनाने का भी लक्ष्य है. सरकार ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम डेवलप करने के लिए एक पॉलिसी भी लेकर आएगी.
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भारत सरकार का लक्ष्य है कि देश में 2030 तक हर साल 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन हो. इससे देश की रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता में 125 गीगावाट की बढ़ोतरी होगी. सरकार का कहना है कि इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी के साथ-साथ जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी. साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन और इससे जुड़े प्रोडक्ट के निर्यात के मौके बढ़ेंगे.
क्या फायदे होंगे?- सरकार का दावा है कि इससे 2030 तक 6 लाख रोजगार पैदा होंगे.
- 8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश होगा.
- जीवाश्म ईंधन के आयात में कमी से एक लाख करोड़ रुपये बचेंगे.
- सालाना ग्रीन हाउस गैस में 50 लाख मीट्रिक टन की कटौती होगी.
कहां खर्च होंगे पैसे?केंद्र सरकार ने कुल 19 हजार 744 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी. जिसमें केवल प्रोजेक्ट को लागू करने पर 17 हजार 490 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. वहीं 1466 करोड़ रुपये पायलट प्रोजेक्ट पर, रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए 400 करोड़ और मिशन की दूसरी चीजों के लिए 388 करोड़ रुपये खर्च गए.
कुल मिलाकर इसको क्लीन एनर्जी की दिशा में एक बड़ा कदम कहा जा सकता है. हालांकि, ग्रीन हाइड्रोजन की कीमतों को कम रखना सबसे बड़ी चुनौती है. द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (TERI) की रिपोर्ट के मुताबिक, अभी ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत 221 से 737 रुपये प्रति किलोग्राम तक है. 2030 तक ये 147 रुपये प्रति किलोग्राम होने का अनुमान है. ग्रीन हाइड्रोजन पर शिफ्ट होने से ट्रांसपोर्ट सेक्टर में परंपरागत ईंधन के इस्तेमाल में कमी आने की उम्मीद है. 2050 तक भारत में हाइड्रोजन की मांग और खपत पांच गुना तक बढ़ने की उम्मीद जताई गई है.
अंतरराष्ट्रीय अक्षय उर्जा एजेंसी (IRENA) के मुताबिक, 2050 तक कुल ऊर्जा में इसकी 12 फीसदी हिस्सेदारी होगी. भारत के बड़े औद्योगिक समूह जैसे रिलायंस और अडाणी ग्रुप भी इस सेक्टर में अपने पैर पसार रहे हैं. दोनों समूहों ने दुनिया की कई कंपनियों के साथ साझेदारी भी की है. रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अगले तीन सालों में क्लीन एनर्जी क्षेत्र में करीब 80 हजार करोड़ रुपये के निवेश की योजना बनाई है. वहीं पिछले साल अडानी ग्रुप ने कहा था कि वो अगले एक दशक में करीब 5.6 लाख करोड़ रुपये निवेश करेगा. इस समय ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा देश चीन है, जो सालाना 2.4 करोड़ टन से अधिक ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल करता है.
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