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क्या है लंपी स्किन डिजीज जिसने राजस्थान और गुजरात में हजारों मवेशी मार दिए हैं?

केवल गाय नहीं, अब ये बीमारी बैलों और भैंसों में भी फैल रही है.

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'लंपी' मवेशियों में त्वचा की बीमारी होती है.
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आस्था राठौर
4 अगस्त 2022 (Updated: 4 अगस्त 2022, 12:01 AM IST) कॉमेंट्स
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राजस्थान और गुजरात से गायों के मरने की खबरें लगातार आ रही हैं. राजस्थान में 2100 और गुजरात में ये आंकड़ा 40,000 के पार जा चुका है. पर अचानक ऐसा क्या हुआ कि इन दो राज्यों में भारी संख्या में गायों की मौत हो रही है? 

वजह है लंपी स्किन डिजीज (LSD). इसे आम बोलचाल में ‘लंपी’ बीमारी भी कहा जाता है. गुजरात में डिस्ट्रिक्ट कलेक्टरों ने संक्रमित शवों को डंप करने पर प्रतिबंध लगा दिया है, क्योंकि ये बीमारी अत्याधिक संक्रामक है.

केवल गाय नहीं, अब ये बीमारी बैलों और भैंसों में भी फैल रही है. इसका इलाज लक्षणों की बिनाह पर किया जा रहा है. साथ ही, भारत सरकार ने एडवाइजरी भी इशू कर दी है जिसमें पशुधन मालिकों को अपने गौवंश की रक्षा के लिए गोट पॉक्स की वैक्सीन लगवाने की सलाह दी है. ये वैक्सीन उन्हें इस घातक बीमारी से बचा सकती है. 

क्या है LSD?

लंपी स्किन डिजीज मवेशियों और जल भैंसों (Water Buffalo) में होने वाली एक वायरल बीमारी है. हालांकि इस बीमारी की मृत्यु दर कम है, पर इसकी वजह से पशु कल्याण और उन मवेशियों द्वारा किए जाने वाले जरूरी उत्पादन में भारी नुकसान हो सकते हैं. खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, LSD का मृत्यु डर 10% से कम है. यह रोग, मुख्य रूप से कीड़ों के काटने से फैलता है जैसे कुछ प्रजातियों की मक्खियां, मच्छर और टिक. टिक माने चिचड़ी या किलनी.

LSD वायरस से संक्रमित गाय (फाइल फोटो)

इस रोग से ग्रसित पशु को बुखार हो जाता है, त्वचा पर गांठ हो जाती हैं. इसकी वजह से मृत्यु भी हो सकती है, ख़ास तौर पर उन जानवरों में जो वायरस के संपर्क में पहले नहीं आए हैं. लंपी वायरस, तीन में से एक प्रजाति है जीनस कैप्रीपॉक्सवायरस (capripoxvirus) की. बाकी दो हैं शीपपॉक्स और गोटपॉक्स. कैप्रीपॉक्सवायरस (CaPV) सभी एनिमल पॉक्स वायरसों में सबसे गंभीर है.

वायरस को जीवित रहने और अपनी संख्या बढ़ाने के लिए होस्ट की जरूरत होती है. उस होस्ट के बगैर वायरस पनप नहीं सकता. भेड़, बकरी, मवेशी, चमगादड़ बाकी जीव-जन्तु प्राकृतिक तौर पर वायरसों के लिए होस्ट का काम करते हैं.

1929 में पहली दफा जाम्बिया में लंबी को महामारी के रूप में देखा गया. शुरुआत में लोगों को लगा था कि जहर या कीड़ों के काटने से एक्स्ट्रा सेंसिटिव होना इस बीमारी की वजह हैं. दक्षिण-पूर्वी एशिया में LSD का पहला केस रिपोर्ट किया गया था जुलाई 2019 में और भारत में पहला केस सामने आया था ओडिशा के मयूरभंज से – अगस्त 2019 में.

LSD संक्रमण के लक्षण?

लंपी बीमारी से ग्रसित जानवर में ये लक्षण देखने को मिलते हैं:

-सर, गर्दन, जननांगों और अन्य अंगों के आसपास की त्वचा पर 50 मिलीमीटर व्यास की सख्त और उभरी हुई गांठें विकसित हो जाती हैं. शरीर के किसी भी हिस्से पर नोड्यूल विकसित हो सकते हैं. 
-गांठों के केंद्र में पपड़ी विकसित हो जाती हैं. ये पपड़ी बाद में झड़ जाती है जिससे बड़े छेद खुले रह जाते हैं, जिनमें फिर से संक्रमण होने का खतरा बना रहता है.
-पशुओं की छाती, जननांगो और बाकी अंगों में सूजन हो सकती है.
-आंखों में पानी आना भी LSD का एक लक्षण है. 
-नाक से ज्यादा तरल पदार्थ और मुंह से अधिक लार का निकलना.
-शरीर पर छालों का विकसित होना.
-पशुओं को खाना चबाते या खाते समय दिक्कत होती है. इस वजह से वो खाना बंद कर देते हैं. परिणामस्वरूप, दूध का उत्पादन कम हो जाता है.

कई बार संक्रमित मवेशियों में लक्षण नहीं भी दिखते.

पशुओं की तवचा पर गहरे घाव हो जाते हैं (सोर्स: पीटीआई)
LSD फैलता कैसे है और कैसे रोका जा सकता है?

लंपी एक वायरल बीमारी है. ये रोग जानवरों में मच्छरों और मक्खियों के काटने से फैलता है. इसके उपचार के लिए कोई स्पेशल एंटी-वायरल दवाएं उपलब्ध नहीं हैं. मवेशियों की अच्छे से देखभाल ही फिलहाल एकमात्र उपाय है. 

भारत में ऐसे रोगों के खिलाफ टीकाकरण, पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत आता है. घावों के देखभाल के लिए स्प्रे इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही, त्वचा संक्रमण और निमोनिया को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाइयों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. बीमारी से प्रभावित मवेशी की भूख न मरे, उसके लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाओं को भी उपयोग में लाया जाता है. 

लंपी स्किन डिजीज का जड़ से सफाया मुश्किल है. इसकी रोकथाम और खात्मे के लिए इस बीमारी का जल्द से जल्द पता लगाना जरूरी है. फिलहाल, इसके लिए कोई वैक्सीन नहीं है, कोई कारगर इलाज मौजूद नहीं है. यही चिंता का सबसे बड़ा विषय है. चूंकि मवेशियों की सेहत और दूध उत्पादन पर इसका खासा असर पड़ सकता है, इसीलिए इस संक्रमण की रोकथाम आवश्यक है.

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